Skip to main content

“निंदा में रस क्यों ?” – ओशो

  • “निंदा में रस क्यों ?” – ओशो


अभी तो तुम विध्वंस की तलाश में रहते हो। कहीं तुम्हें कुछ तोड़ने—फोड़ने को मिल जाए, तो तुम्हारे आनंद का अंत नहीं होता। बनाने में किसी का कोई रस नहीं है, मिटाने की बड़ी उत्सुकता है। इस उत्सुकता को अपने भीतर खोजना। निंदा का बड़ा भाव है। अगर मैं किसी की निंदा करूं, तो आप बिना किसी विवाद के स्वीकार कर लेते हैं। अगर मैं किसी की प्रशंसा करूं, तो आपका मन एकदम चौंक जाता है, आप स्वीकार करने को राजी नहीं होते हैं। आप कहते हैं, सबूत क्या है? प्रमाण क्या है? आप वहम में पड़ गए हैं! लेकिन जब कोई निंदा करता है, तब आप ऐसा नहीं कहते।

कभी आपने देखा कि कोई आ कर जब आपको किसी की निंदा करता है, तो आप कैसे मन से, कैसे भाव से स्वीकार करते हैं? आप यह नहीं पूछते कि यह बात सच है? आप यह नहीं पूछते कि इसका प्रमाण क्या है? आप यह भी नहीं पूछते कि जो आदमी इसकी खबर दे रहा है, वह प्रमाण योग्य है? आप यह भी नहीं पूछते कि इसको मानने का क्या कारण है? क्या प्रयोजन है?

नहीं, कोई निंदा करता है तो आपका प्राण एकदम खुल जाता है, फूल खिल जाते हैं, सारी निंदा को आत्मसात करने के लिए मन राजी हो जाता है! और इतना ही नहीं, जब आप यही निंदा दूसरे को सुनाते हैं, क्योंकि ज्यादा देर आप रुक नहीं सकते। घड़ी, आधा घड़ी बहुत है। आप भागेंगे किसी को बताने को। क्योंकि निंदा का रस ही ऐसा है। वह हिंसा है। और अहिंसक दिखाई पड़ने वाली हिंसा है। किसी को छुरा मारो अदालत में, पकड़े जाओगे। लेकिन निंदा मारो, तो कोई पकड़ने वाला नहीं है। कोई कारण नहीं है, कोई झंझट नहीं है। हिंसा भी हो जाती है साध्य, रस भी आ जाता है तोड्ने का, और कोई नुकसान भी कहीं अपने लिए होता नहीं। भागोगे जल्दी। और खयाल करना, कि जितनी निंदा पहले आदमी ने की थी, उससे दुगुनी करके तुम दूसरे को सुना रहे हो। अगर उसने पचास कहा था, तो तुमने सौ संख्या कर ली है। तुम्हें खयाल भी नहीं आएगा कि तुमने कब यह सौ कर ली है। निंदा का रस इतना गहरा है कि आदमी उसे बढ़ाए चला जाता है।

लेकिन कोई तुमसे प्रशंसा करे किसी की, तुमसे नहीं सहा जाता फिर, तुम्हारा हृदय बिलकुल बंद हो जाता है, द्वार—दरवाजे सख्ती से बंद हो जाते हैं। और तुम जानते हो कि यह बात गलत है, यह प्रशंसा हो नहीं सकती, यह आदमी इस योग्य हो नहीं सकता। तुम तर्क करोगे, तुम दलील करोगे, तुम सब तरह के उपाय करोगे, इसके पहले कि तुम मानो कि यह सच है। और तुम जरूर कुछ न कुछ खोज लोगे, जिससे यह सिद्ध हो जाए कि यह सच नहीं है। और तुम आश्वस्त हो जाओगे कि नहीं, यह बात सच नहीं थी। और यह कहने तुम किसी से भी न जाओगे, कि यह प्रशंसा की बात तुम किसी से कहो। यह तुम्हारा जीवन के प्रति असम्मान है और मृत्यु के प्रति तुम्हारा सम्मान है।

अखबार में अगर कुछ हिंसा न हुई हो, कहीं कोई आगजनी न हुई हो, कहीं कोई लूटपाट न हुई हो, कोई डाका न पड़ा हो, कोई युद्ध न हुआ हो, कहीं बम न गिरे हों, तो तुम अखबार ऐसा पटक कर कहते हो कि आज तो कोई खबर ही नहीं है! क्या तुम इसकी प्रतीक्षा कर रहे थे? क्या तुम सुबह—सुबह उठ कर यही अपेक्षा कर रहे थे कि कहीं यह हो? कोई समाचार ही नहीं है। तुम्हें लगता है कि अखबार में जो दो आने खर्च किए, वे व्यर्थ गए। तुम्हारे दो आने के पीछे तुम क्या चाह रहे थे, इसका तुमने कुछ सोच—विचार किया? तुम्हारे दो आने की सार्थकता का कितना मूल्य तुम लेना चाहते हो जगत से?

