Sr.Police Officer Mumbra R.K. Tayde ने अपने निजी केबिन मे पीडित महिला को बुलाकर कहा कि, पती है, तो शारारीक संबध, शारारीक छल करेगा ही.
शारारीक
संबध, शारारीक छल करेगा ही.
रुबिना एकलाख शेख ने तारीख- 15 सप्टेबर 2016 को अपने पती डॉक्टर एकलाख
शेख के खिलाफ धोकाधडी, उसके मर्जी के खिलाफ शारारीक संबध बनाना ,मारपीट और पहले
पत्नी के होते हुवे भी दुसरी शादी करने का लिखित-शिकायत पत्र Jt. Commissiner
Thane को दिया था. लेकीन आज 40 दिन गुजर जाने के बाद भी कोई कारवाही नही कि, जब
हमारे मिडिया के चीफ एडिटर V.R.Chavan ने इस केस से संबधित पूछताज करने- Sr.Police Officer
Mumbra R.K. Tayde के पास गये तो उन्होने कहा शिकायत जिसकी है, उसको पहले मेरे
केबिन मे भेजो मे शिकायतकर्ता से पहले बात करना चाहता हु.आप बाहर जायो और
पीडित-महिला को भेजो.
जब रुबिना एकलाख शेख Sr.Police Officer Mumbra R.K. Tayde ने
अपने निजी केबिन मे गई तो उन्होने लिखित-शिकायत पत्र दिखाने को कहा और पत्र
देखने के बाद कहा कि पती है, तो शारारीक संबध, शारारीक छल करेगा हि. आप अपनी
शिकायत महिला- विभाग ठाणे मे जाकर करो. हम नही लेगे आपकी शिकायत.
जब हमारी मिडिया के चीफ एडिटर V.R.Chavan को पीडित महिला ने अंदर कि
बातचीत के बारे मे बताया तो,हमने जेसे ही केबिन मे जाने लगे तो Sr.Police Officer
Mumbra R.K. Tayde अपने केबिन से बाहर आकर अपने गाडी मे बैठकर चले गये. हम से बात
भी नही किया.
मा. आर. के. तायडे जी.
आपको पता होना चाहीये कि पीडित-महिला के केस मे महिला पो.अधिकरी से बातचीत
और जांच करने के लिये नियुक्त करना चाहीये था. और महिला का NO का मतलब NO ही होता
है. उसके मर्जी के खिलाफ शारारीक संबध बनाना, रेप होता है. मा. आर. के.
तायडे जी, मा. उच्चन्यायलय का आदेश को एक बार फिर से पढना जरुर.
महिला अधिकारों का हनन और कानून
सामाजिक तौर पर महिलाओं को त्याग, सहनशीलता व शर्मीलेपन का ताज पहनाया गया है, जिसके भार से दबी महिला कई बार जानकारी होते हुए भी इन कानूनों का उपयोग नहीं कर पातीं तो बहुत केसों में महिलाओं को पता ही नहीं होता कि उनके साथ हो रही घटनाएं हिंसा हैं और इससे बचाव के लिए कोई कानून भी है। आमतौर पर शारीरिक प्रताड़ना यानी मारपीट, जान से मारना आदि को ही हिंसा माना जाता है और इसके लिए रिपोर्ट भी दर्ज कराई जाती है।
इसके लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 498 के तहत ससुराल पक्ष के लोगों द्वारा की गई क्रूरता, जिसके अंर्तगत मारपीट से लेकर कैद में रखना, खाना न देना व दहेज के लिए प्रताड़ित करना आदि आता है, के तहत अपराधियों को 3 वर्ष तक की सजा दी जा सकती है, पर शारीरिक प्रताड़ना की तुलना में महिलाओं के साथ मानसिक प्रताड़ना के केस ज्यादा होते हैं।
मनपसंद कपड़े न पहनने देना, मनपसंद नौकरी या काम न करने देना, अपनी पसंद से खाना न खाने देना, बालिग व्यक्ति को अपनी पसंद से विवाह न करने देना या ताने देना, मनहूस आदि कहना, शक करना, मायके न जाने देना, किसी खास व्यक्ति से मिलने पर रोक लगाना, पढ़ने न देना, काम छोड़ने का दबाव डालना, कहीं आने-जाने पर रोक लगाना आदि मानसिक प्रताड़ना है।
आमतौर पर एक सीमा तक महिलाएं इसे बर्दाश्त करती हैं, क्योंकि परंपरा के नाम पर बचपन से वे यह देखती सहती आती हैं, लेकिन घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 इन स्थितियों में भी महिला की मदद करता है। खास बात यह है कि घरेलू हिंसा अधिनियम में सभी महिलाओं के अधिकार की रक्षा की संभावना है।
