जीवन का एक नियम है कि अगर तुम प्रतीक्षा कर सको तो सभी चीजें पूरी हो जाती हैं !! सूफी फकीर जुन्नैद !!
सूफी फकीर जुन्नैद के संबंध में खबर आयी–उसके शिष्य के पास, वह भी सम्राट था–कि तुम किसके पीछे लगे हो?
यह आदमी शराब पीता है और गलत स्त्रियों के साथ भी यह आदमी देखा गया है। सम्राट ने कहा, अगर ऐसा होगा तो इसकी गर्दन मैं अपने हाथ से अलग कर दूंगा।
जिसके पैरों पर मैंने सिर रखा हो, अगर वह ऐसा गलत है तो मैं पीछे नहीं रहूंगा। यह तलवार मेरी इसकी गर्दन अलग कर देगी। लेकिन तुमने जब खबर दी है तो तुम्हें सिद्ध भी करना होगा। उसने कहा, इसमें कोई कठिनाई ही नहीं है; आप कल मेरे साथ चलें।
सम्राट को लेकर वह गया। एक झील के किनारे दोनों छिपकर खड़े हो गये। झील के उस पार जुन्नैद बैठा है, सुराही रखी है शराब की, प्याले ढाले जा रहे हैं और एक औरत बुर्का ओढ़े प्याले भर रही है।
सम्राट की तलवार बाहर आ गयी। उसने उस आदमी से कहा, तुम जाओ। अब कुछ और सिद्ध करने की जरूरत नहीं। अब मैं निपट लेता हूं। वह दस कदम आगे बढ़ा, लेकिन तब उसके मन में थोड़ा भय आने लगा, जुन्नैद को कैसे काट सकेगा? फिर सोचा, यह काम मैं अपने हाथ से क्यों करूं? यह तो सैनिक भी कर सकते हैं। मैं यह हत्या अपने सिर क्यों लूं?
उसने घोड़ा लौटा लिया। जैसे ही घोड़ा लौटाया, जुन्नैद की आवाज सुनी कि जब इतने दूर आ गये हो तो अब लौटो मत; और थोड़े पास आ जाओ। जब जानना ही चाहते हो तो बिलकुल पास आ जाओ। जरा भी फासला न रहे; तभी जान पाओगे। जुन्नैद की आवाज सुनकर सम्राट लौट भी न सका। पास आना पड़ा।
जुन्नैद ने सुराही उसके हाथ में दे दी। उसमें सिवाय पानी के और कुछ भी न था। और उसने स्त्री का बुर्का उलट दिया, वह जुन्नैद की मां थी!
सम्राट ने कहा, तो फिर यह क्या नाटक रचा है?
जुन्नैद ने कहा, शिष्यों के लिए। यह रोज चल रहा है नाटक। इस नाटक की वजह से न मालूम कितने भाग गये; जो भाग गये, अच्छा हुआ क्योंकि वे भागते ही। वे किसी कारण की तलाश में थे। कोई बहाना खोज रहे थे।
आचरण को देखकर गुरु के जो तय करेगा, उसने दूर से तय कर लिया; क्योंकि आचरण तो बाहर है। उसने घोड़ा पूरे करीब नहीं लाया, जल्दी लौट गया। अंतस से जो तय करेगा, वही करीब आया।
और अंतस के करीब वे ही आ पायेंगे, जो अपने संदेह पर ध्यान देना बंद करेंगे। संदेह पूरे वक्त आवाज दे रहा है कि सुनो मेरी! जो श्रद्धा को सुने और संदेह को न सुने, आज नहीं कल श्रद्धा उन्हें उस जगह ले आएगी, जहां संदेह के सारे बीज नष्ट हो जाएंगे! वहां परम श्रद्धा पूरी होगी, वहां पूर्णता को उपलब्ध होगी।
जीवन का एक नियम है कि अगर तुम प्रतीक्षा कर सको तो सभी चीजें पूरी हो जाती हैं। जीवन का ढंग चीजों को पूरा करने का है; अगर तुम प्रतीक्षा कर सको।
कच्चे फल मत तोड़ो, थोड़ी प्रतीक्षा करो; वे पकेंगे, गिरेंगे। तुम्हें तोड़ना भी न पड़ेगा, वृक्ष पर चढ़ना भी न पड़ेगा। जीवन का नियम है चीजों को पूर्ण करना। यहां सब चीजें पूरी होती हैं, सिर्फ प्रतीक्षा चाहिए।
लेकिन तुमने अगर जल्दी की तो तुम कच्चा फल तोड़ ले सकते हो। तब तुम्हें वृक्ष पर भी चढ़ना पड़ेगा और हाथ-पैर भी तोड़ ले सकते हो गिरकर, और कच्चा फल हाथ लगेगा। और एक दफा वृक्ष से टूट गया तो उसके पकने के उपाय समाप्त हो गये।
अगर उसको घर में रखकर तुमने पकाया तो वह पकना नहीं है, वह केवल सड़ना है क्योंकि पकने के लिए जीवंत ऊर्जा चाहिए। वह फिर ऐसा है, जैसे किसी ने धूप में बाल सफेद कर लिये हों। वह अनुभव प्रौढ़ता में नहीं, जीवन की प्रक्रिया से गुजरकर नहीं।
तो तुम घर में छिपाकर भी फल को पका सकते हो, लेकिन वह सिर्फ सड़ा हुआ फल है। पकने के लिए तो जीवंत ऊर्जा चाहिए थी वृक्ष की, उससे तुमने उसे तोड़ लिया। हर चीज पकती है। यहां बिना पका कुछ भी नहीं रह जाता। हर चीज पूर्णता पर पहुंचती है। जल्दी भर नहीं करना! औ हमारा मन बड़ी जल्दी करता है।
