सुष्ट हित के विरुद्ध निर्बन्धन-
जहां कि सम्पत्ति के अन्तरण पर उस सम्पत्ति में किसी व्यक्ति के पक्ष में हित आत्यन्तिकत: सृष्ट किया जाता हो, किन्तु अन्तरण के निर्बन्धन निदेश करते हों कि वह ऐसे हित का किसी विशिष्ट रीति से उपयोजन या उपभोग करे, वहां वह ऐसे हित को ऐसे प्राप्त और व्ययनित करने का हकदार होगा मानो ऐसा कोई निदेश था ही नहीं।
जहां कि ऐसा कोई निदेश स्थावर सम्पत्ति के एक टुकड़े के बारे में उस सम्पत्ति के दूसरे टुकड़े के फायदाप्रद उपभोग को सुनिश्चित करने के प्रयोजन से किया गया हो, वहां इस धारा की कोई भी बात किसी ऐसे अधिकार पर, जो अन्तरक ऐसे निदेश का प्रवर्तन कराने के लिए रखता हो, या किसी ऐसे उपचार पर, जो वह उसके भंग के बारे में रखता हो, प्रभाव डालने वाली नहीं समझी जाएगी।
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