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बृहनमुंबई सुरक्षा रक्षक बैंड ,जो आपके दिल दिमाग को अपने संगीत के धुन से मस्त कर देते है।

चिंतामणी देशमुख गार्डन मुलुंड ईस्ट मैं बृहनमुंबई सुरक्षा रक्षक बैंड को सुनने का मौका मुझे मिला। जब यह बैंड उस भीड़ भाड़ में अचानक अपनी बैंड की धुन को छेड़ता है,तो एक अजीब तरह की शांति का माहौल तैयार हो जाता है।आप के आस पास जब शादी, कार्यक्रम ,जो सँगीत के नाम पर हमेशा आपके दिमाग़ पर शोरगुल ही किया जाता है।लेकिन चिंतामणि गार्डन में महीने में एक बार यह बैंड के सदस्य वहां आकर संगीत का राग को लोंगो के मन को सकूँन दे सके इस तरह की संगीत यह टीम बजाती है।एक बार आप जनता आकर सुनना जरूर।

संगीत ध्वनियों की एक व्यवस्था है। अगर उसे एक खास तरह से तैयार और प्रस्तुत किया जाए, और उसकी ओर एक खास नजरिया रखा जाए, तो वह बहुत से लोगों के लिए बहुत उपयोगी उपकरण हो सकता है। भारत में कई संगीतकारों के बारे में तमाम कहानियां और किंवदंतियां प्रचलित हैं। इनमें से तानसेन खास तौर पर प्रसिद्ध हुए। तानसेन के गुरु हरिदास थे, जिनके नाम का मतलब है, ईश्वर का दास। हरिदास ने बहुत से प्रतिभाशाली संगीतकार तैयार किए, मगर सिर्फ तानसेन प्रसिद्ध हुए क्योंकि वह राजा के लिए गाने को तैयार थे। उनके बाकी शिष्यों ने ईश्वर के अलावा किसी और के लिए गाने से इंकार कर दिया। हरिदास ने संगीत की शिक्षा इस तरह दी कि वह सिर्फ ईश्वर के लिए हो। अगर कोई संयोग से उसे सुन लेता, तो यह उसके लिए सौभाग्य की बात होती। मगर संगीत को कभी दर्शकों के लिए प्रस्तुत नहीं किया जाता था। राजा या दरबार के लिए भी नहीं। कई बार जब ये संगीतकार गाने से मना कर देते थे, तो उनके गले काट दिए जाते थे क्योंकि मोटी बुद्धि वाले लोगों को लगता था कि संगीत उनके गले में छिपा है।

तानसेन ने एक तरह से अपने गुरु के मूल्यों और अपनी चेतना के साथ समझौता किया। एक दिन तानसेन के संरक्षक अकबर ने उन्हें एक पदवी देनी चाही। उसने तानसेन के हुनर की तारीफ करते हुए कहा, ‘तुम इस धरती के सबसे महान संगीतकार हो। तुम्हारा मुकाबला कोई नहीं कर सकता।’ मगर तानसेन ने जवाब दिया, ‘नहीं, महाराज, मैं इस पदवी को स्वीकार नहीं कर सकता क्योंकि मुझसे भी कई गुना अच्छे संगीतकार हैं।’ अकबर बोला, ‘क्या? तुमसे बेहतर भी कोई है और वे मेरे दरबार में नहीं हैं? कहां हैं वे?’ एक शक्तिशाली सम्राट के दरबार में सबसे अधिक दौलत, सबसे सुंदर स्त्रियां और सबसे प्रतिभाशाली लोग होते थे। राजा हर बेहतरीन चीज को अपने दरबार में चाहता था। भारत में कई सदियों तक यह परंपरा रही थी कि अगर 12 या 13 साल की कोई बहुत खूबसूरत लड़की होती थी, तो उसके माता-पिता उसे कुरूप बना देते थे या उसे कोई दाग दे देते थे। वरना, राजा उसे उठवा लेता।

