! प्रभु प्रेम दीवानगी है !
प्रेम यानी दीवानगी। प्रेम यानी पागलपन। प्रेम यानी तर्क के बाहर हो जाना। प्रेम यानी बुद्धि की झंझटों से छूट जाना। प्रेम यानी एक तरह की शराब, एक तरह की मस्ती , जो तुम अपने भीतर ही निर्मित कर लेते हो।तुमने प्रेमी की आंख देखी! सदा पिए-पिए मालूम पड़ता है। तुमने प्रेमी के पैर देखे! कहीं रखता कहीं पड़ते हैं!
प्रेम की कीमिया यही है कि तुम अपने ही भीतर शराब को पैदा करते हो; तुम्हारे भीतर ही शराब पैदा होने लगती है, फिर किसी मधुशाला में जाना नहीं पड़ता।साधारण प्रेम दीवाना बना देता है, तो परमात्मा के प्रेम की तो बात ही क्या कहनी! जहां भी प्रेम है वहां मस्ती है। फिर परमात्मा का प्रेम तो परम प्रेम है, तो परम मस्ती है।
प्रेम को प्रार्थना बनाओ।
मैं तो तुमसे कहता हूँ इस जगत के प्रेम को जानो ताकि द्वैत छाती में चुभ जाए कटार की भाँति ,
तभी तो तुम अद्वैत की तरफ चलोगे।
तभी तो तुम उस परम प्यारे को खोजोगे जिसके साथ मिलन एक बार हुआ तो हुआ।
जिसके साथ मिलन होने के बाद फिर कोई बिछुड़न नहीं होती ...........
*प्रेम_पंथ_ऐसो_कठिन*
*🌱ओशो🌴*
प्रेम यानी दीवानगी। प्रेम यानी पागलपन। प्रेम यानी तर्क के बाहर हो जाना। प्रेम यानी बुद्धि की झंझटों से छूट जाना। प्रेम यानी एक तरह की शराब, एक तरह की मस्ती , जो तुम अपने भीतर ही निर्मित कर लेते हो।तुमने प्रेमी की आंख देखी! सदा पिए-पिए मालूम पड़ता है। तुमने प्रेमी के पैर देखे! कहीं रखता कहीं पड़ते हैं!
प्रेम की कीमिया यही है कि तुम अपने ही भीतर शराब को पैदा करते हो; तुम्हारे भीतर ही शराब पैदा होने लगती है, फिर किसी मधुशाला में जाना नहीं पड़ता।साधारण प्रेम दीवाना बना देता है, तो परमात्मा के प्रेम की तो बात ही क्या कहनी! जहां भी प्रेम है वहां मस्ती है। फिर परमात्मा का प्रेम तो परम प्रेम है, तो परम मस्ती है।
प्रेम को प्रार्थना बनाओ।
मैं तो तुमसे कहता हूँ इस जगत के प्रेम को जानो ताकि द्वैत छाती में चुभ जाए कटार की भाँति ,
तभी तो तुम अद्वैत की तरफ चलोगे।
तभी तो तुम उस परम प्यारे को खोजोगे जिसके साथ मिलन एक बार हुआ तो हुआ।
जिसके साथ मिलन होने के बाद फिर कोई बिछुड़न नहीं होती ...........
*प्रेम_पंथ_ऐसो_कठिन*
*🌱ओशो🌴*
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