बिजली चोरी से संबंधित केस पेंडिंग है, बल्कि हमें इससे मतलब है कि उन्हें बिजली मिले। इलेक्ट्रिसिटी ऐक्ट-43 में प्रावधान है कि हरेक बिजली वितरण कंपनी की ड्यूटी है।सुप्रीम कोर्ट !
नई दिल्ली।। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बिजली कंपनी की ड्यूटी है कि वह अपने इलाके के हर परिसर में बिजली सप्लाई करे। बिजली चोरी केस के बावजूद बिजली कंपनी की ड्यूटी है कि वह उपभोक्ता को बिजली सप्लाई करे। इलेक्ट्रिसिटी ऐक्ट के तहत कंपनी इस जिम्मेदारी से बच नहीं सकती। वसंत कुंज में रहने वाली एक महिला ने बिजली सप्लाई काटे जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया।
याचिकाकर्ता वसंत कुंज के एक फ्लैट में रहती हैं। उन्होंने अर्जी दाखिल कर बीएसईएस राजधानी पावर लिमिटेड को प्रतिवादी बनाया। उन्होंने कहा कि वह पेशे से डॉक्टर हैं और वसंत कुंज के फ्लैट में रहती हैं, जिसमें ब्रह्मानंद शर्मा के नाम पर मीटर लगा हुआ था। वह 28 से 30 जुलाई, 2007 के बीच पटना गईं। लेकिन इस बीच दो लोगों ने मिलकर बिजली का मीटर हटा दिया और वहां अस्थायी बिजली सेवा बहाल कर दी। उनके पास लगातार प्रोविजनल बिल आता रहा।
उन्होंने बिजली मीटर हटाने के बारे में जॉइंट कमिश्नर तक से शिकायत की, लेकिन कोई ऐक्शन नहीं हुआ, बल्कि उनके खिलाफ क्रिमिनल केस दर्ज कर दिया गया। साथ ही, उनकी बिजली भी काटी गई। आखिरकार उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और कनेक्शन बहाल करने की गुहार लगाई।उन्होंने कहा कि उनकी बिजली बहाल की जाए। वह बिल पेमेंट करेंगी। सुप्रीम कोर्ट ने बीएसईएस राजधानी पावर लिमिटेड को नोटिस जारी किया। बिजली कंपनी की ओर से पेश ऐडवोकेट ने अदालत को बताया कि महिला के खिलाफ बिजली चोरी का केस चल रहा है, जो साकेत कोर्ट में पेंडिंग है। इसी कारण उनकी बिजली काटी गई है।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ए. के. पटनायक और जस्टिस रंजन गोगोई ने फैसला दिया कि अदालत को इस बात से मतलब नहीं कि महिला के खिलाफ बिजली चोरी से संबंधित केस पेंडिंग है, बल्कि हमें इससे मतलब है कि उन्हें बिजली मिले। इलेक्ट्रिसिटी ऐक्ट-43 में प्रावधान है कि हरेक बिजली वितरण कंपनी की ड्यूटी है कि वह अपने इलाके के हर परिसर में बिजली सप्लाई करे। मौजूदा मामले में बिजली कंपनी इस जुगत में लगी हुई है कि किसी भी तरह उसे बिजली सप्लाई न करना पड़े। जबकि याचिकाकर्ता महिला का यह पूरा अधिकार है कि उसे बिजली दी जाए।
याचिकाकर्ता वसंत कुंज के एक फ्लैट में रहती हैं। उन्होंने अर्जी दाखिल कर बीएसईएस राजधानी पावर लिमिटेड को प्रतिवादी बनाया। उन्होंने कहा कि वह पेशे से डॉक्टर हैं और वसंत कुंज के फ्लैट में रहती हैं, जिसमें ब्रह्मानंद शर्मा के नाम पर मीटर लगा हुआ था। वह 28 से 30 जुलाई, 2007 के बीच पटना गईं। लेकिन इस बीच दो लोगों ने मिलकर बिजली का मीटर हटा दिया और वहां अस्थायी बिजली सेवा बहाल कर दी। उनके पास लगातार प्रोविजनल बिल आता रहा।
उन्होंने बिजली मीटर हटाने के बारे में जॉइंट कमिश्नर तक से शिकायत की, लेकिन कोई ऐक्शन नहीं हुआ, बल्कि उनके खिलाफ क्रिमिनल केस दर्ज कर दिया गया। साथ ही, उनकी बिजली भी काटी गई। आखिरकार उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और कनेक्शन बहाल करने की गुहार लगाई।उन्होंने कहा कि उनकी बिजली बहाल की जाए। वह बिल पेमेंट करेंगी। सुप्रीम कोर्ट ने बीएसईएस राजधानी पावर लिमिटेड को नोटिस जारी किया। बिजली कंपनी की ओर से पेश ऐडवोकेट ने अदालत को बताया कि महिला के खिलाफ बिजली चोरी का केस चल रहा है, जो साकेत कोर्ट में पेंडिंग है। इसी कारण उनकी बिजली काटी गई है।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ए. के. पटनायक और जस्टिस रंजन गोगोई ने फैसला दिया कि अदालत को इस बात से मतलब नहीं कि महिला के खिलाफ बिजली चोरी से संबंधित केस पेंडिंग है, बल्कि हमें इससे मतलब है कि उन्हें बिजली मिले। इलेक्ट्रिसिटी ऐक्ट-43 में प्रावधान है कि हरेक बिजली वितरण कंपनी की ड्यूटी है कि वह अपने इलाके के हर परिसर में बिजली सप्लाई करे। मौजूदा मामले में बिजली कंपनी इस जुगत में लगी हुई है कि किसी भी तरह उसे बिजली सप्लाई न करना पड़े। जबकि याचिकाकर्ता महिला का यह पूरा अधिकार है कि उसे बिजली दी जाए।
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