नये वर्ष के नये दिवस पर पहली बात तो यह कहना चाहूंगा कि दिन तो रोज ही नया होता है, लेकिन रोज नये दिन को न देख पाने के कारण हम वर्ष में कभी-कभी नये दिन को देखने की कोशिश करते हैं !! ओशो !!
नये वर्ष के नये दिवस पर पहली बात तो यह कहना चाहूंगा कि दिन तो रोज ही नया होता है, लेकिन रोज नये दिन को न देख पाने के कारण हम वर्ष में कभी-कभी नये दिन को देखने की कोशिश करते हैं। अपने को धोखा देने की तरकीबों में से एक तरकीब यह भी है। दिन तो कभी भी पुराना नहीं लौटता, रोज ही नया होता है। हर पल और हर क्षण नया होता है। लेकिन हमने अपनी पूरी जिंदगी को पुराना कर डाला है। उसमें नये की तलाश मन में बनी रहती है। तो वर्ष में एकाध दिन नया दिन मान कर अपनी इस तलाश को पूरा कर लेते हैं। लेकिन सोचने जैसा है जिसका पूरा वर्ष पुराना होता हो उसका एक दिन नया कैसे हो सकता है? जिसकी एक वर्ष की पुराना देखने की आदत हो वह एक दिन को नया कैसे देख पाएगा? मैं कल तक जो रोज हर दिन को, हर सुबह को पुराना देखा हूं आज की सुबह को नया कैसे देख सकूंगा? मैं ही देखने वाला हूं। और मेरा जो मन हर चीज को पुरानी कर लेता है वह आज को भी पुराना कर लेगा। तब फिर नये का धोखा पैदा करने के लिए नये कपड़े हैं, उत्सव है, मिठाइयां हैं, गीत हैं; फिर नये का हम धोखा पैदा करना चाहते हैं। लेकिन न नये कपड़ों से कुछ नया हो सकता है, न नये गीतों से कु...