इसके तहत विवाहित महिला के साथ-साथ अविवाहित, विधवा, बगैर शादी के साथ रहने वाली महिला, दूसरी पत्नी के तौर पर रहने वाली महिला व 18 वर्ष से कम के लड़की व लड़का सभी को संरक्षण देने का प्रयास किया गया है। इस कानून में घर में रहने का अधिकार, संरक्षण, बच्चों की कस्टडी व भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार महिलाओं को मिलता है, जो किसी और कानून में संभव नहीं है।
आईपीसी की धारा 125 के तहत विवाहित महिलाओं को भरण-पोषण का अधिकार मिलता है, लेकिन बगैर विवाह के या दूसरी पत्नी के तौर पर रहने वाली महिला कआज वह समय है, जब एक तरफ महिलाएं आसमान छू रही हैं, हर क्षेत्र में पुरुषों से कंधा मिलाकर चल रही हैं तो कहीं बहुत आगे भी निकल गई हैं, परंतु यह भी सच है कि महिलाओं व लड़कियों के साथ होने वाली हिंसा भी सीमा से आगे बढ़ चुकी है।
हर व्यक्ति जन्म से ही कुछ अधिकार लेकर आता है चाहे वह जीने का अधिकार हो या विकास के लिए अवसर प्राप्त करने का, परंतु इस पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के साथ लैंगिक आधार पर किए जा रहे भेदभाव की वजह से महिलाएं इन अधिकारों से वंचित रह जाती हैं। इसी विचार के चलते महिलाओं के अधिकारों को सुनिश्चित करने हेतु हमारे संविधान में अलग से कानून बनाए गए हैं या समय-समय पर इनमें संशोधन किया गया है।
अपराध - भा,द,स, की धारा - - सजा
अपहरण, भगाना या औरत को शादी के लिए मजबूर करना- -धारा 366 -10 वर्षपहली पत्नी के जीवित रहते दूसरा विवाह करना- -धारा 494 -7 वर्षपति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता- -धारा 498 ए -3 वर्षबेइज्जती करना, झूठे आरोप लगाना- -धारा 499 -2 वर्षदहेज- -धारा 304 क -आजीवन कारावासदहेज मृत्यु- -धारा 304 ख -आजीवन कारावासआत्महत्या के लिए दबाव बनाना- -धारा 306 -10 वर्षसार्वजनिक स्थान पर अश्लील कार्य एवं अश्लील गीत गाना -धारा 294 -3 माह कैद या जुर्माना या दोनों-महिला की शालीनता भंग करने की मंशा से की गई अश्लील हरकत- -धारा 354 -2 वर्षमहिला के साथ अश्लील हरकत करना या अपशब्द कहना- -धारा 509 -1 वर्षबलात्कार- -धारा 376 -10 वर्ष तक की सजा या उम्रकैद-महिला की सहमति के बगैर गर्भपात कारित करना- -धारा 313 -आजीवन कारावास या 10 वर्ष कैद/ जुर्माना।।। अबला नहीं अव्वल
साधारणतयः यह समझा जाता है कि पुरुष, महिलाओं से शक्तिशाली हैं, लेकिन यह बहुत बड़ा भ्रम है। अब तो वायोलोजिस्टस जीवन वैज्ञानिक भी इस बात पर सहमत है कि स्त्री ही ज्यादा शक्तिशाली है। यह केवल पुरुष का अहंकार है, सदियों से चली आ रही गलतफहमी में जी रहा है पुरुष।
यदि लड़कियाँ, लड़कों से कमजोर हैं, तो सरकार ने शादी के लिए लड़कों की उम्र 21 वर्ष और लड़कियों की उम्र 18 वर्ष क्यों तय की है? शादी के बाद शारीरिक संबंध स्थापित करने के लिए शारीरिक श्रम करना पड़ता है। प्रथम शारीरिक संबंधों के दौरान लड़की को कौमार्य झिल्ली भंग होने पर कष्ट सहना पड़ता है, जबकि पुरुष आनंद का भागी होता है तथा यौन संबंधों के पश्चात पुरुष का केवल वीर्य स्खलन होने पर वह शांत महसूस करता है। जबकि स्त्री को गर्भ धारण की संभवानाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। गर्भ काल व प्रसवकाल की पीड़ा का आभास तो मात्र माताएँ ही कर सकती हैं। प्रसव पीड़ा का असहनीय दर्द को कमजोर सहन नहीं कर सकता।
यदि पुरुष, स्त्री से शक्तिशाली होता तो शादी के लिए स्त्री की उम्र 21 वर्ष और पुरुष की उम्र 18 वर्ष तय होती। प्रसव पीड़ा को सहर्ष सहन कर अपनी औलाद के भोजन का इंतजाम वह अपने खून व भावनाओं से निर्मित दूध से करती है। सारा जग जानता है कि शिशु के लिए माँ का दूध ही सर्वश्रेष्ठ आहार है। इतना सबकुछ एक कमजोर नहीं कर सकता।
