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RTI के तहत सूचना मांगने का कारण बताना होगा !

नई दिल्ली (एसएनएन): अब यदि आप सूचना का अधिकार कानून (आरटीआइ) का प्रयोग करते हैं तो आपको इसके लिए कारण भी बताना होगा. यानी आप अब सूचना मांगने के लिए स्वतंत्र नहीं है यदि आप उचित कारण बताएंगे तभी आपको सूचना मुहैया कराई जाएगी अन्यथा नहीं. सूचना का अधिकार कानून (आरटीआइ) पर दूरगामी असर डालने वाले एक फैसले में मद्रास हाई कोर्ट ने कहा है कि आरटीआइ आवेदकों को सूचना मांगने की वजह बतानी चाहिए. साथ ही उसने एक प्रमुख मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के खिलाफ शिकायत पर पंजीयन कार्यालय को फाइल नोटिंग उजागर करने से भी छूट दे दी है.
जस्टिस एन पॉल वसंतकुमार और के रविचंद्रबाबू के खंडपीठ ने कहा कि किसी भी आवेदक को सूचना मांगने का उद्देश्य जरूर बताना चाहिए और उसे यह भी पुष्टि करनी चाहिए कि उसका यह उद्देश्य कानूनसंगत है. यह एक ऐसा फैसला है जो पारदर्शिता और आरटीआइ कानून के तहत सूचना हासिल करने के अधिकार पर दूरगामी प्रभाव डाल सकता है. कानूनी विशेषज्ञों और आरटीआइ कार्यकर्ताओं ने कोर्ट के इस फैसले की आलोचना की है.
पीठ ने अपने फैसले में कहा कि यदि सूचनाएं एक ऐसे व्यक्ति को दी जानी हैं, जिसके पास इन्हें मांगने के पीछे की कोई पर्याप्त वजह या उद्देश्य नहीं है, तो हमारा मानना है कि सूचना मांगने के पीछे के उद्देश्य से अनभिज्ञ व्यक्ति को ये सूचनाएं पर्चों की तरह देने से कानून के उद्देश्य की पूर्ति नहीं होती.
आपको बता दें क विधायिका ने आरटीआइ कानून पारित करते समय उसमें खास तौर पर धारा 6(2) शामिल की थी. यह धारा कहती है कि सूचना के लिए आवेदन करने वाले व्यक्ति को इसके लिए कोई भी वजह बताने की जरूरत नहीं होगी.
मद्रास हाई कोर्ट के आदेश में सूचना के अधिकार कानून की धारा 6 (2) का जिक्र नहीं है. आदेश में कहा गया है कि हमें गलत न समझा जाए कि हम विधायिका के खिलाफ कुछ नहीं कह रहे हैं. हम इस बात पर जोर देना चाहते हैं कि एक कानून के (खासतौर पर इस कानून के) उद्देश्य की पूर्ति होनी चाहिए. इसका उद्देश्य एक सार्वजनिक प्राधिकरण का पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ प्रभावी संचालन सुनिश्चित करना है.
इस आदेश को ‘अवैध’ बताते हुए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा है कि यह कानून की ‘मूल भावना’ के खिलाफ है. प्रशांत ने कही कि यह आदेश हाई कोर्ट ने अपने हित में दिया है. यह कई राज्यों के हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व आदेशों के ही अनुरूप है जो वस्तुत: अदालत की प्रशासनिक पारदर्शिता को रोकता है.
आरटीआइ कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह फैसला आरटीआइ कानून के लिए एक गंभीर झटका है क्योंकि यह धारा 6(2) को निष्फल करने के तुल्य है और वह भी स्पष्ट तौर पर कहे बिना. आरटीआइ विशेषज्ञ शेखर सिंह ने भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने सूचना के अधिकार को एक मूल अधिकार के तौर पर परिभाषित किया है और इसका इस्तेमाल करने के लिए किसी को कोई वजह बताने की जरूरत नहीं है. सिंह ने कहा कि परिभाषिक तौर पर देखें तो मौलिक अधिकार का अर्थ है कि अधिकार में कोई शर्त निहित नहीं है.
शेखर सिंह ने कहा कि इस आदेश के साथ दो समस्याएं हैं. यह कानून का उल्लंघन है. आरटीआइ सूचना मांगने के लिए किसी कारण की मांग नहीं करता. दूसरे, यह आदेश सुप्रीम कोर्ट के उन पूर्व आदेशों का भी उल्लंघन है जिसमें इसे मौलिक अधिकार बताया गया है.
कुछ ऐसे ही प्रतिक्रिया कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनीशिएटिव के कार्यक्रम संयोजक वेंकटेश की भी है. उनका कहना है कि यह आदेश आरटीआइ कानून का पूरी तरह उल्लंघन है. नायक ने कहा कि सूचना का अधिकार कानून एक मौलिक अधिकार है और यह भारत में जन्मे हर नागरिक को प्राप्त है. आपको अपने मौलिक अधिकारों के इस्तेमाल के लिए वजह बताने की जरूरत नहीं है. सूचना के अधिकार को अनुच्छेद 19 (1) (ए) में प्रदत्त भाषण व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अनुच्छेद 21 में वर्णित जीवन के अधिकार के तहत सुप्रीम कोर्ट से मान्यता प्राप्त है.

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