इ-सर्विस डिलेवरी की व्यवस्था आरटीआइ एक्ट, 2005 को लागू करने में बड़ी सहायक हो सकती है. यह ग्रास रूट गवर्नेस का मॉडल प्रयोग तो है ही, आरटीआइ एक्ट को लागू करने में भी मॉडल भूमिका निभा सकती है. इसमें सार्वजनिक भागीदारी जुड़ी है. इसलिए आरटीआइ को लागू करने में निजी लोगों को भागीदार बनाया जा सकता है. चूंकि इ-गवर्नेस प्रोजेक्ट त्रि-स्तरीय (पंचायत, प्रखंड और जिला) है. इसलिए आरटीआइ को ग्रास रूट पर प्रभावी तरीके से इसके जरिये लागू किया जा सकता है. प्रज्ञा केंद्र और मास्टर प्रज्ञा केंद्र सूचनाओं को अपलोड कर सूचना मांगने की दर को कम कर सकते हैं.
पहली बात :
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 4 (1) (क) कहता है : ‘प्रत्येक लोक प्राधिकारी अपने सभी अभिलेखों को सम्यक रूप से सूचीपत्रित और अनुक्रमणिकाबद्ध ऐसी रीति और रूप में रखेगा, जो इस अधिनियम के अधीन सूचना के अधिकार को सुकर बनाता है और सुनिश्चित करेगा कि ऐसे सभी अभिलेख, जो कंप्यूटरीकृत किये जाने के लिए समुचित है, युक्तियुक्त समय के भीतर और संसाधनों की उपलब्धता के अधीन रहते हुए, कंप्यूटरीकृत और विभिन्न प्रणालियों पर संपूर्ण देश में नेटवर्क के माध्यम से संबद्ध है, जिससे कि ऐसे अभिलेख तक पहुंच को सुकर बनाया जा सके.’ प्रज्ञा केंद्र की सेवा के जरिये दस्तावेजों के कंप्यूटरीकरण का कार्य आसानी से संभव है. अभी इसी कमी को लेकर आरटीआइ कमजोर है और सरकार भी आलोचना का विषय बनी हुई है.
दूसरी बात :
अधिनियम की धारा 4(1)(ख) कहती है : ‘(सभी सरकारी) इस अधिनियम के अधिनियमन से एक सौ बीस दिन (12 अक्तूबर 2005) के भीतर (17 बिंदुओं की सूचना) प्रकाशित करेगा और तत्पश्चात इन प्रकाशनों को प्रत्येक वर्ष में अद्यतन (अपडेट) करेगा.’ इसका अनुपालन नहीं हो रहा है. जब प्रज्ञा केंद्र में 13 प्रकार की सेवाओं को देने के लिए सूचनाओं और दस्तावेजों का कंप्यूटरीकरण नियमित रूप से होगा, तब आरटीआइ एक्ट के इस प्रावधान को लागू करने में मदद मिलेगी.
तीसरी बात :
अधिनियम की धारा 4(2) कहती है : ‘प्रत्येक लोक अधिकारी का निरंतर यह प्रयास होगा कि वह उपधारा (1) के खंड (ख)की अपेक्षाओं के अनुसार स्वप्रेरणा से, जनता को नियमित अंतरालों पर संसूचना के विभिन्न साधनों के माध्यम से, जिसमें इंटरनेट भी है, इतनी अधिक सूचना उपलब्ध कराने के लिए उपाय करे, जिससे कि जनता को सूचना प्राप्त करने के लिए इस अधिनियम का कम से कम सहारा लेना पड़़े’ इसका अनुपालन भी नहीं हो रहा है. कम से कम प्रखंड और पंचायत स्तर पर तो यह काम बिल्कुल नहीं हो रहा है. इससे लोगों को सूचना पाने के लिए आरटीआइ का इस्तेमाल करना पड़ रहा है. छोटी-छोटी जानकारी के लिए उन्हें परेशान भी होना पड़ रहा है.
पहली बात :
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 4 (1) (क) कहता है : ‘प्रत्येक लोक प्राधिकारी अपने सभी अभिलेखों को सम्यक रूप से सूचीपत्रित और अनुक्रमणिकाबद्ध ऐसी रीति और रूप में रखेगा, जो इस अधिनियम के अधीन सूचना के अधिकार को सुकर बनाता है और सुनिश्चित करेगा कि ऐसे सभी अभिलेख, जो कंप्यूटरीकृत किये जाने के लिए समुचित है, युक्तियुक्त समय के भीतर और संसाधनों की उपलब्धता के अधीन रहते हुए, कंप्यूटरीकृत और विभिन्न प्रणालियों पर संपूर्ण देश में नेटवर्क के माध्यम से संबद्ध है, जिससे कि ऐसे अभिलेख तक पहुंच को सुकर बनाया जा सके.’ प्रज्ञा केंद्र की सेवा के जरिये दस्तावेजों के कंप्यूटरीकरण का कार्य आसानी से संभव है. अभी इसी कमी को लेकर आरटीआइ कमजोर है और सरकार भी आलोचना का विषय बनी हुई है.
दूसरी बात :
अधिनियम की धारा 4(1)(ख) कहती है : ‘(सभी सरकारी) इस अधिनियम के अधिनियमन से एक सौ बीस दिन (12 अक्तूबर 2005) के भीतर (17 बिंदुओं की सूचना) प्रकाशित करेगा और तत्पश्चात इन प्रकाशनों को प्रत्येक वर्ष में अद्यतन (अपडेट) करेगा.’ इसका अनुपालन नहीं हो रहा है. जब प्रज्ञा केंद्र में 13 प्रकार की सेवाओं को देने के लिए सूचनाओं और दस्तावेजों का कंप्यूटरीकरण नियमित रूप से होगा, तब आरटीआइ एक्ट के इस प्रावधान को लागू करने में मदद मिलेगी.
तीसरी बात :
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