IPC 499 & 500 मानहानि दोनों, दीवानी (civil) और फौजदारी (criminal) अपराध है। दीवानी कानून के तहत, अपमानित व्यक्ति अपने अपमान को साबित करने के लिए उच्च न्यायालय या निचली अदालत में जा सकता है
Poमनुष्य एक सामाजिक प्राणी है एवं समाज में पहचान हासिल करना हर मनुष्य का एक निरंतर प्रयत्न होता है। मान, मर्यादा, इज्ज़त एवं प्रतिष्ठा मानविक जीवन के अभिन्न अंग हैं। ये मनुष्य के पहचान के उन पहलुओं में से हैं जो उसकी सामाजिक प्रकृति के मौलिक गुण हैं। मानहानि व्यक्ति के इन पहलुओं को क्षीण करने की कोशिश करता है। इसलिए हमारे संविधान ने प्रत्येक व्यक्ति को अपनी प्रतिष्ठा एवं सम्मान को बचाने के लिए अधिकार प्रदान किये हैं, जिसका उपयोग वह मानहानि के विरुद्ध कर सकता है |
इस तर्क की तह तक जाने से पहले मानहानि के कानून के बारे में जानना ज़रूरी है । मानहानि का कानून समाज और व्यक्ति के बीच एक संघर्ष है, जहाँ एक तरफ, संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत मुक्त भाषण का मौलिक अधिकार है, वहीं दूसरी ओर व्यक्ति की प्रतिष्ठा का अधिकार है | इन दिनों आपराधिक मानहानि का दुरुपयोग एक उपकरण के रूप में भाषण तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने के लिए किया जा रहा है |
मानहानि विधि का वर्तमान परिदृश्य
भारत में मानहानि दोनों, दीवानी (civil) और फौजदारी (criminal) अपराध है। दीवानी कानून के तहत, अपमानित व्यक्ति अपने अपमान को साबित करने के लिए उच्च न्यायालय या निचली अदालत में जा सकता है और आरोपी से आर्थिक मुआवजे की मांग कर सकता है।
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