सन 1970 में इस सिद्धांत का प्रतिपादन करने वाले हेश ने अपराध के नियंत्रण का एक सिद्धांत दिया जो आपराधिक व्यवहार सीखने की स्वीकारात्मक तथा निषेधात्मक प्रवृत्तियों के आधार पर बनाया गया था। हेश ने कहा कि विशेष परिस्थितियों में ही व्यक्ति विधि के अनुरूप कार्य करता है, आचरण करता है। इसी प्रकार व्यक्ति आपराधिक कुकृत्य भी तभी करता है जब उसके लिए कुछ विशेष परिस्थितियां पैदा हो जाती हैं। इस सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति का आपराधिक व्यवहार, क्रिया के प्रति प्रतिक्रिया मात्र है और कुछ भी नहीं तथा व्यक्ति वही कार्य शीघ्र सीखता है, शीघ्र करता है, जिसके एवज में उसे कुछ लाभ मिलने की आशा हो। इसलिए अपराध पर तभी नियंत्रण पाया जा सकता है जब व्यक्ति को लगे कि अपराध करने पर उसे नुकसान होगा, दंड मिलेगा।
सन 1970 में इस सिद्धांत का प्रतिपादन करने वाले हेश ने अपराध के नियंत्रण का एक सिद्धांत दिया जो आपराधिक व्यवहार सीखने की स्वीकारात्मक तथा निषेधात्मक प्रवृत्तियों के आधार पर बनाया गया था। हेश ने कहा कि विशेष परिस्थितियों में ही व्यक्ति विधि के अनुरूप कार्य करता है, आचरण करता है। इसी प्रकार व्यक्ति आपराधिक कुकृत्य भी तभी करता है जब उसके लिए कुछ विशेष परिस्थितियां पैदा हो जाती हैं। इस सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति का आपराधिक व्यवहार, क्रिया के प्रति प्रतिक्रिया मात्र है और कुछ भी नहीं तथा व्यक्ति वही कार्य शीघ्र सीखता है, शीघ्र करता है, जिसके एवज में उसे कुछ लाभ मिलने की आशा हो। इसलिए अपराध पर तभी नियंत्रण पाया जा सकता है जब व्यक्ति को लगे कि अपराध करने पर उसे नुकसान होगा, दंड मिलेगा।
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