अखबार भी तुम्हारे लिए ही छपते हैं। इसलिए अखबार वाले भी अच्छी खबर नहीं छापते। उसे कोई पढ़ने वाला नहीं है, उसमें कोई सेन्सेशन नहीं है, उसमें कोई उत्तेजना नहीं है। अखबार वाले भी वही छापते हैं, जो तुम चाहते हो। वहीं खोजते हैं, जो तुम चाहते हो। दुनिया में जो भी कचरा और गंदा और व्यर्थ कुछ हो, उस सबको इकट्ठा कर लाते हैं। तुम प्रफुल्लित होते हो सुबह से, तुम्हारा हृदय बडा आनंदित होता है। तुम अखबार से जो इकट्ठा कर लेते हो, दिन भर फिर उसका प्रचार करते हो। तुम्हारा ज्ञान अखबार से ज्यादा नहीं है, फिर तुम उसी को दोहराते हो

पर कभी यह खयाल किया कि तुम्हारा रस क्या है? लोग डिटेक्टिव कहानियां पढ़ते हैं। क्यों? क्यों जासूसी उपन्यास पढ़ते हैं? क्यों जा कर हत्या और युद्ध की फिल्में देखते हैं? अगर रास्ते पर दो आदमी लड़ रहे हों, तो तुम हजार काम रोक कर खड़े हो कर देखोगे। हो सकता है तुम्हारी मां मर रही हो और तुम दवा लेने जा रहे हो। लेकिन फिर तुम्हारे पैर आगे न बढ़ेंगे। तुम कहोगे कि मां तो थोड़ी देर रुक भी सकती है, ऐसी कोई जल्दी नहीं है। बाकी यह जो दो आदमी लड़ रहे हैं, पता नहीं, क्या से क्या हो जाए? और अगर दो आदमी लड़ते रहें और कुछ से कुछ न हो, तो थोड़ी देर में तुम वहां से निराश हटते हो कि कुछ भी न हुआ।

इसलिए मैं कह रहा हूं इसे तुम निरीक्षण करना। इससे तुम्हें पता चलेगा कि तुम्हारा कोण क्या है जीवन को देखने का? तुम चाहते क्या हो? तुम्हारी क्या है मनोदशा? इसको तुम पहचानना और तब इसे बदलना। तब देखना जहां—जहां तुम्हें लगे कि मृत्यु, हिंसा और विध्वंस के प्रति तुम्हारा रस है, उसे हटाना। और जीवन के प्रति बढ़ाना। अच्छा हो कि जब कली फूल बन रही हो, तब तुम रुक जाना। घड़ी भर वहां बैठ कर ध्यान कर लेना उस फूल बनती कली पर, क्योंकि वहां जीवन खिल रहा है। अच्छा हो कि कोई बच्चा जहां खेल रहा हो, हंस रहा हो, नाच रहा हो, वहां घड़ी भर तुम रुक जाना।

दो आदमी छुरा ले कर लड़ रहे हों, वहां रुकने से क्या प्रयोजन है? और तुम्हें शायद पता न हो और तुमने कभी सोचा भी न हो कि वे दो आदमी जो छुरा मार रहे हैं एक—दूसरे को, उसमें तुम्हारा हाथ हो सकता है। क्योंकि तुम ध्यान देते हो। अगर भीड़ इकट्ठी न हो तो लड़ने वालों का रस भी चला जाता है। अगर कोई देखने न आए, तो लड़ने वाले भी सोचते हैं कि बेकार है; फिर देखेंगे, फिर कभी। जब भीड़ इकट्ठी हो जाती है तो लड़ने वालों को भी रस आ जाता है। जितनी भीड़ बढ़ती जाती है, उतना उनका जोश गरम हो जाता है, उतना अहंकार और प्रतिष्ठा का सवाल हो जाता है।

