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Nawazuddin siddiqui suggests that new comers


आजकल नवाजुद्दीन सिद्दीकी की खूब चर्चा हो रही है। वजह है उनकी हालिया रिलीज फिल्म ‘बदलापुर’, जिसमें उनके किरदार लियाक को खूब सराहा जा रहा है। नेगेटिव होने के बावजूद लोगों को फिल्म के मुख्य पात्र रघु (वरुण धवन) से ज्यादा लियाक भाया। फिल्म 50 करोड़ के कलेक्शन की तरफ बढ़ रही है। एक औसत बजट की इस फिल्म की सफलता से वरुण धवन को तो लाभ हुआ ही है, लेकिन इंडस्ट्री में चर्चा है कि नवाज को इससे ज्यादा फायदा हुआ है।
बेशक ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि किसी फिल्म की सफलता पर उसके हीरो से ज्यादा विलेन की चर्चा हो रही है या यूं कहिए कि किसी फिल्म में हीरो पर विलेन भारी पड़ा है। सब जानते हैं कि एक जमाने में खलनायक के रूप में प्रसिद्ध अभिनेता प्राण को हीरो से कहीं ज्यादा पैसे मिला करते थे और पोस्टर्स पर उनका नाम भी प्रमुखता से छापा जाता था, लेकिन प्राण के बाद ज्यादातर खलनायक फिल्मी जामा ओढ़े बेहद नाटकीय अंदाज में डराते-धमकाते नजर आये। नब्बे के खराब दौर में ये नाटकीय अंदाज अपने चरम पर दिखा और नई सदी के आगमन तक खलनायक केवल सिगरेट का धुआं छोड़ने और पैमाने टकराने में व्यस्त रहे।
पिछले कुछ समय से नए दौर की खलनायकी परदे पर देखी जा रही है, जिसमें इरफान खान और नवाजुद्दीन सिद्दीकी जैसे अभिनेताओं का खासा योगदान नजर आता है। इस कड़ी में रणदीप हुड्डा का जिक्र भी जरूरी है।
चुलबुली और सहमी-सी रहने वाली वीरा (आलिया भट्ट) के सामने फिल्म ‘हाइवे’ में महाबीर भाटी (रणदीप हुड्डा) लगभग मूक सा बना रहता है। वीरा को महाबीर भाटी उसके मंगेतर की आंखों के सामने उठा ले जाता है। उसके हाथ-पैर बांध कर अपने ट्रक में भेड़-बकरी की तरह ठूंस कर कई दिनों तक यहां-वहां घूमता रहता है। बावजूद इसके वीरा खुद को भाटी के हाथों में महफूज पाती है और अंत में उससे ब्याह रचाने के ख्वाब देखने लगती है। हालांकि ‘हाइवे’ की सारी मलाई आलिया के खाते में गई, लेकिन सराहना रणदीप के नेगेटिव किरदार की भी हुई। इसी तरह देखें तो फिल्म ‘धूम 3’ में इंटरवल के बाद आमिर खान का डबल रोल में समर का नेगेटिव किरदार चौंकाता है। साहिर (आमिर) के किरदार में उलझा दर्शक सीट पर जम सा जाता है और बाट जोहने लगता है कि अब ये समर क्या नया गुल खिलाएगा।
ज्यादा दूर न जाएं तो नवाज की ही दो फिल्में ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर 2’ और ‘किक’ में उनके किरदार नेगेटिव या कहिये ग्रे शेड होने के बावजूद पसंद किये जाते हैं। ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर 2’ का पात्र फैजल शुरुआत में बेहद डरपोक रहता है, लेकिन अपने पिता सरदार खान (मनोज बाजपेयी) की हत्या के बाद ऐसा लगता है मानो किसी ने उसमें बदले की दवा के साथ ऊर्जा का इंजेक्शन ठोक दिया हो। तमाम बुरे कारनामों के बावजूद फैजल के किरदार में आकर्षण दिखता है। ‘किक’ में तो सलमान खान जैसे सुपरस्टार के सामने नवाज के किरदार को बौना हो जाना चाहिए था, पर ऐसा नहीं होता। नवाज का पात्र शिव गजरा, देवी लाल (सलमान) को कई मोड़ों पर एक शातिर खिलाड़ी की तरह मात देता है। गजरा के हंसने के अंदाज पर दर्शक सीटी मारते हैं। क्लाईमैक्स में जब वो देवी के कदमों में पड़ कर जान की भीख मांगने का नाटक करता है, तब भी दर्शक हंसते हैं और तालियां-सीटियां मारते हैं। देखते ही देखते इंटरवल के बाद एंट्री लेने वाला ये विलेन गजरा, देवी लाल से अधिक तालियों का हकदार बन जाता है।
नब्बे के दशक में ऐसी भाव-मुद्रा अमरीश पुरी की देखने को मिलती थी। इसी दौर से थोड़ा पहले देखें तो फिल्म ‘तेजाब’ में मुन्ना (अनिल कपूर) के सामने लोटिया पठान (किरण कुमार) एक वजनी विलेन के रूप में नजर आता है। इसके बाद फिल्म ‘गर्दिश’ में जैकी श्रॉफ के सामने बिल्ला जिलानी के रूप में मुकेश ऋषि जैसे विलेन का अवतार होता है।
हाल के कुछ वर्षों में ‘साहिब बीवी और गैंगस्टर’ जैसी फिल्मों से भी विलेन के चेहरे-मोहरे, चाल-ढाल, भाव आदि में काफी बदलाव देखा गया है। अभिषेक चौबे की फिल्म ‘इश्किया’ के दो मुख्य किरदारों बब्बन (अरशद वारसी) और उसके खालूजान (नसीरुद्दीन शाह) को देखिए। खोजने पर शायद ही उनका कोई नेक काम मिले, पर वो दर्शकों को भाते हैं। अंत में अभिनेता डैनी की दो फिल्मों, 1990 में आई ‘अग्निपथ’ के किरदार कांचा चीना और 1991 में आई फिल्म ‘हम’ के किरदार बख्तावर का जिक्र भी जरूरी लग रहा है। ये दोनों किरदार फिल्म के हीरो के सामने एक चुनौती के रूप में नजर आते हैं, जो ये जताते हैं कि वो बेशक पिटें या मारे जाएं, लेकिन दर्शकों का एक बड़ा वर्ग है, जो उन्हें उनके बुरे कामों के साथ स्वीकारता है, ठीक लियाक की तरह, जो मानता है कि उससे गलती हुई है। पर वो इस गलती के आगे अपनी जिंदगी दान में नहीं दे सकता।

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