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2654 करोड़ रुपये का कालाधन विदेश भेजने के घोटाले का पर्दाफाश, चार गिरफ्तार

डीआरआई अधिकारियों के मुताबिक, एक व्यापारी ने तो एक करोड़ के हीरे की कीमत 160 करोड़ दिखाकर 159 करोड़ रुपये विदेश भेजे। पुनर्मूल्यांकन में हांगकांग और दुबई से मंगाए गए ये हीरे 1.2 करोड़ रुपये के ही निकले। अधिकारियों ने दावा किया कि इस रैकेट से जुड़े लोगों ने पिछले डेढ़ साल में 265 करोड़ रुपये की मनी लॉन्ड्रिंग की है।
कीमतें तय करने वालों की भी हुई पहचान
हीरे की कीमत तय करने वालों की भी पहचान कर ली गई है। इनमें प्रदीप कुमार झवेरी, नरेश मेहता और परेश शाह का नाम सामने आया है। वहीं, चौथे व्यक्ति की पहचान कस्टम क्लीयरिंग एजेंट विशाल कक्कड़ के रूप में हुई है।
नकदी समेत अन्य दस्तावेज बरामद
एक अधिकारी ने बताया कि छापे में 10 लाख रुपये नकद, 2.2 करोड़ रुपये के डिमांड ड्राफ्ट, चेक बुक्स, आधार कार्ड्स और पेन कार्ड्स बरामद किए गए हैं। आरोपी हीरा व्यापारी मूल्यांकनकर्ताओं के पैनल के कुछ सदस्यों की मदद से हीरों के घोषित मूल्य पर उनकी मंजूरी हासिल कर लेते थे।
‘जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया है उनके बारे में किसी हीरा व्यापारी को कुछ नहीं पता है। हमारा व्यवसाय काफी छोटा है और हर कोई एक दूसरे को जानता है। कीमत तय करने वाले सीमा शुल्क विभाग के साथ काम करते हैं जिसमें व्यापारियों की दखल नहीं होती।’
मेहुल शाह (उपाध्यक्ष, भारत डायमंड बोर्स)
कस्टम अधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध
कस्टम अधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध
हीरे की कीमत तय करने के लिए कस्टम विभाग पूरी जांच के बाद पैनल नियुक्त करता है। उसी के द्वारा हीरे की कीमत का निर्धारण सर्टिफिकेट जारी होता है। कस्टम विभाग की एयर कार्गो यूनिट हीरे के पैकेट की स्वीकृति देती है जिसके बाद यह व्यापारियों के पास जाता है। इसी वजह से मामले में कस्टम अधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध बताई जा रही है।
95 फीसदी पालिस्ड हीरा भारत से होता है निर्यात
भारत में कच्चे हीरे के आयात पर 0.25 फीसदी ड्यूटी लगती है। भारत के व्यापारी कच्चा माल मंगाते हैं और उसे पालिस कर विदेश भेजते हैं। दुनिया में 95 फीसदी पालिस्ड हीरा भारत से ही भेजा जाता है।
इस काम में नीरव मोदी भी रहा है चर्चित
इससे पहले नीरव मोदी के बारे में खुलासा हुआ था कि वह निम्न स्तर का हीरा ज्यादा कीमत में निर्यात करता था ताकि विदेशों से कालाधन कथित तौर पर वापस ला सके।
संयुक्त कोशिशों का नतीजा है यह कार्रवाई
उद्योग के सूत्रों का कहना है कि इन घटनाओं को रोकने के लिए ही ‘रत्न एवं आभूषण निर्यात संवर्धन परिषद’ (जीजेईपीसी) सरकार से मूल्यांकनकर्ताओं के लिए एकमात्र मंजूरी प्राधिकारी बनने का अनुरोध करती रही है। परिषद बीते तीन महीनों से डीआरआई और सरकार के साथ मिलकर काम कर रही थी। उक्त कार्रवाई इन्हीं संयुक्त कोशिशों का नतीजा है।

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