इसलिए, जब तानसेन ने कहा, ‘मुझसे बेहतर, कई गुना बेहतर संगीतकार भी हैं,’ तो अकबर चिढ़ गया। उसने पूछा, ‘कौन हैं वे?’ तानसेन ने जवाब दिया, ‘दो बहनें हैं, जो मुझसे काफी प्रतिभाशाली हैं।’ अकबर ने इन बहनों को न्यौता भेजा। जब किसी राजा का न्यौता आता था, तो आपको जाना ही पड़ता था, वरना दंड भुगतने के लिए तैयार रहना होता था। उसके संदेशवाहक एक पालकी लेकर इन लड़कियों के घर गए और उनके परिवार को ढेर सारे बहुमूल्य कपड़े और उपहार दिए।

जब उन लड़कियों ने यह देखा तो उन्हें लगा कि उनके पास न्यौता स्वीकार करने के सिवा कोई चारा नहीं है। इसलिए, उन्होंने संदेशवाहकों से कहा, ‘हम अभी यात्रा नहीं कर सकते, इसलिए कृपया तीन दिन इंतजार कीजिए।’ जब राजा के लोग इंतजार कर रहे थे, लड़कियों ने संगीत की साधना शुरू कर दी, जो घर के बाहर तक सुनाई दे रही थी। तीसरे दिन, जब उन्हें राजा के पास जाना था, उनकी मृत्यु हो गई। लोगों को लगा कि उन्होंने जहर खा लिया या कुएं में कूद गईं। ऐसा भी हो सकता था, मगर जैसा कि वर्णन किया गया, ऐसा लगा कि उन्होंने खुद अपना शरीर त्याग दिया था। सिर्फ ध्वनि के उच्चारण से शरीर छोड़ना संभव है। मैंने ऐसे लोगों को देखा है, जिन्होंने बस ‘शंभो’ कहते हुए अपना शरीर त्याग दिया। इस तरह बहुत से लोगों ने शरीर त्यागा है।

जब अकबर तक यह खबर पहुंची, तो वह काफी परेशान हो गया, ‘वे मेरे दरबार में आ सकती थीं। मैं उन्हें रानियों की तरह रखता। उनकी मुंहमांगी चीज देता। उन्होंने अपनी जान क्यों दे दी?’ बीरबल ने जवाब दिया, ‘वे संगीत को ईश्वर के लिए एक भेंट के रूप में देखते हैं। उनके लिए अपना जीवन महत्वपूर्ण नहीं है। यह कोई महत्व नहीं रखता कि आप उन्हें क्या दे सकते हैं, न ही दरबार और हैसियत की उनके लिए अहमियत है। उनके लिए ध्वनि पर अधिकार पाना और उससे जिन चीजों को स्पर्श किया जा सकता है, बस यही दो चीजें अहम हैं। उन्होंने परमानंद को जान लिया है। सर्वश्रेष्ठ चीज कभी आपके दरबार में नहीं आएगी क्योंकि वे कभी आपके दरबार के लिए समझौता नहीं करेंगे।’

अकबर के दरबार के संगीतकार तानसेन संगीत में इतने उस्ताद थे कि जब वह मेघ राग गाते थे, तो बारिश हो जाती थी, दीपक राग गाने पर दीपक अपने आप जल उठते थे। इसलिए वह एक उस्ताद थे, मगर फिर भी उन्होंने कहा, ‘मैं कुछ नहीं हूं’ क्योंकि जिन लोगों ने दरबार में आने से इंकार कर दिया था, वे इन चीजों से काफी परे थे।

अगर आप अस्तित्व के विविध रूपों और इंसानी आवाज से उत्पन्न होने वाली विविध ध्वनियों में सही तालमेल बिठा पाते हैं, तो आप सृष्टि से परे जाकर सृष्टि के स्रोत को छू सकते हैं। इसलिए, चैतन्य की साधना में संगीत एक शक्तिशाली उपकरण रहा है। 
osho

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