ओशो, बिन बाती बिन तेल-१४
यह आदमी शराब पीता है और गलत स्त्रियों के साथ भी यह आदमी देखा गया है। सम्राट ने कहा, अगर ऐसा होगा तो इसकी गर्दन मैं अपने हाथ से अलग कर दूंगा।
जिसके पैरों पर मैंने सिर रखा हो, अगर वह ऐसा गलत है तो मैं पीछे नहीं रहूंगा। यह तलवार मेरी इसकी गर्दन अलग कर देगी। लेकिन तुमने जब खबर दी है तो तुम्हें सिद्ध भी करना होगा। उसने कहा, इसमें कोई कठिनाई ही नहीं है; आप कल मेरे साथ चलें।
सम्राट को लेकर वह गया। एक झील के किनारे दोनों छिपकर खड़े हो गये। झील के उस पार जुन्नैद बैठा है, सुराही रखी है शराब की, प्याले ढाले जा रहे हैं और एक औरत बुर्का ओढ़े प्याले भर रही है।
सम्राट की तलवार बाहर आ गयी। उसने उस आदमी से कहा, तुम जाओ। अब कुछ और सिद्ध करने की जरूरत नहीं। अब मैं निपट लेता हूं। वह दस कदम आगे बढ़ा, लेकिन तब उसके मन में थोड़ा भय आने लगा, जुन्नैद को कैसे काट सकेगा? फिर सोचा, यह काम मैं अपने हाथ से क्यों करूं? यह तो सैनिक भी कर सकते हैं। मैं यह हत्या अपने सिर क्यों लूं?
उसने घोड़ा लौटा लिया। जैसे ही घोड़ा लौटाया, जुन्नैद की आवाज सुनी कि जब इतने दूर आ गये हो तो अब लौटो मत; और थोड़े पास आ जाओ। जब जानना ही चाहते हो तो बिलकुल पास आ जाओ। जरा भी फासला न रहे; तभी जान पाओगे। जुन्नैद की आवाज सुनकर सम्राट लौट भी न सका। पास आना पड़ा।
जुन्नैद ने सुराही उसके हाथ में दे दी। उसमें सिवाय पानी के और कुछ भी न था। और उसने स्त्री का बुर्का उलट दिया, वह जुन्नैद की मां थी!
सम्राट ने कहा, तो फिर यह क्या नाटक रचा है?
जुन्नैद ने कहा, शिष्यों के लिए। यह रोज चल रहा है नाटक। इस नाटक की वजह से न मालूम कितने भाग गये; जो भाग गये, अच्छा हुआ क्योंकि वे भागते ही। वे किसी कारण की तलाश में थे। कोई बहाना खोज रहे थे।
आचरण को देखकर गुरु के जो तय करेगा, उसने दूर से तय कर लिया; क्योंकि आचरण तो बाहर है। उसने घोड़ा पूरे करीब नहीं लाया, जल्दी लौट गया। अंतस से जो तय करेगा, वही करीब आया।
और अंतस के करीब वे ही आ पायेंगे, जो अपने संदेह पर ध्यान देना बंद करेंगे। संदेह पूरे वक्त आवाज दे रहा है कि सुनो मेरी! जो श्रद्धा को सुने और संदेह को न सुने, आज नहीं कल श्रद्धा उन्हें उस जगह ले आएगी, जहां संदेह के सारे बीज नष्ट हो जाएंगे! वहां परम श्रद्धा पूरी होगी, वहां पूर्णता को उपलब्ध होगी।
जीवन का एक नियम है कि अगर तुम प्रतीक्षा कर सको तो सभी चीजें पूरी हो जाती हैं। जीवन का ढंग चीजों को पूरा करने का है; अगर तुम प्रतीक्षा कर सको।
कच्चे फल मत तोड़ो, थोड़ी प्रतीक्षा करो; वे पकेंगे, गिरेंगे। तुम्हें तोड़ना भी न पड़ेगा, वृक्ष पर चढ़ना भी न पड़ेगा। जीवन का नियम है चीजों को पूर्ण करना। यहां सब चीजें पूरी होती हैं, सिर्फ प्रतीक्षा चाहिए।
लेकिन तुमने अगर जल्दी की तो तुम कच्चा फल तोड़ ले सकते हो। तब तुम्हें वृक्ष पर भी चढ़ना पड़ेगा और हाथ-पैर भी तोड़ ले सकते हो गिरकर, और कच्चा फल हाथ लगेगा। और एक दफा वृक्ष से टूट गया तो उसके पकने के उपाय समाप्त हो गये।
अगर उसको घर में रखकर तुमने पकाया तो वह पकना नहीं है, वह केवल सड़ना है क्योंकि पकने के लिए जीवंत ऊर्जा चाहिए। वह फिर ऐसा है, जैसे किसी ने धूप में बाल सफेद कर लिये हों। वह अनुभव प्रौढ़ता में नहीं, जीवन की प्रक्रिया से गुजरकर नहीं।
तो तुम घर में छिपाकर भी फल को पका सकते हो, लेकिन वह सिर्फ सड़ा हुआ फल है। पकने के लिए तो जीवंत ऊर्जा चाहिए थी वृक्ष की, उससे तुमने उसे तोड़ लिया। हर चीज पकती है। यहां बिना पका कुछ भी नहीं रह जाता। हर चीज पूर्णता पर पहुंचती है। जल्दी भर नहीं करना! औ हमारा मन बड़ी जल्दी करता है।
ओशो, बिन बाती बिन तेल-१४
Comments