ढाई साल में तहसीलदार की तीसरी तैनाती, क्यों सदर तहसील में रहना चाहते वर्तमान तहसीलदार, नजूल भूमि गायब करने का खेल किसके इसारे पर हुआ।
रायबरेली। सदर तहसील के शहरी इलाके में लगभग दस वर्ष पूर्व सरकारी अभिलेखों में लगभग नौ सौ एकड़ सरकारी नजूल भूमि दर्ज थी । आज यह आंकड़ा सिकुड़ कर लगभग कुछ एकड़ पर आ गया है। प्रश्न यह है कि सरकारी अभिलेखों में दर्ज भूमि को भूमि खा गई या आसमान या तहसीलदार और कथित लेखपालो कि सांठ गांठ से भूमिमाफि या निगल गए। सदर तहसीलदर को यह इलाका इतना भाया की वह यहां का मोह छोड़ नही पा रहे है, ढाई वर्षो में उन्होंने जुगाड़ के बल पर यहा तीसरी बार तैनाती हासिल की। उनको किस अयोग्यता के आधार पर हटाया व किस योग्यता के बल पर उनकी तैनाती हुई यह कोई समझ नही पा रहा है। पिछली सरकार के समय जमीनों के शहर में बड़े खेल सदर तहसील में हुए रात में देर तक तहसील में लेखपाल से लेकर अधिकारी तक कार्यालय में भूमाफि याओं की भीड़ में सरकारी दस्तावेजों में हेराफेरी का खेलकर अनाप शनाप कमाई की गई। जमीनों को पहले विवादित बनाया गया फि र उसमें दबाव व भ्रष्र्टाचार के बल पर फ र्जी दस्तावेजों के सहारे यहां तक कोर्ट की फ र्जी डिग्री के आधार पर इंद्राज कर कीमती भूमियों पर प्लाटिंग की गई, सरकारी ऐशबाग अलपिका तक को गायब कर बिल्डिंगों व्यवसायिक केंद्रों का निर्माण हुआ, अवैध कब्जेदारों के विरुद्ध कार्यवाही शून्य रही, सेटिंग गेटिंग के खेल में विद्युत विभाग की भूमि तक को तहसील प्रशासन ने अवैध कब्जेदार की घोषित कर दी।
तहसीलदार तैनाती उठ रहा प्रश्न
सदर तहसीलदार यदि भूमि संरक्षण के मामले अत्यधिक योग्य व्यक्ति है, इसलिये इनकी तैनाती यहां बार बार हो रही है तो प्रश्न है कि अब तक कितनी भूमि अवैध कब्जेदारों से मुक्त कराई गई, भूमाफियाओ विरुद्ध क्या कार्यवाही हुई, नजूल भूमि के कब्जो के मामले में अब तक जांच क्यो नही कराई गयी, यह सब प्रश्न जनमानस के समक्ष मुहबाये खड़े है ।
कार्यवाही में भी खेल
भूमाफि याओं के विरुद्ध अभियान में फि सड्डी सदर तहसील में भूमि के विवादों को बढाने का कार्य लेखपाल तहसीलदार के मौखिक निर्देश पर करते है, उसके बाद मामलों के निस्तारण की कार्यवाही में भी खेल किया जाता है । फ सने पर लेखपालो को बलि का बकरा बनाया जाता है, इस तरह के दर्जनों मामलों सहित भूमि विवाद को भड़काने के लिए गलत नापजोख जानबूझकर कराई जाती है, उसका लाभ माफि याओं को प्राप्त होता है, बन्दबाट में सबकी भागीदारी पद के आधार पर निर्धारित होती है।
तहसीलदार घूमकर सदर में
भूमाफि याओं से सांठगांठ कर सैकड़ो बीघा सरकारी भूमि को निगल जाने वाली सदर तहसील में वर्तमान तहसीलदार सौरभ शुक्ला की यहां तीसरी बार तैनती भी अपने आप मे एक विशेष चर्चा का कारण बनी हुई है, उच्चाधिकारियों को प्रसन्न कर मलाईदार तहसील में तैनाती पाने की कला के वही बड़े खिलाड़ी है, वह घुमफि रकर सदर तहसील में किस योग्यता के बल पर तीसरी बार यहां तैनात हुए है इसकी जांच अवश्य होनी चाहिए यही नही जांच का बिंदु भी यह होना चाहिए कि इनके कार्यकाल में कितनी नजूल भूमि माफि याओं के कब्जे में जाकर बिक्री हुई।