एक वैज्ञानिक अध्यन के अनुसार शारीरिक, मानसिक, बौधिक और भावनात्मक रूप से लड़कों और लड़कियों में पाँच वर्ष का फासला होता है। लड़कियाँ अपने हमउम्र लड़कों से पाँच वर्ष पूर्व परिपक्व हो जाती हैं। व्यावहारिक जीवन में भी देखा जाता है कि छोटी उम्र में ही लड़कियाँ अधिक व्यावहारिक हो जाती हैं। पांच -सात वर्ष की लड़की अपने पिता-भाई के मनोभाव को समझ जाती हैं। पन्द्रह-वीस वर्ष के लड़के नहीं समझ पाते। समाज में यह धारणा बनी हुई है कि शादी के समय लड़की से लड़कों की उम्र अधिक होनी चाहिए इसलिए अट्ठारह वर्ष की लड़की से विवाह करने के लिए इक्कीस वर्ष के लड़कों को ही कानूनी मान्यता प्राप्त है।
नारी के पास एक ओर शक्ति है, सहनशीलता। इसी सहनशीलता के कारण पुरुष प्रधान समाज की ज्यादतियों को बर्दाश्त करती है, पुरुष उनकी सहनशीलता को नारी की कमजोरी मानने लगता है, जहाँ से मर्दों की शक्ति समाप्त होती है, नारी की शक्ति वहाँ से शुरू होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महिषासुर नामक दैत्य का खौफ पूरे ब्रह्माण्ड में फैला हुआ था। महिषासुर ने अपनी अभय शक्ति से सभी देवताओं को परास्त कर इन्द्रलोक पर अपना प्रभुत्व जमा लिया। तीनों लोकों में उसके भय, आतंक का साम्राज्य था। ऋषि मुनियों सहित सभी देवता अपनी जान बचाने हेतु इधर-उधर भागते फिर रहे थे। अन्त में सभी देवताओं ने माँ भवानी से प्रार्थना की, हे माता! आप दुष्ट महिषासुर से हमारी रक्षा करें। माँ भवानी ने महाशक्ति का रूप धर महिषासुर दैत्य का वध कर तीनों लोकों में आतंक का साम्राज्य समाप्त कर सुख शांति स्थापित की।
पुरुष अपनी सामाजिक, राजनीतिक, व्यापारिक सफतला पर खूब इठलाता है, लेकिन इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता कि हर सफल व्यक्ति के पीछे एक नारी का हाथ होता है। जब एक नारी अपने महत्वपूर्ण योगदान से पुरुष को सफलता के चरम तक पहुँचा सकती है, तो उस महिला की योग्यता को कैसे झुठलाया जा सकता है।
लगभग एक दशक से लगातार परीक्षा परिणामों में लड़कियों ने लड़कों को पछाड़ा हैं तथा राजनीति में भी इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी, प्रतिभा पाटिल, माया देवी, जयललिता, ममता बैनर्जी सरीखी कई राजनेत्रियों ने कई मर्द राजनेताओं को धूल चटाई है। इतना ही नहीं 1857 में देश की आजादी का विगुल बजाने वाली मातृशक्ति महारानी लक्ष्मी बाई ही थीं, जिन्हें समाज ने मर्दानी भी कहा।
एक इंसान ताकतवर कैसे माना जाता है? उसमें यदि शारीरिक ताकत हो या पैसे की ताकत हो, या विद्या बुद्धि का बल हो। आदिकाल से इन शक्तियों पर, इन ताकतों पर महिलाओं (देवियों) का राज रहा है। शक्ति का रूप माँ भवानी, पैसा धन संपदा की देवी माँ लक्ष्मी और विद्या बुद्धि की अधिष्ठस्नत्री माँ सरस्वती हैं। फिर किस ताकत शौर्य के दम पर पुरुष अपने आप को ताकतवर मानता है। पुरुषों को धैर्य और संयम से इस पर विचार करना चाहिए। सच कहूं तो धैर्य और संयम भी स्त्रियों में ही होता है, पुरुष स्वभाव से आक्रमक व उतावले होते हैं।।
महिला अधिकारों का हनन और कानून
सामाजिक तौर पर महिलाओं को त्याग, सहनशीलता व शर्मीलेपन का ताज पहनाया गया है, जिसके भार से दबी महिला कई बार जानकारी होते हुए भी इन कानूनों का उपयोग नहीं कर पातीं तो बहुत केसों में महिलाओं को पता ही नहीं होता कि उनके साथ हो रही घटनाएं हिंसा हैं और इससे बचाव के लिए कोई कानून भी है। आमतौर पर शारीरिक प्रताड़ना यानी मारपीट, जान से मारना आदि को ही हिंसा माना जाता है और इसके लिए रिपोर्ट भी दर्ज कराई जाती है।
