मुंबई।। पिछले सप्ताह मुंबई क्राइम ब्रांच ने शक्ति मिल कम्पाउंड गैंग रेप में जब चार्जशीट दायर की, तो उसमें एक नई बात सामने आई। उसमें पीड़िता लेडी फोटोग्राफर का बयान मैजिस्ट्रेट के सामने सीआरपीसी के सेक्शन 164 (5) के तहत लिया गया। पहले मजिस्ट्रेट के सामने बयान सेक्शन 164 के तहत लिए जाते थे।
रिटायर्ड पुलिस अधिकारी व कानून के जानकार रमेश महाले ने एनबीटी को सेक्शन 164 (5) और सेक्शन 164 के अंतर को विस्तार से समझाया। महाले के अनुसार, सीआरपीसी का सेक्शन 164 बहुत पहले से अस्तित्व में है। इस सेक्शन के तहत कितने लोगों का बयान मैजिस्ट्रेट के सामने दर्ज हुआ, इसका कोई आंकड़ा नहीं। लेकिन सेक्शन 164 (5) दिल्ली गैंग रेप के बाद बना है। किसका स्टेटमेंट 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने कराया जाए या नहीं, पहले यह विकल्प पुलिस के पास रहता था, लेकिन दिल्ली गैंग रेप के बाद बने कानून में सरकार ने रेप, इव टीजिंग और मॉलेस्टेशन से जुड़े केसों में पीड़िता का बयान मैजिस्ट्रेट के तहत लेना अनिवार्य कर दिया गया है। अब यह बयान सेक्शन 164 के तहत नहीं, बल्कि 164 (5 ) के तहत लिया जाएगा।
पहले पीड़िता जो भी बयान पुलिस या मैजिस्ट्रेट को देती थी, मुकदमा शुरू होने के दौरान उसे पूरा यह बयान ट्रायल कोर्ट में दोहराना होता था। इसके बाद उसका आरोपी के वकीलों द्वारा क्रॉस इग्जैमिनेशन होता था। लेकिन 164 (5 ) सेक्शन में इस बात का प्रावधान है कि यदि रेप, छेड़छाड़ या इव टीजिंग केस की पीड़िता मेंटली बयान देने के लिए फिट नहीं है, तो ट्रायल कोर्ट में उसका स्टेटमेंट फिर से नहीं लिया जाएगा, बल्कि उसका अदालत में सिर्फ क्रॉस इग्जैमिनेशन होगा।
किसी भी आरोपी, पीड़िता या गवाह का बयान मैजिस्ट्रेट के सामने इसलिए लिया जाता है, क्योंकि मैजिस्ट्रेट के सामने दिया गया बयान मुकदमे के दौरान मान्य माना जाता है। पुलिस को दिए बयान से आरोपी, शिकायतकर्ता या गवाह कोर्ट में मुकर सकता है, लेकिन मैजिस्ट्रेट के बयान से अक्सर नहीं। इसलिए महिलाओं से जुड़े केसों में सरकार ने दिल्ली गैंग रेप के बाद सीआरपीसी का नया सेक्शन 164 (5) बनाया।
रिटायर्ड पुलिस अधिकारी व कानून के जानकार रमेश महाले ने एनबीटी को सेक्शन 164 (5) और सेक्शन 164 के अंतर को विस्तार से समझाया। महाले के अनुसार, सीआरपीसी का सेक्शन 164 बहुत पहले से अस्तित्व में है। इस सेक्शन के तहत कितने लोगों का बयान मैजिस्ट्रेट के सामने दर्ज हुआ, इसका कोई आंकड़ा नहीं। लेकिन सेक्शन 164 (5) दिल्ली गैंग रेप के बाद बना है। किसका स्टेटमेंट 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने कराया जाए या नहीं, पहले यह विकल्प पुलिस के पास रहता था, लेकिन दिल्ली गैंग रेप के बाद बने कानून में सरकार ने रेप, इव टीजिंग और मॉलेस्टेशन से जुड़े केसों में पीड़िता का बयान मैजिस्ट्रेट के तहत लेना अनिवार्य कर दिया गया है। अब यह बयान सेक्शन 164 के तहत नहीं, बल्कि 164 (5 ) के तहत लिया जाएगा।
पहले पीड़िता जो भी बयान पुलिस या मैजिस्ट्रेट को देती थी, मुकदमा शुरू होने के दौरान उसे पूरा यह बयान ट्रायल कोर्ट में दोहराना होता था। इसके बाद उसका आरोपी के वकीलों द्वारा क्रॉस इग्जैमिनेशन होता था। लेकिन 164 (5 ) सेक्शन में इस बात का प्रावधान है कि यदि रेप, छेड़छाड़ या इव टीजिंग केस की पीड़िता मेंटली बयान देने के लिए फिट नहीं है, तो ट्रायल कोर्ट में उसका स्टेटमेंट फिर से नहीं लिया जाएगा, बल्कि उसका अदालत में सिर्फ क्रॉस इग्जैमिनेशन होगा।
किसी भी आरोपी, पीड़िता या गवाह का बयान मैजिस्ट्रेट के सामने इसलिए लिया जाता है, क्योंकि मैजिस्ट्रेट के सामने दिया गया बयान मुकदमे के दौरान मान्य माना जाता है। पुलिस को दिए बयान से आरोपी, शिकायतकर्ता या गवाह कोर्ट में मुकर सकता है, लेकिन मैजिस्ट्रेट के बयान से अक्सर नहीं। इसलिए महिलाओं से जुड़े केसों में सरकार ने दिल्ली गैंग रेप के बाद सीआरपीसी का नया सेक्शन 164 (5) बनाया।
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