साक्षी की साधना - भाग- 25
हमारा ध्यान चौबिसों घंटे विचारों में उलझा रहता है, जिससे हमारी बहुत सारी उर्जा विचारों को मिलती रहती है। अतः वे और भी शक्तिशाली हो जाते हैं। ओशो कहते हैं कि एक घंटा विचार करने में जो उर्जा खर्च होती है, उससे हम सारा दिन काम कर सकते हैं।
हम जितना ही विचारों को हटाने का प्रयास करते हैं, उतनी ही तीव्र गति से वे आक्रमण शुरू कर देते हैं। हमारा उन पर कोई वश नहीं चलता। उन्होंने हमें अपना गुलाम बनाकर रखा है। जबकि हम उनके मालिक हैं। श्वास के जितने भी प्रयोग हैं, वे हमें मालकियत की ओर अग्रसर करते हैं।
विचारों के साथ हमने जब भी कुछ करना चाहा, हम सफल नहीं हुए। क्योंकि विचार तीसरे तल (सूक्ष्म शरीर) पर होते हैं। और हम होते हैं पहले तल (स्थूल शरीर) पर। विचारों के साथ सीधे कुछ नहीं किया जा सकता, हमें शरीर के साथ ही कुछ करना होगा। हमें देखना होगा कि शरीर की किन स्थितियों में विचार आक्रमण नहीं करते। वह कौन सी स्थिति है जब हम विचार (तनाव) रहित होते हैं।
हमारा अनुभव रहा है कि जब भी हमें विचारों से मुक्ति अनुभव हुई है, वे क्षण थे प्रेम के, ध्यान के, सुख और आनंद के। जब हम किसी उत्सव में शामिल थे, या जब हम ध्यान में बैठे थे, या कि हमारा प्रेमी हमारे पास था। तब हमारी श्वास की जो गति थी, वह सामान्य श्वास की गति से भिन्न थी। तब श्वास एक अलग ही लयबद्ता लिये हुए थी। तो क्यों न हम श्वास की गति के साथ कुछ करें? श्वास की उस लयबद्ता को पाने की कोशिश करें, जब हम ध्यान या प्रेम में थे, तब जो लयबद्धता थी और जिसमें कोई विचार नहीं थे।
गहरी श्वास शरीर के शिथिल होने में मदद करती है और शरीर का शिथिल होना, मन के शिथिल होने में सहयोग करता है। मन का शिथिल होना यानि विचारों का शिथिल होना।
गहरी श्वास और विचारों में अंतर्संबंध है। गहरी श्वास होगी तो विचार नहीं होंगे। विचार होंगे तो गहरी श्वास नहीं होगी। श्वास अगर गहरी होगी तो विचार ढीले पड़ने शुरू होंगे। क्योंकि शरीर शिथिल होगा, जैसा नींद में होता है, तो मन भी शिथिल होने की ओर अग्रसर होगा।
बैठ जायें या लेट जायें, आँखें बंद कर लें और शरीर को ढीला छोड़ दें, शिथिल होने दें। श्वास को गहरी होने दें, जैसे नींद में जो श्वास की स्थिति होती है। श्वास नाभि को छूए, यानि पेट उपर-निचे हो। शरीर शिथिल और पूरी तरह विश्राम में होगा तो श्वास स्वत: ही गहरी होने लगेगी। श्वास अपनी लयबद्ता में 'चले', उसे 'चलाना' नहीं है।
श्वास के इन प्रयोगों से पहले शरीर को थकाना उपयोगी होगा, जैसे कोई खेल खेलना या नृत्य करना। वह कार्य जिसमें पसीना निकले, तो शरीर को विश्राम में ले जाना और श्वास की उस लय को पाना और भी आसान होगा।
आँखें बंद, शरीर शिथिल, श्वास गहरी और सारा ध्यान आती जाती श्वास पर। सारा ध्यान श्वास पर लगा दें। यहां विचार हमें परेशान नहीं करेंगे, क्योंकि गहरी श्वास के साथ उनका टिकना संभव नहीं है । दूसरे हम विचारों के साथ कुछ नहीं कर रहे हैं, उनसे ध्यान हटाकर श्वास पर लगा रहे हैं। हमारा सारा ध्यान मष्तिष्क में होता है और मष्तिष्क सोच-विचार का केंद्र है अतः हम सतत सोच-विचार में ही लगे रहते हैं। तो हम मष्तिष्क से ध्यान हटाकर श्वास पर लगा देंगे और तो विचार रूक जाएंगे क्योंकि श्वास सोच-विचार नहीं करती है।
विचारों के पास अपनी कोई शक्ति नहीं होती, उनकी कोई जड़ें नहीं होती, हमारे ध्यान देने की उर्जा से वे जीवित रहते हैं। यदि हम उन पर से अपना ध्यान हटा देंगे तो वे कमजोर होना शुरू हो जायेंगे।
अत:विचारों से ध्यान हटाकर आती जाती श्वास को देखना है। देखना है मतलब! श्वास बाहर जा रही है, श्वास भीतर जा रही है, इसका पूरा ध्यान रखना है, मन में दोहराना नहीं है। । धीरे-धीरे हमारी श्वास एक लयबद्ता लिये गहरी होने लगेगी। और जैसे ही हमारी श्वास गहरी और लयबद्ध होगी, ज्यादा से ज्यादा प्राणवायु (आक्सीजन) हमारे शरीर में प्रवेश करेगी जो हमें जगाये रखेगी।
हमें उबासी क्यों आती है? जिसमें हम मुँह खोलकर श्वास लेते हैं?
