मोदी सरकार का अब अगला कदम रेल बजट को खत्म करना है। अंग्रेजों के जमाने से यानी 92 साल से रेल बजट बनाने की प्रथा को खत्म करने की तैयारी है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक 2017 में अब रेल बजट नहीं पेश किया जाएगा। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 5 सदस्यीय टीम बनाई है जो इस दिशा में काम करेगी।
रेल बजट को खत्म करने की मुख्य वजह इसके माध्यम से राजनीतिक कद आंकने की प्रथा को खत्म करना माना जा रहा है। 1996 की गठबंधन सरकार के बाद से रेल बजट को इस तरह से देखा जाता रहा है कि किस पार्टी और किस नेता ने अपने इलाके में ज्यादा रेल घोषणाएं कीं। गौरतलब हो कि 1924 से देश का रेल बजट अलग से रखा जा रहा है।
अंग्रेजों के जमाने से बन रहा रेल बजट खत्म करने की तैयारी
रेल बजट को अलग से पेश करने की प्रथा अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही है। इसे खत्म करने का आइडिया नीति आयोग के दो सदस्यों बिबेक देबरॉय और किशोर देसाई के सुझाव के बाद ही आया। रेल मंत्री सुरेश प्रभु भी इसके लिए तैयार हैं। उन्होंने राज्यसभा में इसकी जानकारी भी दी कि मैंने वित्त मंत्री अरुण जेटली से आग्रह किया है कि रेल बजट को आम बजट में ही शामिल कर दिया जाए। इससे देश के करोड़ों यात्रियों का पैसा भी बचेगा।
अन्य विभागों और मंत्रालय की तरह हो जाएगा रेल मंत्रालय
अगर रेल बजट आम बजट के साथ मिल जाएगा तो वह भी सरकार के अन्य विभागों की तरह हो जाएगा जो राजस्व का समर्थन वित्त मंत्रालय द्वारा प्राप्त करेगा। इसके अलावा वित्त मंत्रालय के साथ बजट के तौर पर मिल जाने के बाद रेल से होने वाली आमदनी को अन्य जगहों पर खर्च किया जा सकेगा साथ ही अन्य विभागों का राजस्व भी रेलवे में निवेश किया जा सकेगा। इससे रेलवे की सेहत में तेजी से सुधार होगा।
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