अगर कोई आपके इंटरनेट बैंकिंग पासवर्ड का मिसयूज करता है तो अब उसे लेकर फिक्र करने की जरूरत नहीं है। ऑनलाइन फर्जीवाड़े के चलते आपके अकाउंट से कितने भी रुपये निकल जाएं अधिक से अधिक 10,000 रुपये का नुकसान होगा। बाकी के 90,000 रुपये की भरपाई बैंक करेगा। बैंकिंग रेग्युलेटर आरबीआई ने यह आदेश बैंकों को दिया है।
बैंकों को शायद ही यह आदेश पसंद आएगा और अब तक उनमें से ज्यादातर ने इसे औपचारिक तौर पर स्वीकार नहीं किया है। हालांकि उनके पास कोई रास्ता भी नहीं है। बैंकिंग नियमों पर आखिरी फैसला आरबीआई का होता है। नया नियम आरबीआई की सब्सिडियरी, बैंकिंग कोड्स और स्टैंडर्ड बोर्ड ऑफ इंडिया (बीसीएसबीआई) के कोड का हिस्सा है।बैंकों को अक्सर इस तरह की शिकायतें मिलती हैं कि पासवर्ड के गलत हाथों में जाने से ग्राहकों को काफी नुकसान हुआ है। इससे बैंक और कस्टमर के बीच लंबी लड़ाई भी शुरू हो जाती है, जिसमें ग्राहक को यह साबित करना पड़ता है कि फर्जीवाड़े में उसकी गलती नहीं है। पहली बार, नए कोड में कहा गया है कि इंटरनेट बैंकिंग में किसी अनअथॉराइज्ड ट्रांजैक्शन के लिए कस्टमर्स की लायबिलिटी कम होगी, भले ही उसके खाते से कितना भी पैसा क्यों न निकाला गया हो।
बीसीएसबीआई के चेयरमैन ए सी महाजन ने बताया, 'जहां कस्टमर ने खुद पासवर्ड बताया हो या सीधे या परोक्ष तौर पर वह इस तरह के फर्जीवाड़े में शामिल रहा हो, उनमें वह अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकता। इस तरह के मामले में ग्राहक जिम्मेदार होगा। हालांकि जहां उसकी गलती नहीं है और उसने बैंक को गलत ट्रांजैक्शन के बारे में जानकारी दे दी है, उसमें उसे अधिक से अधिक 10,000 रुपये का नुकसान सहना होगा।'कोड में यह भी कहा गया है कि बैंक पासवर्ड मिलने से पहले ऑनलाइन ट्रांजैक्शन के चलते कस्टमर को कोई नुकसान होता है तो उसके लिए भी बैंक जिम्मेदार होगा। हालांकि, अगर कस्टमर यह दावा करता है कि सिक्यॉरिटी संबंधी मामलों में बैंक की गलती के चलते नुकसान हुआ है तो इसके साबित होने के बाद उसे एक पैसे का भी घाटा नहीं होगा। यही नहीं यूजर आईडी और पासवर्ड लीक में कस्टमर की गलती साबित करने की जिम्मेदारी भी बैंक की होगी।
आरबीआई के डेटा से पता चलता है कि 2011-12 में टेक्नॉलजी से जुड़े बैंक फ्रॉड की संख्या 10,048 रही, जिनसे 38 करोड़ का ट्रांजैक्शन किया गया। 2012-13 में ऐसे मामलों की संख्या 8765 रही और इस तरह से 67 करोड़ रुपये का ट्रांजैक्शन हुआ।
बैंकों को शायद ही यह आदेश पसंद आएगा और अब तक उनमें से ज्यादातर ने इसे औपचारिक तौर पर स्वीकार नहीं किया है। हालांकि उनके पास कोई रास्ता भी नहीं है। बैंकिंग नियमों पर आखिरी फैसला आरबीआई का होता है। नया नियम आरबीआई की सब्सिडियरी, बैंकिंग कोड्स और स्टैंडर्ड बोर्ड ऑफ इंडिया (बीसीएसबीआई) के कोड का हिस्सा है।बैंकों को अक्सर इस तरह की शिकायतें मिलती हैं कि पासवर्ड के गलत हाथों में जाने से ग्राहकों को काफी नुकसान हुआ है। इससे बैंक और कस्टमर के बीच लंबी लड़ाई भी शुरू हो जाती है, जिसमें ग्राहक को यह साबित करना पड़ता है कि फर्जीवाड़े में उसकी गलती नहीं है। पहली बार, नए कोड में कहा गया है कि इंटरनेट बैंकिंग में किसी अनअथॉराइज्ड ट्रांजैक्शन के लिए कस्टमर्स की लायबिलिटी कम होगी, भले ही उसके खाते से कितना भी पैसा क्यों न निकाला गया हो।
बीसीएसबीआई के चेयरमैन ए सी महाजन ने बताया, 'जहां कस्टमर ने खुद पासवर्ड बताया हो या सीधे या परोक्ष तौर पर वह इस तरह के फर्जीवाड़े में शामिल रहा हो, उनमें वह अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकता। इस तरह के मामले में ग्राहक जिम्मेदार होगा। हालांकि जहां उसकी गलती नहीं है और उसने बैंक को गलत ट्रांजैक्शन के बारे में जानकारी दे दी है, उसमें उसे अधिक से अधिक 10,000 रुपये का नुकसान सहना होगा।'कोड में यह भी कहा गया है कि बैंक पासवर्ड मिलने से पहले ऑनलाइन ट्रांजैक्शन के चलते कस्टमर को कोई नुकसान होता है तो उसके लिए भी बैंक जिम्मेदार होगा। हालांकि, अगर कस्टमर यह दावा करता है कि सिक्यॉरिटी संबंधी मामलों में बैंक की गलती के चलते नुकसान हुआ है तो इसके साबित होने के बाद उसे एक पैसे का भी घाटा नहीं होगा। यही नहीं यूजर आईडी और पासवर्ड लीक में कस्टमर की गलती साबित करने की जिम्मेदारी भी बैंक की होगी।
आरबीआई के डेटा से पता चलता है कि 2011-12 में टेक्नॉलजी से जुड़े बैंक फ्रॉड की संख्या 10,048 रही, जिनसे 38 करोड़ का ट्रांजैक्शन किया गया। 2012-13 में ऐसे मामलों की संख्या 8765 रही और इस तरह से 67 करोड़ रुपये का ट्रांजैक्शन हुआ।
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