क्योंकि विचारों में व्यस्त रहने के कारण हम पेट से श्वास नहीं लेते, हमारी श्वास सिर्फ सीने तक ही जा पाती है, जिससे हमारे शरीर में आक्सीजन की कमी हो जाती है। और जब भी शरीर में आक्सीजन की कमी होती है, तो सुस्ती छाने लगती है, अतः शरीर पूरा मुँह खोलकर गहरी श्वास लेकर आक्सीजन की आपूर्ति करता है। यदि हमारी श्वास गहरी होगी तो शरीर में प्राणवायु (आक्सीजन) की कमी नहीं होगी, जिससे तनाव व सुस्तीपन नहीं होगा और हम सदेव ताजा रहेंगे।
एक बात और, इससे व्यसन मुक्ति भी होगी। सुस्ती आने पर हम चाय, तम्बाखू या सिगरेट का सेवन करते हैं। जिनमें 'निकोटिन' नामक पदार्थ होता है, जो हल्का नशा देता है जो शरीर को शिथिल करता है, जिससे श्वास नाभि से चलती है और हमें ज्यादा आक्सीजन मिलने पर ताजगी महसूस होती है। गहरी श्वास भी यही काम करेगी जो व्यसन करता है। गहरी श्वास से भी आक्सीजन वही काम करेगी जो निकोटिन करता है। यानि व्यसन हमारी श्वास को गहरा करता है तो क्यों न हम सीधे श्वास को ही गहरा कर शरीर को शिथिल कर लें ताकि विचार भी शिथिल हो जाए और व्यसन की जरूरत ही न रहे? व्यसन उथली होने और साक्षी की अनुपस्थिति में ही संभव है।
दूसरे, गहरी श्वास से कामकेन्द्र पर सोई हुई कुंडलिनी शक्ति पर चोट पड़ती है, जिससे उर्जा उपर की ओर बहने लगेगी और हमारे चक्रों पर गति करती हुई, उन्हें सक्रिय कर आध्यात्मिक विकास या ब्रम्हचर्य के घटने में सहयोगी होगी। ब्रम्हचर्य,जिसका अनुभव हमें प्रेम या काम में थोड़ी देर को होता है, वह अधिक समय तक स्वत: ही होने लगेगा।
तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण घटना जो घटेगी, वह यह है कि हमें तुरंत शरीर से अलग होने का अनुभव होगा, हम श्वास पर ध्यान देंगे तो हम शरीर को पूरी तरह से अपने से प्रथक देख और अनुभव कर पायेंगे। यहां हमें 'साक्षी' का अनुभव होगा। जैसे ही हमारा ध्यान आती जाती श्वास पर केंद्रित होगा, वैसे ही हमारा साक्षी भी लौट आयेगा। हमें स्पष्ट होगा कि श्वास आ रही है, श्वास जा रही है, शरीर श्वास ले रहा है और हम 'देख' रहे हैं। हम 'देखने' वाले होंगे अर्थात 'साक्षी' होंगे।
धीरे-धीरे यह स्थिति और भी गहराती जायेगी। जो उर्जा हमारे विचारों को मिल रही थी, जिससे तनाव पैदा हो रहा था, वही उर्जा हमारे साक्षी को मिलेगी। जिससे उसका उदय होना आसान हो जाएगा।
विज्ञान भैरव तंत्र (तंत्र-सूत्र) की आरंभिक नो विधियां श्वास से ही संबंधित हैं, तथा ओशो ध्यान योग और जिन खोजा तिन पाइया नामक पुस्तक में ओशो ने श्वास से संबंधित विधियों का विस्तार से वर्णन किया है।
स्वामी ध्यान उत्सव
हमारा ध्यान चौबिसों घंटे विचारों में उलझा रहता है, जिससे हमारी बहुत सारी उर्जा विचारों को मिलती रहती है। अतः वे और भी शक्तिशाली हो जाते हैं। ओशो कहते हैं कि एक घंटा विचार करने में जो उर्जा खर्च होती है, उससे हम सारा दिन काम कर सकते हैं।
हम जितना ही विचारों को हटाने का प्रयास करते हैं, उतनी ही तीव्र गति से वे आक्रमण शुरू कर देते हैं। हमारा उन पर कोई वश नहीं चलता। उन्होंने हमें अपना गुलाम बनाकर रखा है। जबकि हम उनके मालिक हैं। श्वास के जितने भी प्रयोग हैं, वे हमें मालकियत की ओर अग्रसर करते हैं।
