अपने तरह के शायद पहले मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक अपराधी की कविताएं पढ़कर उसकी फांसी की सजा को उम्र कैद में बदल दी !

नई दिल्ली। अपने तरह के शायद पहले मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक अपराधी की कविताएं पढ़कर उसकी फांसी की सजा को उम्र कैद में बदल दी। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि कविताएं पढ़ने से लगता है कि उसे (दोषी) अपने किए पर पछतावा है और उसमें सुधार हो रहा है।
उसे (दोषी) को एक बच्चे की अपहरण के बाद हत्या के मामले में फांसी की सजा सुनाई गई थी। जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने कहा कि दोषी ने जब अपराध किया तब उसकी उम्र बहुत कम थी। जेल में रहते हुए उसे अपनी गलती का अहसास हुआ। उसने जेल में रहते हुए समाज से जुड़ने और एक सभ्य व्यक्ति बनने को कोशिश की।सर्वोच्च अदालत में बोरकर के वकील ने दलील दी कि जेल में उसका व्यवहार बहुत अच्छा है। उसने जेल में रहते हुए अपनी पढ़ाई पूरी की और उसने एक बेहतर इनसान बनने की कोशिश की है। पीठ ने कहा कि, हालांकि, हम यह मानते हैं कि उसने (बोरकर) ने बहुत गंभीर अपराध किया है, लेकिन, फिर भी हम अपने आपको यह समझाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं कि उसका अपराध 'जघन्यतम' की श्रेणी में आता है, जिसके लिए फांसी की सजा देने की जरूरत है।

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