साथियो, घटना दुखद है लेकिन इस तरह की प्रतिक्रिया इस देश मे पहली बार नही है, ऐसे हजारो उदाहरण है।
कभी घरेलू नौकर या नौकरानी के साथ अत्याचार फिर प्रतिक्रिया, कभी मालिक -कर्मचारी के साथ, कभी परिवार मे, भाई -भाई , भाई-भतीजा, बाप-बेटा, पति-पत्नी आदि रिश्तो मे भी ऐसी प्रतिक्रिया देखने को मिलती रहती है। आखिर क्यो? इस पर मानव प्रवृत्ति, मनोवैज्ञानिक कारण जानना बहुत जरूरी है, जो हर इंसान के साथ जुड़ा हुआ बिषय है और किसी के साथ कभी भी घटित हो सकती है।
इस बिषय पर मै कुछ अनुभव प्रस्तुत करना चाहता हू और साथ ही आप की प्रतिक्रिया भी चाहता हू ।
महान वैज्ञानिक न्यूटन का एक नियम है कि -
"हर क्रिया के बराबर और बिपरीत प्रतिक्रिया होती है।"
इस नियम को आज तक हम लोग सिर्फ भौतिकी विज्ञान तक ही सीमित करके सत्य मानते भी है।
लेकिन यह नियम सामाजिक परिवेश मे भी सत-प्रतिशत सही साबित होता है।
जितना ज्यादा स्वार्थ मे अपनो से प्यार ,उतनी ही ज्यादा किसी दूसरो से नफरत। इसलिए थोड़ा या कम सभी से प्यार बांटते रहने की कोशिश करते रहना चाहिए, नफरत की बू नही आएगी।
लेकिन वही यदि आप किसी दूसरे को नि:स्वार्थ भावना से प्यार करते है तो उसी के बिपरीत व बराबर आप को भी प्यार मिलता है। यहा नफरत का सवाल ही नही आता है।
जब आप किसी से नफरत करेंगे तो उसके बिपरीत व बराबर नफरत भी मिलेगी ।
इस घटना मे भी जज साहब अपने बीबी -बच्चे से लिमिट से ज्यादा प्यार करते थे और ठीक उल्टा नौकर से उतना ही नफरत।
परिणाम सामने जज को भोगना ही पड़ा। यहा कानून का नियम नही प्रकृति का और न्यूटन का नियम लागू होता है।
Vigilance & CBI के साथ काम करने के अनुभव से मै कहना चाहता हू कि, जो आफिसर अपने परिवार या बीबी -बच्चे से जितना ज्यादा लगाव रखते है उतने ही ज्यादा भ्रष्ट होते है। उनको देश व समाज से प्यार नही होता है।
हमारे चौकीदार को भी भाजपा व उनको साथ देने वालो से कुछ ज्यादा ही प्यार है तभी तो अपमान सहते हुए भी बिना तकनीकी ज्ञान के राफेल विमान सौदा अनिल अम्बानी को दे दिया।यदि देश से प्यार होता तो HAL को मिला होता।
दिमाग को संतुलन बनाना ही बनाना है कोई इसे अहं के कारण मानने को तैयार नही होता है। क्योंकि यह एक बहुत बड़ी सामाजिक बुराई है। कभी-कभी इसे हम स्वार्थी, अपनापन या अपनत्व मानकर कह देते है कि यह सबके साथ होता है।
1)- जैस-कट्टर हिन्दू प्यार - - उतनी ही नफरत मुस्लिम से।
2)- कट्टर जातिय प्यार - -उतनी ही नफरत किसी दूसरी जाति से।
ब्राह्मण और शूद्र के बीच नफरत व घृणा इसी मानसिकता के कारण है ।
3)-- कट्टर ब्यापारी प्रतिद्वन्दिता प्यार - - उतनी नफरत किसी दूसरे से।
3)-- मां या बाप, अपने बेटा-बेटी से हद से ज्यादा प्यार - -उतना ही नफरत किसी से भी जो उनके नजदीक होगा। (जज की घटना )
4)-- पति का, पत्नी से या पत्नी का, पति से बहुत ज्यादा अपनत्व (प्यार ) तथा कभी-कभी दोनो का एकदूसरे से बहुत ज्यादा अपनत्व (प्यार ) -- उतना ही नफरत परिवार के किसी भी सदस्य के साथ जो उनसे कम लगाव रखता है। सास-बहू या ननद -भाभी, देवर -भाभी, भाई-भतीजा, चाचा -भतीजा आदि के रिश्ते मे (अपने होते हुए भी) खटास पैदा कर देती है।
जितना नफरत देगे प्रतिक्रिया मे उतना ही मिलेगा ।
गांव मे पारिवारिक झगडे मे "अपना -पराया "नाम बहुत पहले से सुनाई देता है।
पुरानी कहावत पर भी न्यूटन नियम लागू होता है - -जितना अपना -उतना ही पराया। (क्रिया -प्रतिक्रिया )
साथियो दिमाग मे प्यार और नफरत रूपी दोनो कीड़े हर समय सक्रिय रहते है और एक-दूसरे के बिपरीत काम करते है और सन्तुलन बनाए रखते है।जब कोई क्रिया ज्यादा होती है और संतुलन नही बन पाता है तब दिमागी आघात का सामना करना पड़ता है। जैसे गनर के साथ हुआ।
कहावत भी है कि कोई भी चीज की जरूरत से ज्यादा उपयोग नुकसान देह होती है।
इसलिए यदि सुखी रहना चाहते है तो साधारण, मिडिल पाथ यानि थोड़ा बहुत सबसे और सबको प्यार बांटते रहे, नफरत पैदा ही नही होगी।
सामाजिक महापुरुष सभी इसी विचारधारा के होते है। बाबा साहब तो समाज उद्धार के लिए अपने बीबी बच्चो को भी दाव पर लगा दिया था।
साथियो आप भी अपने आप तथा समाज व परिवार के साथ इस न्यूटन नियम को बारीकी से परखे। मुझे विश्वास है आप कड़वा सत्य जरूर महसूस करेंगे।धन्यवाद ।
शूद्र शिवशंकर सिंह यादव
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