कामवासना निकल जाती है, ऐसा नहीं है, ध्यान के प्रयोग से आपकी उर्जा और डायमेंशन में, और दिशा में गतिमान हो जाती है। जैसे कि कोई कहे कि नहरें खोद लेने से नदी में बाढ़ नहीं आती है, तो उसका यह मतलब नहीं है कि नदी में बाढ़ नहीं आती नहरें खोद लेने से, नहरें खोद लेने से भी बढ़ आती है, लेकिन बाढ़ की सारी शक्ति नहरों से निकल जाती है, नदी के तट के गांवों को डुबने की जरूरत नहीं पड़ती।
ध्यान आपकी कामवासना को निकाल नहीं डालता, आपके पास शक्ति तो एक ही है - चाहे उसे काम में निकालिए, चाहे ध्यान में निकालिए। आपके पास उर्जा, एनर्जी एक ही है, आप उसका कोई भी उपयोग करिए - क्रोध में करिए कि क्षमा में करिए कि घृणा में करिए, शक्ति एक है। और शक्ति के ही सब उपयोग हैं। ध्यान आपकी शक्ति को उर्ध्वगामी बना देता है। वह उपर के मार्ग पर यात्रा करने लगती है। उसके निकलने के रास्ते बदल जाते हैं। जहां काम था वहां प्रेम उसका रास्ता हो जाता है। अगर शक्ति नीचे की तरफ बहती है, अधोगामी होती है, तो काम रास्ता होता है, उर्ध्वगामी होती है तो प्रेम रास्ता होता है। नीचे की तरफ बहती है तो क्रूरता रास्ता होता है उपर की तरफ बहती है तो करूणा रास्ता बन जाता है। ध्यान सिर्फ़ आपकी उर्जा को नई गति, नई दिशा और नया आयाम देता है। ध्यान आपके काम को समाप्त नहीं करता, सिर्फ काम को रूपांतरित करता है, ट्रांसफार्म करता है। आपका काम दिव्य हो जाता है, डिवाइन हो जाता है। मीरा में भी काम है, पर वह दिव्य हो गया। महावीर में भी काम है, लेकिन वह ब्रम्हचर्य बन गया। बुद्ध में भी काम है, लेकिन वह करूणा हो गया। जीसस में भी काम है, लेकिन वह प्रेम बन गया।
काम को नष्ट नहीं करना है जो नष्ट करेगा वह तो खुद ही नष्ट हो जाएगा। क्योंकि काम तो उर्जा है, शक्ति है। हम उसका क्या उपयोग करें, यह सवाल है। जिसके पास कोई उपयोग नहीं है उसके पास सेक्स ही एकमात्र उपयोग रह जाता है। उर्जा का। हम नये उपयोग खोज लें, ऊंचे उपयोग खोज लें, यात्रा उस तरफ शुरू हो जाती है। असल में जितना ऊंचा द्वार हमारे पास हो, उतने नीचे के द्वार से शक्ति का बहना बंद हो जाता है।
इसलिए काम का आप सीधा चिंतन ही न करें। आप ध्यान की चिंता लें। जैसे - जैसे ध्यान में आपकी गति होगी वैसे - वैसे काम से परिवर्तन होता चला जाएगा।
ओशो
जो घर बारे आपना, प्रवचन - 5
ध्यान आपकी कामवासना को निकाल नहीं डालता, आपके पास शक्ति तो एक ही है - चाहे उसे काम में निकालिए, चाहे ध्यान में निकालिए। आपके पास उर्जा, एनर्जी एक ही है, आप उसका कोई भी उपयोग करिए - क्रोध में करिए कि क्षमा में करिए कि घृणा में करिए, शक्ति एक है। और शक्ति के ही सब उपयोग हैं। ध्यान आपकी शक्ति को उर्ध्वगामी बना देता है। वह उपर के मार्ग पर यात्रा करने लगती है। उसके निकलने के रास्ते बदल जाते हैं। जहां काम था वहां प्रेम उसका रास्ता हो जाता है। अगर शक्ति नीचे की तरफ बहती है, अधोगामी होती है, तो काम रास्ता होता है, उर्ध्वगामी होती है तो प्रेम रास्ता होता है। नीचे की तरफ बहती है तो क्रूरता रास्ता होता है उपर की तरफ बहती है तो करूणा रास्ता बन जाता है। ध्यान सिर्फ़ आपकी उर्जा को नई गति, नई दिशा और नया आयाम देता है। ध्यान आपके काम को समाप्त नहीं करता, सिर्फ काम को रूपांतरित करता है, ट्रांसफार्म करता है। आपका काम दिव्य हो जाता है, डिवाइन हो जाता है। मीरा में भी काम है, पर वह दिव्य हो गया। महावीर में भी काम है, लेकिन वह ब्रम्हचर्य बन गया। बुद्ध में भी काम है, लेकिन वह करूणा हो गया। जीसस में भी काम है, लेकिन वह प्रेम बन गया।
काम को नष्ट नहीं करना है जो नष्ट करेगा वह तो खुद ही नष्ट हो जाएगा। क्योंकि काम तो उर्जा है, शक्ति है। हम उसका क्या उपयोग करें, यह सवाल है। जिसके पास कोई उपयोग नहीं है उसके पास सेक्स ही एकमात्र उपयोग रह जाता है। उर्जा का। हम नये उपयोग खोज लें, ऊंचे उपयोग खोज लें, यात्रा उस तरफ शुरू हो जाती है। असल में जितना ऊंचा द्वार हमारे पास हो, उतने नीचे के द्वार से शक्ति का बहना बंद हो जाता है।
इसलिए काम का आप सीधा चिंतन ही न करें। आप ध्यान की चिंता लें। जैसे - जैसे ध्यान में आपकी गति होगी वैसे - वैसे काम से परिवर्तन होता चला जाएगा।
ओशो
जो घर बारे आपना, प्रवचन - 5
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