इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक ऐंड सीरिया (आईएसआईएस) के आतंकवादियों ने सद्दाम हुसैन को मौत की सजा सुनाने वाले जज की कथित तौर हत्या कर दी है। इराक के पूर्व तानाशाह सद्दाम के करीबी रहे इब्राहिम अल-दौरी के फेसबुक अकाउंट पर यह दावा किया गया है। जॉर्डन के एक सांसद ने भी अपने फेसबुक पेज पर ऐसा ही दावा किया है। हालांकि, इराकी सरकार ने न तो इस हत्या की पुष्टि की है और न ही इसे खारिज किया है।
'इंटरनैशनल बिजनेस टाइम्स' ने अल-दौरी के अकाउंट के हवाले से दावा किया कि सद्दाम को फांसी की सजा सुनाने वाले जज रऊफ अब्दुल रहमान का अपहरण हुआ है। 'न्यू यॉर्क टाइम्स' ने हाल ही में कहा था कि आईएसआईएस के नाटकीय रूप से आक्रामक होने के पीछे अल-दौरी ही हैं। वह 2003 में इराक पर अमेरिका के हमले तक इराकी कमांड काउंसिल के डिप्टी चेयरमैन थे और 2007 में इराक के प्रतिबंधित बाथ पार्टी के नेता बनाए गए थे।
जॉर्डन के सांसद खलील अतीह के फेसबुक फेज का हवाला देते हुए डेली मेल, न्यू यॉर्क पोस्ट और कुछ अन्य न्यूज वेबसाइट्स ने कहा कि 16 जून को जज रहमान को बंधक किया गया और 18 तारीख को फांसी दे दी गई। अतीह के मुताबिक, रहमान बगदाद से एक डांसर की वेशभूषा में भाग रहे थे लेकिन उन्हें पकड़ लिया गया।जज रहमान एक कुर्द थे और जनवरी 2006 में राज़गार अमीन से सद्दाम का केस छीनकर उन्हें इसकी सुनवाई सौंपी गई थी। अमीन पर आरोप था कि वह सद्दाम के प्रति नरम रुख अपना रहे थे। 'डेली मेल' ने दावा किया था सद्दाम को फांसी की सजा सुनाने के बाद रहमान ने मार्च 2007 में ब्रिटेन से शरण मांगी थी, लेकिन आधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि नहीं हो पाई।
सद्दाम को मौत की सजा सुनाए जाने की इराक के कुछ हलकों में तीखी आलोचना हुई थी। कहा गया था कि हलबजा से होने की वजह से रहमान ने पक्षपातपूर्ण फैसला सुनाया था। 16 मार्च 1988 को ईरान-इराक युद्ध के दौरान इराकी सैनिकों ने कुर्द शहर हलबजा पर रसायनिक बम गिराए थे। अलग-अलग अनुमान के मुताबिक 3200 से 5000 लोगों की मौत हुई थी और लगभग 20 हजार से भी ज्यादा लोग घायल हुए थे। इस हमले में जज के कई रिश्तेदार भी मारे गए थे। इसके अलावा सद्दाम के सुरक्षा एजेंटों ने जज को हिरासत में लेकर उन पर जुल्म ढाए थे।
'इंटरनैशनल बिजनेस टाइम्स' ने अल-दौरी के अकाउंट के हवाले से दावा किया कि सद्दाम को फांसी की सजा सुनाने वाले जज रऊफ अब्दुल रहमान का अपहरण हुआ है। 'न्यू यॉर्क टाइम्स' ने हाल ही में कहा था कि आईएसआईएस के नाटकीय रूप से आक्रामक होने के पीछे अल-दौरी ही हैं। वह 2003 में इराक पर अमेरिका के हमले तक इराकी कमांड काउंसिल के डिप्टी चेयरमैन थे और 2007 में इराक के प्रतिबंधित बाथ पार्टी के नेता बनाए गए थे।
जॉर्डन के सांसद खलील अतीह के फेसबुक फेज का हवाला देते हुए डेली मेल, न्यू यॉर्क पोस्ट और कुछ अन्य न्यूज वेबसाइट्स ने कहा कि 16 जून को जज रहमान को बंधक किया गया और 18 तारीख को फांसी दे दी गई। अतीह के मुताबिक, रहमान बगदाद से एक डांसर की वेशभूषा में भाग रहे थे लेकिन उन्हें पकड़ लिया गया।जज रहमान एक कुर्द थे और जनवरी 2006 में राज़गार अमीन से सद्दाम का केस छीनकर उन्हें इसकी सुनवाई सौंपी गई थी। अमीन पर आरोप था कि वह सद्दाम के प्रति नरम रुख अपना रहे थे। 'डेली मेल' ने दावा किया था सद्दाम को फांसी की सजा सुनाने के बाद रहमान ने मार्च 2007 में ब्रिटेन से शरण मांगी थी, लेकिन आधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि नहीं हो पाई।
सद्दाम को मौत की सजा सुनाए जाने की इराक के कुछ हलकों में तीखी आलोचना हुई थी। कहा गया था कि हलबजा से होने की वजह से रहमान ने पक्षपातपूर्ण फैसला सुनाया था। 16 मार्च 1988 को ईरान-इराक युद्ध के दौरान इराकी सैनिकों ने कुर्द शहर हलबजा पर रसायनिक बम गिराए थे। अलग-अलग अनुमान के मुताबिक 3200 से 5000 लोगों की मौत हुई थी और लगभग 20 हजार से भी ज्यादा लोग घायल हुए थे। इस हमले में जज के कई रिश्तेदार भी मारे गए थे। इसके अलावा सद्दाम के सुरक्षा एजेंटों ने जज को हिरासत में लेकर उन पर जुल्म ढाए थे।
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