*अगर हम चाहते हैं कि मनुष्यता स्वस्थ हो जाए और यह जो आतंक चारों तरफ बढ़ता ही चला जाता है, विस्फोट होता जाता है,हिंसात्मक होता चला जाता है, यह समाप्त हो जाए; ये आग की लपटें फूलों में बदल जाए तो एक ही रास्ता है: उस रास्ते का नाम समाधि है।*
*सहज बनो, समता में जीयो। और जो तुम्हारे भीतर छुपा है राज, उससे अपरिचित न रहो। उससे परिचित होते ही वह महाक्रांति घटित हो जाती है, जो मिट्टी को सोना बना देती है, जो एक साधारण व्यक्ति को बुद्ध बना देती है, जो तुम्हें जमीन से उठाकर आसमान के तारों की ऊंचाइयों पर ले जाती है।*
*मैं सारी दुनिया में इस एक ही बात को कहता हुआ घूम हूं।,,,,, और चकित और हैरान हुआ हूं कि लोग यह बात सुनने को राजी नहीं हैं। लोग दरवाजे बंद कर लेते हैं। राष्ट्र अपने दरवाजे बंद कर लेते हैं। क्योंकि धर्मों के धंधों का क्या होगा? धर्मग्रंथों का क्या होगा?*
*क्योंकि मैं तो सिर्फ एक किताब को जानता हूं--जो तुम हो।*
*कबीर तो कहते थे,*
*ढाई आखर प्रेम का*
*पढ़े सो पंडित होय*
*मैं तो कहता हूं, ढाई की भी छोड़ो, एक ही अक्षर, जो तुम्हारे भीतर छिपा है। उस एक अक्षर और शाश्वत को जान लो। और सारी प्रज्ञा, सारा पांडित्य तुम्हारे पैरों में है।*
*लेकिन तब शास्त्रों के ठेकेदार मेरे दुश्मन हो जाते हैं--चर्चों के, मंदिरों के, हिंदुओं के, मुसलमानों के, ईसाइयों के। पुरोहित का एक जाल है जो तुम्हारी बीमारी पर जाती है। वह नाराज हो जाता है। शिक्षक, विश्वविद्यालय, शिक्षा के पंडित, वे नाराज हो जाते हैं क्योंकि अगर महत्वाकांक्षा बीमारी है, तो राजनीतिज्ञ सबसे बड़ा बीमार है। क्योंकि राजनीतिज्ञ होने की आकांक्षा किस बात का सबूत है? इस बात का सबूत है कि कोई प्रेसिडेंट होना चाहता है, कोई प्रधानमंत्री होना चाहता है। लोग भीड़ के ऊपर उठकर भीड़ के मालिक होना चाहते हैं।*
*जो अपने मालिक नहीं हैं, वे सारी दुनिया के मालिक होना चाहते हैं। और बीमारों की इन जमातों के पास बड़ी ताकत है, सारी ताकत है।*
⏩कोपलें फिर फूट आईं-प्र-10
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