- सीआरपीसी की धारा-156 (3) के तहत इलाका मैजिस्ट्रेट के सामने शिकायत कर सकता है। तब मैजिस्ट्रेट के सामने अर्जी दाखिल कर कोर्ट को यह बताना होता है कि कैसे संज्ञेय अपराध हुआ।
- अगर शिकायती की अर्जी पर सुनवाई के दौरान कोर्ट संतुष्ट हो जाता है तो कोर्ट इलाके के एसएचओ को निर्देश जारी करता है कि वह केस दर्ज करे और अपनी रिपोर्ट कोर्ट में पेश करे।
- मैजिस्ट्रेट चाहें तो अर्जी पर पुलिस से स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को कह सकते हैं और फिर जवाब के बाद केस दर्ज करने का आदेश दे सकते हैं।
- ऐसा कोई भी अपराध जो संज्ञेय है, उसमें पुलिस को एफआईआर दर्ज करनी होगी। पुलिस कोई बहाना नहीं बना सकती।
- सीआरपीसी की धारा-154 के तहत पुलिस को किसी भी संज्ञेय अपराध की सूचना के आधार पर केस दर्ज करना होता है। जब कोई संज्ञेय अपराध होने की स्थिति में थाने में शिकायत लिखकर देता है तो पुलिस उसकी एक कॉपी पर मुहर लगाकर दे देती है। इसके बावजूद अगर केस दर्ज नहीं होता है तो वह कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है।
- इस मामले में 9 जुलाई 2010 को दिल्ली हाई कोर्ट ने शुभंकर लोहारका बनाम स्टेट ऑफ दिल्ली के केस में गाइडलाइंस जारी कर रखी हैं।
- अगर थाने में की गई शिकायत के बावजूद केस दर्ज न हो तो शिकायती 15 दिनों के भीतर जिले के पुलिस चीफ यानी DCP या राज्यों में एसपी के सामने शिकायत कर सकता है। इस शिकायत की रिसीविंग लेनी होती है। शिकायत डाक के जरिये भी डीसीपी को भेजी जा सकती है या ईमेल भी किया जा सकता है। इसके बावजूद अगर केस दर्ज न हो तो उक्त शिकायत की कॉपी के साथ शिकायती सीआरपीसी की धारा-156 (3) के तहत इलाका मैजिस्ट्रेट के सामने शिकायत कर सकता है। तब मैजिस्ट्रेट के सामने अर्जी दाखिल कर कोर्ट को यह बताना होता है कि कैसे संज्ञेय अपराध हुआ।
- अगर शिकायती की अर्जी पर सुनवाई के दौरान कोर्ट संतुष्ट हो जाता है तो कोर्ट इलाके के एसएचओ को निर्देश जारी करता है कि वह केस दर्ज करे और अपनी रिपोर्ट कोर्ट में पेश करे।
- मैजिस्ट्रेट चाहें तो अर्जी पर पुलिस से स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को कह सकते हैं और फिर जवाब के बाद केस दर्ज करने का आदेश दे सकते हैं।
- अगर मैजिस्ट्रेट की अदालत शिकायती की अर्जी खारिज कर देती है तो उक्त ऑर्डर को सेशन कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। वहां भी अगर अर्जी खारिज हो जाए तो हाई कोर्ट में अपील दाखिल हो सकती है।
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