रायबरेली। सदर तहसील के शहरी इलाके में लगभग दस वर्ष पूर्व सरकारी अभिलेखों में लगभग नौ सौ एकड़ सरकारी नजूल भूमि दर्ज थी । आज यह आंकड़ा सिकुड़ कर लगभग कुछ एकड़ पर आ गया है। प्रश्न यह है कि सरकारी अभिलेखों में दर्ज भूमि को भूमि खा गई या आसमान या तहसीलदार और कथित लेखपालो कि सांठ गांठ से भूमिमाफि या निगल गए। सदर तहसीलदर को यह इलाका इतना भाया की वह यहां का मोह छोड़ नही पा रहे है, ढाई वर्षो में उन्होंने जुगाड़ के बल पर यहा तीसरी बार तैनाती हासिल की। उनको किस अयोग्यता के आधार पर हटाया व किस योग्यता के बल पर उनकी तैनाती हुई यह कोई समझ नही पा रहा है। पिछली सरकार के समय जमीनों के शहर में बड़े खेल सदर तहसील में हुए रात में देर तक तहसील में लेखपाल से लेकर अधिकारी तक कार्यालय में भूमाफि याओं की भीड़ में सरकारी दस्तावेजों में हेराफेरी का खेलकर अनाप शनाप कमाई की गई। जमीनों को पहले विवादित बनाया गया फि र उसमें दबाव व भ्रष्र्टाचार के बल पर फ र्जी दस्तावेजों के सहारे यहां तक कोर्ट की फ र्जी डिग्री के आधार पर इंद्राज कर कीमती भूमियों पर प्लाटिंग की गई, सरकारी ऐशबाग अलपिका तक को गायब कर बिल्डिंगों व्यवसायिक केंद्रों का निर्माण हुआ, अवैध कब्जेदारों के विरुद्ध कार्यवाही शून्य रही, सेटिंग गेटिंग के खेल में विद्युत विभाग की भूमि तक को तहसील प्रशासन ने अवैध कब्जेदार की घोषित कर दी।
तहसीलदार तैनाती उठ रहा प्रश्न
सदर तहसीलदार यदि भूमि संरक्षण के मामले अत्यधिक योग्य व्यक्ति है, इसलिये इनकी तैनाती यहां बार बार हो रही है तो प्रश्न है कि अब तक कितनी भूमि अवैध कब्जेदारों से मुक्त कराई गई, भूमाफियाओ विरुद्ध क्या कार्यवाही हुई, नजूल भूमि के कब्जो के मामले में अब तक जांच क्यो नही कराई गयी, यह सब प्रश्न जनमानस के समक्ष मुहबाये खड़े है ।
कार्यवाही में भी खेल
भूमाफि याओं के विरुद्ध अभियान में फि सड्डी सदर तहसील में भूमि के विवादों को बढाने का कार्य लेखपाल तहसीलदार के मौखिक निर्देश पर करते है, उसके बाद मामलों के निस्तारण की कार्यवाही में भी खेल किया जाता है । फ सने पर लेखपालो को बलि का बकरा बनाया जाता है, इस तरह के दर्जनों मामलों सहित भूमि विवाद को भड़काने के लिए गलत नापजोख जानबूझकर कराई जाती है, उसका लाभ माफि याओं को प्राप्त होता है, बन्दबाट में सबकी भागीदारी पद के आधार पर निर्धारित होती है।
तहसीलदार घूमकर सदर में
भूमाफि याओं से सांठगांठ कर सैकड़ो बीघा सरकारी भूमि को निगल जाने वाली सदर तहसील में वर्तमान तहसीलदार सौरभ शुक्ला की यहां तीसरी बार तैनती भी अपने आप मे एक विशेष चर्चा का कारण बनी हुई है, उच्चाधिकारियों को प्रसन्न कर मलाईदार तहसील में तैनाती पाने की कला के वही बड़े खिलाड़ी है, वह घुमफि रकर सदर तहसील में किस योग्यता के बल पर तीसरी बार यहां तैनात हुए है इसकी जांच अवश्य होनी चाहिए यही नही जांच का बिंदु भी यह होना चाहिए कि इनके कार्यकाल में कितनी नजूल भूमि माफि याओं के कब्जे में जाकर बिक्री हुई।
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