विचारों के साथ हमने जब भी कुछ करना चाहा, हम सफल नहीं हुए। क्योंकि विचार तीसरे तल (सूक्ष्म शरीर) पर होते हैं। और हम होते हैं पहले तल (स्थूल शरीर) पर। विचारों के साथ सीधे कुछ नहीं किया जा सकता, हमें शरीर के साथ ही कुछ करना होगा। हमें देखना होगा कि शरीर की किन स्थितियों में विचार आक्रमण नहीं करते। वह कौन सी स्थिति है जब हम विचार (तनाव) रहित होते हैं।
हमारा अनुभव रहा है कि जब भी हमें विचारों से मुक्ति अनुभव हुई है, वे क्षण थे प्रेम के, ध्यान के, सुख और आनंद के। जब हम किसी उत्सव में शामिल थे, या जब हम ध्यान में बैठे थे, या कि हमारा प्रेमी हमारे पास था। तब हमारी श्वास की जो गति थी, वह सामान्य श्वास की गति से भिन्न थी। तब श्वास एक अलग ही लयबद्ता लिये हुए थी। तो क्यों न हम श्वास की गति के साथ कुछ करें? श्वास की उस लयबद्ता को पाने की कोशिश करें, जब हम ध्यान या प्रेम में थे, तब जो लयबद्धता थी और जिसमें कोई विचार नहीं थे।
गहरी श्वास शरीर के शिथिल होने में मदद करती है और शरीर का शिथिल होना, मन के शिथिल होने में सहयोग करता है। मन का शिथिल होना यानि विचारों का शिथिल होना।
गहरी श्वास और विचारों में अंतर्संबंध है। गहरी श्वास होगी तो विचार नहीं होंगे। विचार होंगे तो गहरी श्वास नहीं होगी। श्वास अगर गहरी होगी तो विचार ढीले पड़ने शुरू होंगे। क्योंकि शरीर शिथिल होगा, जैसा नींद में होता है, तो मन भी शिथिल होने की ओर अग्रसर होगा।
बैठ जायें या लेट जायें, आँखें बंद कर लें और शरीर को ढीला छोड़ दें, शिथिल होने दें। श्वास को गहरी होने दें, जैसे नींद में जो श्वास की स्थिति होती है। श्वास नाभि को छूए, यानि पेट उपर-निचे हो। शरीर शिथिल और पूरी तरह विश्राम में होगा तो श्वास स्वत: ही गहरी होने लगेगी। श्वास अपनी लयबद्ता में 'चले', उसे 'चलाना' नहीं है।
श्वास के इन प्रयोगों से पहले शरीर को थकाना उपयोगी होगा, जैसे कोई खेल खेलना या नृत्य करना। वह कार्य जिसमें पसीना निकले, तो शरीर को विश्राम में ले जाना और श्वास की उस लय को पाना और भी आसान होगा।
आँखें बंद, शरीर शिथिल, श्वास गहरी और सारा ध्यान आती जाती श्वास पर। सारा ध्यान श्वास पर लगा दें। यहां विचार हमें परेशान नहीं करेंगे, क्योंकि गहरी श्वास के साथ उनका टिकना संभव नहीं है । दूसरे हम विचारों के साथ कुछ नहीं कर रहे हैं, उनसे ध्यान हटाकर श्वास पर लगा रहे हैं। हमारा सारा ध्यान मष्तिष्क में होता है और मष्तिष्क सोच-विचार का केंद्र है अतः हम सतत सोच-विचार में ही लगे रहते हैं। तो हम मष्तिष्क से ध्यान हटाकर श्वास पर लगा देंगे और तो विचार रूक जाएंगे क्योंकि श्वास सोच-विचार नहीं करती है।
विचारों के पास अपनी कोई शक्ति नहीं होती, उनकी कोई जड़ें नहीं होती, हमारे ध्यान देने की उर्जा से वे जीवित रहते हैं। यदि हम उन पर से अपना ध्यान हटा देंगे तो वे कमजोर होना शुरू हो जायेंगे।
अत:विचारों से ध्यान हटाकर आती जाती श्वास को देखना है। देखना है मतलब! श्वास बाहर जा रही है, श्वास भीतर जा रही है, इसका पूरा ध्यान रखना है, मन में दोहराना नहीं है। । धीरे-धीरे हमारी श्वास एक लयबद्ता लिये गहरी होने लगेगी। और जैसे ही हमारी श्वास गहरी और लयबद्ध होगी, ज्यादा से ज्यादा प्राणवायु (आक्सीजन) हमारे शरीर में प्रवेश करेगी जो हमें जगाये रखेगी।
हमें उबासी क्यों आती है? जिसमें हम मुँह खोलकर श्वास लेते हैं?
