वाशिंगटन... दुनिया में करीब 120 करोड़ लोग गरीबी के चलते बुरे हालात में गुजर-बसर कर रहे हैं। इनमें से एक तिहाई अभी भी भारत में रहते हैं। इन्हें 65 रुपये [1.25 डॉलर] प्रतिदिन से भी कम पर जीवन यापन करना पड़ रहा है। तमाम कोशिशों के बावजूद भारत अपने आपको गरीबी की विकराल समस्या से छुटकारा नहीं दिला पा रहा है। वर्ल्ड बैंक ने गुरुवार को 'गरीबों की स्थिति' नाम से जारी रिपोर्ट में यह खुलासा किया है। रिपोर्ट के मुताबिक, 1981 से 2010 के दौरान दुनिया के विकासशील क्षेत्रों में लगभग 21 फीसद गरीबी कम हुई। हालांकि, इन देशों में 59 फीसद की तेज दर से जनसंख्या भी बढ़ी है। गरीबी कम होने का आंकड़ा उत्साहजनक तो है, लेकिन बढ़ती जनसंख्या के कारण जमीन पर इससे ज्यादा बदलाव नहीं दिखाई देते। वर्ल्ड बैंक ने माना है कि अभी भी 1.2 अरब लोग दुनिया भर में अत्यंत गरीब की श्रेणी में आते हैं। अफ्रीका में विकास के बावजूद गरीबी भयंकर समस्या बनी हुई है। दुनिया के एक तिहाई गरीब सहारा मरुस्थल के आसपास के देशों में रह रहे हैं। रिपोर्ट कहती है कि लैटिन अमेरिका में गरीबी का आंकड़ा पिछले 20 साल में 12 फीसद से घटकर छह पर आ गया है। वहीं, चीन में यह आंकड़ा 43 फीसद से घटकर 13 फीसद पर आ गया है।
वर्ल्ड बैंक के मुखिया [ग्रुप प्रेसीडेंट] जिम योंग किम ने बताया कि हमने पिछले कुछ सालों में 65 रुपये प्रतिदिन पर गुजारा कर रहे लोगों की संख्या में काफी कमी लाई है। हालांकि, इतनी बड़ी संख्या में अभी भी गरीबों की मौजूदगी चिंता का विषय है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इन चिंताजनक आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए गरीबी के खिलाफ लड़ाई को अगले चरण में ले जाना चाहिए। हमें 2030 तक गरीबी को जड़ से उखाड़ने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ना होगा।
वर्ल्ड बैंक के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और मुख्य अर्थशास्त्री [सीनियर वाइस प्रेसीडेंट और चीफ इकोनॉमिस्ट] कौशिक बसु ने कहा कि यदि दुनिया की कुल आबादी का पांचवा हिस्सा अभी भी गरीबी रेखा के नीचे है, तो हमारे प्रयासों में कुछ कमी है। बसु ने कहा कि वर्ल्ड बैंक,हमारे सहयोगी देशों और अंतरराष्ट्रीय विकास के लिए काम कर रहे संगठनों को गरीबों के हित में होने वाले निवेश को बढ़ावा देना होगा। हमें इस समस्या का सामना करना होगा।
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