सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि कर्मचारी को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) का संपूर्ण अधिकार नहीं है।

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि कर्मचारी को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) का संपूर्ण अधिकार नहीं है। सरकार जनहित को ध्यान में रखते हुए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की मांग ठुकरा सकती है। शीर्ष अदालत ने यह बात डॉक्टरों की स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की मांग खारिज करने के उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले को सही ठहराते हुए कही है।
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा व एस.अब्दुल नजीर की पीठ ने उप्र सरकार की अपील पर यह फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट ने डॉक्टरों की वीआरएस की अर्जी स्वीकार करते हुए सेवानिवृत्त घोषित कर दिया था। कोर्ट ने कहा कि वीआरएस की नोटिस अवधि को तीन महीने बीतने पर स्वतः प्रभावी नहीं माना जाएगा। नियुक्ति अथॉरिटी या तो नोटिस स्वीकार करेगी या फिर उसे अस्वीकार कर सकती है। कर्मचारी को वीआरएस का संपूर्ण अधिकार नहीं है।
जनहित के अधीन है रोजगार की आजादी-
अदालत ने कहा कि रोजगार की आजादी, जनहित के अधीन है। नौकरी में आने के बाद इस अधिकार का दावा सिर्फ नियमों के मुताबिक ही किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि अगर इस तरह सभी डॉक्टरों को सेवानिवृत्ति की अनुमति दे दी जाएगी तो अव्यवस्था उत्पन्न हो जाएगी और सरकारी अस्पताल में कोई भी डॉक्टर नहीं बचेगा।
क्या था मामला-
उत्तर प्रदेश में प्रांतीय मेडिकल सर्विस में वरिष्ठ पदों पर तैनात डॉक्टर अचल सिंह, डॉक्टर अजय कुमार तिवारी, डॉक्टर राजेंद्र कुमार श्रीवास्तव, डॉक्टर राजीव चौधरी ने वीआरएस की अर्जी दी। जब सरकार ने उस पर आदेश नहीं किया तो डॉक्टरों ने हाईकोर्ट में याचिका देकर वीआरएस मांगी। इसे हाई कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था। सरकार ने आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सरकार का कहना था कि डॉक्टरों की कमी को देखते हुए वीआरएस की अर्जी ठुकराई गई है।

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