क्योंकि विचारों में व्यस्त रहने के कारण हम पेट से श्वास नहीं लेते, हमारी श्वास सिर्फ सीने तक ही जा पाती है, जिससे हमारे शरीर में आक्सीजन की कमी हो जाती है। और जब भी शरीर में आक्सीजन की कमी होती है, तो सुस्ती छाने लगती है, अतः शरीर पूरा मुँह खोलकर गहरी श्वास लेकर आक्सीजन की आपूर्ति करता है। यदि हमारी श्वास गहरी होगी तो शरीर में प्राणवायु (आक्सीजन) की कमी नहीं होगी, जिससे तनाव व सुस्तीपन नहीं होगा और हम सदेव ताजा रहेंगे।
एक बात और, इससे व्यसन मुक्ति भी होगी। सुस्ती आने पर हम चाय, तम्बाखू या सिगरेट का सेवन करते हैं। जिनमें 'निकोटिन' नामक पदार्थ होता है, जो हल्का नशा देता है जो शरीर को शिथिल करता है, जिससे श्वास नाभि से चलती है और हमें ज्यादा आक्सीजन मिलने पर ताजगी महसूस होती है। गहरी श्वास भी यही काम करेगी जो व्यसन करता है। गहरी श्वास से भी आक्सीजन वही काम करेगी जो निकोटिन करता है। यानि व्यसन हमारी श्वास को गहरा करता है तो क्यों न हम सीधे श्वास को ही गहरा कर शरीर को शिथिल कर लें ताकि विचार भी शिथिल हो जाए और व्यसन की जरूरत ही न रहे? व्यसन उथली होने और साक्षी की अनुपस्थिति में ही संभव है।
दूसरे, गहरी श्वास से कामकेन्द्र पर सोई हुई कुंडलिनी शक्ति पर चोट पड़ती है, जिससे उर्जा उपर की ओर बहने लगेगी और हमारे चक्रों पर गति करती हुई, उन्हें सक्रिय कर आध्यात्मिक विकास या ब्रम्हचर्य के घटने में सहयोगी होगी। ब्रम्हचर्य,जिसका अनुभव हमें प्रेम या काम में थोड़ी देर को होता है, वह अधिक समय तक स्वत: ही होने लगेगा।
तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण घटना जो घटेगी, वह यह है कि हमें तुरंत शरीर से अलग होने का अनुभव होगा, हम श्वास पर ध्यान देंगे तो हम शरीर को पूरी तरह से अपने से प्रथक देख और अनुभव कर पायेंगे। यहां हमें 'साक्षी' का अनुभव होगा। जैसे ही हमारा ध्यान आती जाती श्वास पर केंद्रित होगा, वैसे ही हमारा साक्षी भी लौट आयेगा। हमें स्पष्ट होगा कि श्वास आ रही है, श्वास जा रही है, शरीर श्वास ले रहा है और हम 'देख' रहे हैं। हम 'देखने' वाले होंगे अर्थात 'साक्षी' होंगे।
धीरे-धीरे यह स्थिति और भी गहराती जायेगी। जो उर्जा हमारे विचारों को मिल रही थी, जिससे तनाव पैदा हो रहा था, वही उर्जा हमारे साक्षी को मिलेगी। जिससे उसका उदय होना आसान हो जाएगा।
विज्ञान भैरव तंत्र (तंत्र-सूत्र) की आरंभिक नो विधियां श्वास से ही संबंधित हैं, तथा ओशो ध्यान योग और जिन खोजा तिन पाइया नामक पुस्तक में ओशो ने श्वास से संबंधित विधियों का विस्तार से वर्णन किया है।
स्वामी ध्यान उत्सव
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