सुकरात जैसे महापुरुष की पत्नी भी सुकरात से नाखुश थी.
बहुत नाखुश थी क्यों ?
क्योंकि वह दार्शनिक ऊहापोह में ऐसा लीन हो जाता था कि भूल ही जाता था कि पत्नी भी है।
एक दिन तो दार्शनिक चर्चा में एसा लीन था कि
चाय ही पीना भूल गया सुबह की। पत्नी को तो ऐसा क्रोध आया, चाय बनाकर बैठी है और वह बाहर बैठा चर्चा कर रहा है अपने शिष्यों के साथ उसके क्रोध की सीमा न रही, वह भरी हुई केतली को लाकर उसके सिर पर उंडेल दिया। उसका आधा मुंह जल गया।
जीवन- भर उसका मुंह जला रहा। वह आधा हिस्सा काला हो गया।
लेकिन सुकरात सिर्फ हंसा। उसके शिष्यों ने पूछा आप हंसते हैं इस पीड़ा में !
उसने कहा नहीं, मैं इसलिए हंसता हूं कि स्त्री का मन हमने कितना छोटा कर दिया है!
उसके लिये दर्शन भी, यह दर्शन का ऊहापोह भी ऐसा लगता है
जैसे कोई सौतेली पत्नी। उसने मेरे ऊपर नहीं डाली यह चाय,
मैं तो सिर्फ निमित्त हूं। अगर दर्शनशास्त्र उसे मिल जाये कहीं
तो गर्दन काट ले। दर्शनशास्त्र कहीं मिल नहीं सकता,
इसलिए मैं तो सिर्फ बहाना हूं।
किसी ने सुकरात से पूछा
एक युवक ने कि मैं विवाह करने का सोचता हूं। सोचा आपसे ज्यादा अनुभवी और कौन होगा! विचार में भी आप अंतिम शिखर हैं आप जीवन के भी सब मीठे -कडुवे अनुभव आपके हैं।
क्या सलाह देते हैं ?
तुम चकित होओगे सुकरात की सलाह सुनकर।
सुकरात ने कहा। विवाह करो।
वह युवक बोला आप, और कहते हैं विवाह करूं !
और मुझे सारी कथायें पता हैं। आपकी पत्नी जेनथिप्पे
और आपके बीच जो घटता है रोज-रोज, वह सब मुझे पता है।
वे अफवाहें मुझ तक भी पहुंची हैं। उनमें से अगर एक प्रतिशत भी सच है तो भी पर्याप्त है विवाह न करने के लिए।
सुकरात ने कहा उसमें से सौ प्रतिशत सत्य है, लेकिन फिर भी तुमसे कहता हूं विवाह करो, विवाह के लाभ ही लाभ हैं!
उस युवक ने कहा जरा मैं सुनूं ? कौन-से लाभ हैं ?
सुकरात ने कहा अगर अच्छी पत्नी मिली,समझदार पत्नी मिली,
तो प्रेम का विस्तार होगा। और प्रेम का विस्तार इस जगत में
सबसे बड़ा लाभ है। और अगर मेरी जैसी पत्नी मिल गई
तो वैराग्य का उदय होगा। और वैराग्य तो राग से भी ऊपर है।
वह तो प्रेम की पराकाष्ठा है।
वह तो परमात्मा से प्रेम है।
दोनों हालत में तुम
लाभ ही लाभ में रहोगे।
!! ओशो !!
[ हंसा तो मोती चुगैं ]
Comments