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धरतीपुत्र एवं गंगा पुत्र बताने वाले पूर्व सी.एम भूपेन्द्र सिंह हुड्डा का कारनामा मनोहर सरकार में हुई जांच, सी.बी.आई ने डी.टी.पी निदेशक कार्यालय में छापामारकर किए दस्तावेज जब्त

गुडग़ंव में 10 हजार करोड़ का जमीन अधिग्रहण घोटाला

धरतीपुत्र एवं गंगा पुत्र बताने वाले पूर्व सी.एम भूपेन्द्र सिंह हुड्डा का कारनामा

मनोहर सरकार में हुई जांच, सी.बी.आई ने डी.टी.पी निदेशक कार्यालय में छापामारकर किए दस्तावेज जब्त

गुड़गांव, 17 मार्च किसानों का मसीहा अपने आपको बताने वाले पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा कितने किसानों के शुभ चिंतक हैं। इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने किसानों को हजारों करोड़ों का चूना लगाया है। दस सालों के कार्यकाल में उन्होंने प्रदेश के साथ किसानों को कितना नुक्सान पहुंचाया और बिल्डरों को कितना फायदा पहुंचाया उसकी परतें मनोहर राज में खुलनी शुरू हो गई हैं। इप परतों के खुलने से यह बात साफ हो गई हैं कि हरियाणा में लोग मेहनती हैं लेकिन यहां के राजनेता और अफसरों ने मिल कर प्रदेश को दोनों हाथों से लूटा है। हुड्डा राज में पहले सरकार किसानों की वेशकीमती जमीन पर अधिगृहण के लिए धारा चार छह लगाने की प्रक्रिया चलाती थी। इसके बाद वहां पर बिल्डर्स सक्रिय हो जाते थे। यहां पर किसानों को सरकार जमीन का दाम कम देती थी। इसी बीच किसानों की मजबूरी का फायदा बिल्डर उठाते थे। वह किसानों की जमीन ओने-पोने में खरीद लेते थे। उसके बाद सरकार इस जमीन को अधिगृहण से मुक्त कर देती थी। इसी तरह का मामला हुड्डा राज में गुडग़ांव में 2010 में हुआ था। उस समय लगभग 10 हजार करोड़ का घोटाला हुआ। इसकी परतें मनोहर राज में उखडऩे लगी हैं। हुडा राज में हरियाणा में जमीन अधिग्रहण से संबंधित मामलों की जांच सी.बी.आई कर रही हैं। पिछले दिनों चंडीगढ़  में निदेशक टाउन एंड कंट्री प्लानर विभाग में छापा मार कर इस से संबंधित दस्तावेज उठा कर ले गई। दो दिन तक सी.बी.आई की टीम चंडीगढ़ में रह कर छानबीन करती रही। बताया जाता है कि गुडग़ांव में 2010 में हुड्डा सरकार के कार्यकाल में प्राइम लोकेशन की लगभग 1400 एकड़ जमीन का जनहित में अधिग्रहण करने का निर्णय ले लिया। इस जमीन पर सेक्शन 4 और 6 लगा दिया। इससे घबराए हुए किसानों ने लोगों के पास सहायता के लिए जाना श़ुरू कर दिया। यहां पर भू माफिया और बिल्डर सक्रिय हो गए। यहां पर किसानों की जमीन जो मूल्यवान थी उसको बिल्डर ने सस्ते में खरीद लिया। इसी बीच यहां पर सैक्टर 57 से लेर 68 विकसित होने की योजना बन गई। वहां पर एक डीलर ने टाउन शिप विकसित करने के लिए आवेदन कर दिया। इस आवेदन के साथ जरूरी दस्तावेज भी नहीं लगा दिए। इसके अलावा दूसरे ने भी दस्तावेज के साथ आवेदन लगा दिए। यह सब डी.टी.पी कार्यालय में बैठे अफसरों की मिलीभगत से हुआ। इसी बीच कार्यालय के एक कर्मचारी को इसकी भनक लग गई। उसने सीडी बना दी। बाद में मामला पचास लाख में निपटा। जब यह कर्मचारी 16 लाख रूपए की घड़ी पहनकर कार्यालय पहुंचा तो कार्यालय के मुखिया की आंखे भी खुली की खुली रह गई। उसने उसी समय आदेश दिए कि दस्तावेजों के साथ सीडी भी लगाई जाए। वहीं कार्यालय में क्लोज सर्किट कैमरे लगाने के आदेश दे डाले। इसके बाद सरकार बदली मनोहर सरकार आई। सरकार ने जमीन के अधिग्रहण से संबंधित मामलों की जांच सीबीआई को सौंप दी। सीबीआई ने डीटीपी से इससे संबंधित दस्तावेज मांगे। लेकिन इस मामले में डीटीपी कार्यालय के कर्मचारी और अधिकारी फंस रहे थे। सो उन्होंने दस्तावेज मुहैया नहीं करवाए। इसके बाद पिछले दिनों डीटीपी कार्यालय चंडीगढ़ में सीबीआई ने छापे मारे। दो दिन तक कार्रवाई चली। इसके बाद सारे दस्तोवज सीज कर अपने साथ ले गई। इसके बाद डीटीपी कार्यालय में कर्मचारियों और अधिकारियों के हाथ पांव फूल गए हैं। बताया जाता है कि हुड्डा राज में हुए जमीन अधिग्रहण और टाउन शिप विकसित होने के मामलों की जांच यदि ईमानदारी से मनोहर सरकार करवाए तो बड़े मामलों का खुलासा हो सकता है। इसमें शामिल आई.ए.एस और अन्य अफसरों और कर्मचारियों को दंडित किया जाए। इससे किसानों का भी भला होगा। और इतना धन प्राप्त होगा कि आने वाले समय में टैक्स लगाने की जरूरत नहीं लगेगी।    

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