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पुलिस को शक होता है कि वह बाद में अपने बयान से मुकर सकता है तो उस गवाह का धारा-164 में मैजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज कराया जाता है।

मुकरने वाले गवाह यानी होस्टाइल विटनेस का मतलब होता है अदालत के सामने पुलिस की कहानी को सपोर्ट न करने वाला गवाह। अदालत में शपथ लेकर झूठ बोलने के मामले में दोषी पाए जाने पर सजा का प्रावधान है। कानूनी जानकार बताते हैं कि पुलिस किसी को भी छानबीन के दौरान सरकारी गवाह बना सकती है। गवाह की सहमति से पुलिस सीआरपीसी की धारा-161 के तहत उसका बयान दर्ज करती है। धारा-161 के बयान में किसी गवाह के दस्तखत लिए जाने का प्रावधान नहीं है। हालांकि किसी गवाह के सामने पुलिस अगर कोई रिकवरी आदि करती है तो रिकवरी मेमो पर गवाह के दस्तखत लिए जाते हैं।

शक है तो मैजिस्ट्रेट के सामने बयान
कानूनी जानकार अजय दिग्पाल ने बताया कि किसी गवाह के बारे में अगर पुलिस को शक होता है कि वह बाद में अपने बयान से मुकर सकता है तो उस गवाह का धारा-164 में मैजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज कराया जाता है। धारा-164 में बयान देने वाले का बाद में मुकरना आसान नहीं होता। वैसे इन तमाम बयानों के बाद भी ट्रायल कोर्ट के सामने दिया बयान ही मान्य बयान होता है और अदालत यह देखती है कि गवाह झूठ तो नहीं बोल रहा। अगर अदालत को यह लगता है कि गवाह अदालत में सच्चाई बयान कर रहा है और वह बयान पुलिस के सामने दिए बयान से चाहे पूरी तरह मेल नहीं भी खा रहा हो, तो भी उस बयान को स्वीकार किया जाता है। अदालत को जब यह लगता है कि गवाह शपथ लेकर झूठ बोल रहा है, तो वह उसके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए अनुशंसा कर सकती है।सात साल की सजा
कानूनी जानकार डी. बी. गोस्वामी बताते हैं कि असल में होता यह है कि अगर कोई गवाह पुलिस या मैजिस्ट्रेट के सामने दिए बयान से मुकरे, तो उसे मुकरा हुआ गवाह माना जाता है। अगर कोई सरकारी गवाह मुकर जाए, तो सरकारी वकील उसके साथ जिरह करता है और सच्चाई निकालने की कोशिश करता है। लेकिन इस प्रक्रिया में अदालत यह देखती है कि कौन से ऐसे गवाह हैं, जिन्होंने जानबूझकर अदालत से सच्चाई छुपाई या फिर झूठ बोला। ऐसे गवाहों के खिलाफ सीआरपीसी की धारा-340 के तहत अदालत शिकायत करती है। ऐसे गवाह के खिलाफ अदालत में झूठा बयान देने के मामले में आईपीसी की धारा-193 के तहत मुकदमा चलाया जाता है। इस मामले में दोषी पाए जाने पर अधिकतम 7 साल कैद की सजा का प्रावधान है। 

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