इसलिए तुम यह मत सोचना कि तुम खड़े थे तो तुम भागीदार नहीं थे, तुम्हारी आंखों ने भी हिंसा में भाग लिया। और वह जो छुरा भोंका गया है, अगर दुनिया में कोई सच में अनूठी अदालत हो, तो उसमें छुरा मारने वाला ही नहीं, तुम भी पकड़े जाओगे, क्योंकि तुम भी वहां खड़े थे। तुम क्यों खड़े थे? तुम्हारे खड़े होने से सहारा मिल सकता है। तुम्हारे खड़े होने से उत्तेजना मिल सकती है। तुम्हारे खड़े होने से वह हो सकता है, जो न हुआ होता।

पर अपनी उत्सुकता को खोजो, और अपनी उत्सुकता को जीवन की तरफ ले जाओ। और जहां भी तुम्हें जीवन दिखाई पडे, वहां तुम सम्मान से भर जाना। वहां तुम अहोभाव से भर जाना। और तुमसे जीवन के लिए जो कुछ बन सके, तुम करना।

अगर ऐसा तुम्हारा भाव हो तो तुम अचानक पाओगे, तुम्हारी हजार चिंताएं खो गईं, क्योंकि वे तुम्हारी रुग्ण—वृत्ति से पैदा होती हैं। तुम्हारे हजार रोग खो गए, क्योंकि तुम्हारे रोग, तुम विध्वंस की भावना से भरते थे। तुम्हारे बहुत से घाव मिट गए, क्योंकि उन घावों को तुम दूसरे को दुख पहुंचा—पहुंचा कर खुद भी अपने को दुख पहुंचाते थे और हरा करते थे।

इस जगत में केवल वही आदमी आनंद को उपलब्ध हो सकता है, जो अपनी तरफ से, जहां भी आनंद घटित होता हो,उस आनंद से आनंदित होता है।

– ओशो
[साधना सूत्र – 13]

Comments

Popular posts from this blog

पहले सेक्स की कहानी, महिलाओं की जुबानी.

क्या मर्द और क्या औरत, सभी की उत्सुकता इस बात को लेकर होती है कि पहली बार सेक्स कैसे हुआ और इसकी अनुभूति कैसी रही। ...हालांकि इस मामले में महिलाओं को लेकर उत्सुकता ज्यादा होती है क्योंकि उनके साथ 'कौमार्य' जैसी विशेषता जुड़ी होती है। दक्षिण एशिया के देशों में तो इसे बहुत अहमियत दी जाती है। इस मामले में पश्चिम के देश बहुत उदार हैं। वहां न सिर्फ पुरुष बल्कि महिलाओं के लिए भी कौमार्य अधिक मायने नहीं रखता।                                                        महिला ने कहा- मैं चाहती थी कि एक बार यह भी करके देख लिया जाए और जब तक मैंने सेक्स नहीं किया था तब तो सब कुछ ठीक था। पहली बार सेक्स करते समय मैं बस इतना ही सोच सकी- 'हे भगवान, कितनी खु‍शकिस्मती की बात है कि मुझे फिर कभी ऐसा नहीं करना पड़ेगा।' उनका यह भी कहना था कि इसमें कोई भी तकलीफ नहीं हुई, लेकिन इसमें कुछ अच्छा भी नहीं था। पहली बार कुछ ठीक नहीं लगा, लेकिन वर्जीनिया की एक महिला का कहन...

Torrent Power Thane Diva Helpline & Customer Care 24x7 No : 02522677099 / 02522286099 !!

Torrent Power Thane Diva Helpline & Customer Care 24x7 No : 02522677099 / 02522286099 बिजली के समस्या के लिये आप Customer Care 24x7 No : 02522677099 / 02522286099 पर अपनी बिजली से सबंधित शिकायत कर सकते है। या Torrent Power ऑफिस जाकर भी अपनी शिकायत दर्ज करा सकते है। या उनके ईमेल id पर भी शिकायत कर सकते हो। To,                            Ass.Manager Torrent Power Ltd चद्ररगन रेसिटेंसी,नियर कल्पतरु जेवर्ल्स,शॉप नंबर-234, दिवा ईस्ट । consumerforum@torrentpower.com connect.ahd@torrentpower.com

Veer Sawarkar BMC Hospital Time Table !! वीर सावरकर सरकारी मुलुंड हॉस्पिटल डॉक्टर का टाइम टेबल !!

       !! Swatantrya veer V.D.Sawarkar !! !! BMC Hospital Veer Savarkar Hospital !! Mahatma Phule Road Hanuman Chowk, Mulund East, Hanuman Chowk, Mulund West, Mumbai, Maharashtra 400081 Open now:    Open 24 hours mcgm.gov.in 022 2163 6225