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भारतीय कैदी सरबजीत की हत्‍या के संदिग्‍धों को पाकिस्तान अदालत ने किया बरी !

लाहौर। पाकिस्तान की एक अदालत ने शनिवार को भारतीय नागरिक सरबजीत सिंह की हत्या के दो मुख्य संदिग्ध आरोपियों को बरी कर दिया। सरबजीत की लाहौर के कोट लखपत जेल में 2013 में हत्या कर दी गई थी। इन दो आरोपियों को सबूत के अभाव में बरी कर दिया गया है।पाकिस्‍तान की अदालत के इस फैसले पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं।
लाहौर की सत्र अदालत ने 5 साल से भी अधिक समय से लंबित इस मामले में फैसला सुनाते हुए मुख्य संदिग्धों आमिर तांबा और मुदस्सर को बरी कर दिया। लाहौर के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश मोहम्मद मोइन खोखर ने यह फैसला इस मामले में गवाहों के पलट जाने के बाद सुनाया। सरबजीत की हत्‍या के दोनों संदिग्ध सुरक्षा कारणों से वीडियो लिंक के जरिये कोट लखपत जेल से अदालत में पेश हुए।
आमिर और मुदस्सर, दोनों पाकिस्तानी कैदी हैं और उन्‍हें पहले से ही मौत की सजा मिली हुई है। सरबजीत को 1990 में पाकिस्‍तान में सिलसिलेवार बम विस्‍फोटों के सिलसिले में मौत की सजा सुनाई गई थी। हालांकि उनकी बहन दलबीर कौर लगातार अपने भाई को निर्दोष करार देती रहीं और उनकी रिहाई के लिए लगातार प्रयासरत रहीं। मई 2012 में भारत से 1,00,000 हस्‍ताक्षरों के साथ पांचवीं दया याचिका लगाई गई, लेकिन सरबजीत के लिए दायर कोई भी याचिका मंजूर नहीं हुई।
इससे पहले की सुनवाइयों में भी जज ने नाराजगी जताई थी क्योंकि अभियोजन पक्ष एक भी गवाह पेश नहीं कर पाए जो बयान दर्ज कराए। हालांकि, पहले एक गवाह ने बताया था कि सरबजीत को सर्विस अस्पताल में गंभीर हालत में लाया गया था। कुछ गवाहों ने बताया था कि वे सरबजीत का बयान दर्ज करना चाहते थे लेकिन डॉक्टर ने उन्हें यह कह कर रोक दिया था कि सरबजीत की हालत बेहद गंभीर है। लेकिन बाद में गवाह अपने बयानों से पलट गए थे।
उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान ने सरबजीत सिंह पर 1990 में हुए श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों का आरोप लगाया था और उन्हें मौत की सजा सुनाई गई थी।
सरबजीत की मौत के बाद भारत ने पाकिस्‍तान सरकार से इस मामले में विस्तृत जांच कराने के लिए कहा था। हालांकि सरबजीत की बहन दलबीर ने इसकी आशंका भी जताई कि यह हमला सुनियोजित हो सकता है और इसमें पाक‍िस्‍तान सरकार की भी मिलीभगत हो सकती है। उन्‍होंने साफ कहा था कि अगर पाकिस्‍तान सरकार इसमें शामिल है तो जांच की कोई जरूरत ही नहीं रह जाती। लेकिन अगर प्रशासन को इस बारे में पता नहीं था तो इसकी जांच कराई जानी चाहिए।

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