वीर सावरकर को रोज कोल्हू में बैल की तरह जुत कर 7 किलो तेल निकालना होता था। जिस दिन नहीं निकाल पाते उस दिन कोड़े खाते।
वीर सावरकर 10 साल अंडमान की इसी कालकोठरी में बंद रहे थे। उन्हें एक नहीं, दो-दो बार कालापानी की सजा मिली। उनकी खिड़की से सिर्फ जेल का फांसी घर दिखाई देता था। जिसमें रोज सुबह कोई कैदी लटकाया जाता था। उनकी चीखों से ही नींद खुलती थी। वीर सावरकर को रोज कोल्हू में बैल की तरह जुत कर 7 किलो तेल निकालना होता था। जिस दिन नहीं निकाल पाते उस दिन कोड़े खाते। फिर इसी कालकोठरी की दीवारों पर नाखून, कील और कोयले से आजादी की कविताएं लिखते। जेल के अकेलेपन में अपनी खिड़की के बाहर पेड़ पर बैठने वाले पक्षियों से बातें करते।
आजादी के बाद उन वीर सावरकर को कांग्रेस और गांधी परिवार ने गद्दार ठहरा दिया। उनके संघर्ष की कहानियां इतिहास के पन्नों से गायब कर दी गईं। आज जब पहली बार आजाद भारत का कोई प्रधानमंत्री वीर सावरकर की कालकोठरी में हाथ जोड़कर बैठा तो लगा कि भारत मां के कलेजे का एक और जख्म भर गया।
आजादी के बाद उन वीर सावरकर को कांग्रेस और गांधी परिवार ने गद्दार ठहरा दिया। उनके संघर्ष की कहानियां इतिहास के पन्नों से गायब कर दी गईं। आज जब पहली बार आजाद भारत का कोई प्रधानमंत्री वीर सावरकर की कालकोठरी में हाथ जोड़कर बैठा तो लगा कि भारत मां के कलेजे का एक और जख्म भर गया।
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