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जब उदास हो, उस पर ध्यान करो!


जब उदास हो, उस पर ध्यान !

जल्दी में मत रहो कि तुम्हें इससे मुक्त होना है, और किसी दूसरी बात में भी मत व्यस्त हो जाओ ताकि तुम उदासी को भूल जाओ। इस तरह, तुम एक अद्भुत अवसर से चूक जाओगे -- क्योंकि उदासी की अपनी गहराई है, उदासी की अपनी सुंदरता है, उदासी का अपना स्वाद है!

जीओ इसे, इसमें विश्रांत होओ, इसमें गहरे उतरो; इससे पलायन का प्रयास किये बगैर। इसे रहने दो, आनंद लो इसका। यह तुम्हारे होने की खिलावट है!

उदासी भी तुम्हारे होने की खिलावट है। और तुम आश्चर्यचकित हो जाओगे यदि तुम उदासी पर ध्यान कर सको, तो यह अपने रहस्य तुम्हारे पर प्रकट कर देगी -- और उसका महानतम मूल्य है।

और उदासी एक बार तुम्हारे ऊपर अपने रहस्य प्रकट कर दे, तो यह विदा हो जायेगी। उसका काम हो गया, उसका संदेश दे दिया गया। और जब उदासी विदा हो जाती है, तो आनंद पैदा होता है!

आनंद तभी पैदा होता है, जब उदासी ध्यान के द्वारा विदा हो जाती है; इसके अलावा कोई और रास्ता नहीं है। जब तुम उदासी की बर्फ को जो तुम्हें चारों ओर से घेरे हुए है, तोड़ देते हो तो आनंद उगता है। सच तो यह है कि उदासी बीज की पर्त है -- यह सुरक्षित है, यह दुश्मन नहीं है।

जब एक बार बीज अपनी सुरक्षा को गिरा देता है, मिट्टी को समर्पित हो जाता है, तो पर्त मर गई, तभी अंकुरण होता है। भीतर ठीक ऐसा ही घटता है।

किसी भी नकारात्मकता पर ध्यान करो, और धीरे-धीरे तुम आश्चर्यों से भर जाओगे। उदासी आनंद में बदल जाती है, क्रोध करुणा में बदल जाता है, लोभ बाँटने में बदल जाता है; और इसी तरह से बहुत कुछ बदलता है।

भीतर के रसायन का यह विज्ञान है कि कैसे नकारात्मकता को विधायकता में बदला जाये!

ओशो

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