मार्ग पर गुरु आखिरी बाधा होती है। गुरु के प्रति प्रेम को गिराना बहुत मुश्किल है। तुम सब कुछ गिरा सकते हो--तुम सारी दुनिया का त्याग कर सकते हो, तुम स्वयं का त्याग कर सकते हो--लेकिन जब तक कि आखिरी चीज भी गिरा नहीं दी जाए, गुरु के प्रति लगाव की छोटी सी बात तुम्हारे अहंकार का मूल बन जाता है।
गौतम बुद्ध ने कहा, "यदि तुम मार्ग में मुझसे मिलो, तत्काल मेरा सिर काट देना।' वे लाक्षणिक बात कर रहे हैं। क्योंकि जब तुम ध्यान करते हो हर चीज विदा हो जाएगी, लेकिन अंततः, तुम देखोगे कि गुरु वहां है। जब सारी दुनिया विदा हो गई तब गुरु मौजूद होगा। यह तुम्हारा अखिरी प्रेम है, और यह इतना तृप्तिदायी है, इतना शांतिदायी है कि तुम उस दशा में हमेशा के लिए बने रहना चाहते हो।
सिर्फ गुरु कह सकता है कि "यह लक्ष्य नहीं है। एक कदम और : गुरु के इस मोह को भी जाने दो ताकि तुम पूरी तरह से मोह से मुक्त हो जाओ।' पूरी तरह से मोह से मुक्त होने पर अहंकार विदा हो जाता है। अहंकार का विदा हो जाना तुम्हारा विदा हो जाना नहीं है। अहंकार का विदा हो जाना पहली बार तुम्हारा होना होता है; झूठ विदा हो जाता है और सत्य प्रकाशित होता है।
यह कठिन है, लेकिन इसे संभव करना होगा। यह असंभव नहीं है क्योंकि बहुतों ने यह किया है। और यह तुम गुरु के खिलाफ नहीं कर रहे हो; तुम गुरु के संदेश को पूरा कर रहे हो। अहंकार को विदा हो जाने दो। लेकिन यह तब ही विदा होता है जब वहां कोई मोह नहीं बचता। और जिस क्षण जरा भी अहंकार नहीं बचता, पहली बार तुम होते हो। तब तुम गुरु के प्रति हमेशा के लिए अनुग्रह से भरते हो क्योंकि यदि उन्होंने जोर नहीं दिया होता, तुम सुंदर अवस्था में बने रहते। लेकिन वहां इसके पार भी कुछ है; और गुरु नहीं चाहता कि तुम मार्ग पर अटक जाओ।
गुरु चाहता है कि तुम पूरी तरह से मुक्त हो जाओ, हर चीज से मुक्त हो जाओ; हर चीज में वह भी शामिल है।
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