इसके लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 498 के तहत ससुराल पक्ष के लोगों द्वारा की गई क्रूरता, जिसके अंर्तगत मारपीट से लेकर कैद में रखना, खाना न देना व दहेज के लिए प्रताड़ित करना आदि आता है, के तहत अपराधियों को 3 वर्ष तक की सजा दी जा सकती है, पर शारीरिक प्रताड़ना की तुलना में महिलाओं के साथ मानसिक प्रताड़ना के केस ज्यादा होते हैं।
मनपसंद कपड़े न पहनने देना, मनपसंद नौकरी या काम न करने देना, अपनी पसंद से खाना न खाने देना, बालिग व्यक्ति को अपनी पसंद से विवाह न करने देना या ताने देना, मनहूस आदि कहना, शक करना, मायके न जाने देना, किसी खास व्यक्ति से मिलने पर रोक लगाना, पढ़ने न देना, काम छोड़ने का दबाव डालना, कहीं आने-जाने पर रोक लगाना आदि मानसिक प्रताड़ना है।
आमतौर पर एक सीमा तक महिलाएं इसे बर्दाश्त करती हैं, क्योंकि परंपरा के नाम पर बचपन से वे यह देखती सहती आती हैं, लेकिन घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 इन स्थितियों में भी महिला की मदद करता है। खास बात यह है कि घरेलू हिंसा अधिनियम में सभी महिलाओं के अधिकार की रक्षा की संभावना है।
इसके तहत विवाहित महिला के साथ-साथ अविवाहित, विधवा, बगैर शादी के साथ रहने वाली महिला, दूसरी पत्नी के तौर पर रहने वाली महिला व 18 वर्ष से कम के लड़की व लड़का सभी को संरक्षण देने का प्रयास किया गया है। इस कानून में घर में रहने का अधिकार, संरक्षण, बच्चों की कस्टडी व भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार महिलाओं को मिलता है, जो किसी और कानून में संभव नहीं है।
आईपीसी की धारा 125 के तहत विवाहित महिलाओं को भरण-पोषण का अधिकार मिलता है, लेकिन बगैर विवाह के या दूसरी पत्नी के तौर पर रहने वाली महिला कआज वह समय है, जब एक तरफ महिलाएं आसमान छू रही हैं, हर क्षेत्र में पुरुषों से कंधा मिलाकर चल रही हैं तो कहीं बहुत आगे भी निकल गई हैं, परंतु यह भी सच है कि महिलाओं व लड़कियों के साथ होने वाली हिंसा भी सीमा से आगे बढ़ चुकी है।
हर व्यक्ति जन्म से ही कुछ अधिकार लेकर आता है चाहे वह जीने का अधिकार हो या विकास के लिए अवसर प्राप्त करने का, परंतु इस पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के साथ लैंगिक आधार पर किए जा रहे भेदभाव की वजह से महिलाएं इन अधिकारों से वंचित रह जाती हैं। इसी विचार के चलते महिलाओं के अधिकारों को सुनिश्चित करने हेतु हमारे संविधान में अलग से कानून बनाए गए हैं या समय-समय पर इनमें संशोधन किया गया है।
अपराध - भा,द,स, की धारा - - सजा
अपहरण, भगाना या औरत को शादी के लिए मजबूर करना- -धारा 366 -10 वर्षपहली पत्नी के जीवित रहते दूसरा विवाह करना- -धारा 494 -7 वर्षपति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता- -धारा 498 ए -3 वर्षबेइज्जती करना, झूठे आरोप लगाना- -धारा 499 -2 वर्षदहेज- -धारा 304 क -आजीवन कारावासदहेज मृत्यु- -धारा 304 ख -आजीवन कारावासआत्महत्या के लिए दबाव बनाना- -धारा 306 -10 वर्षसार्वजनिक स्थान पर अश्लील कार्य एवं अश्लील गीत गाना -धारा 294 -3 माह कैद या जुर्माना या दोनों-महिला की शालीनता भंग करने की मंशा से की गई अश्लील हरकत- -धारा 354 -2 वर्षमहिला के साथ अश्लील हरकत करना या अपशब्द कहना- -धारा 509 -1 वर्षबलात्कार- -धारा 376 -10 वर्ष तक की सजा या उम्रकैद-महिला की सहमति के बगैर गर्भपात कारित करना- -धारा 313 -आजीवन कारावास या 10 वर्ष कैद/ जुर्माना।।। अबला नहीं अव्वल
साधारणतयः यह समझा जाता है कि पुरुष, महिलाओं से शक्तिशाली हैं, लेकिन यह बहुत बड़ा भ्रम है। अब तो वायोलोजिस्टस जीवन वैज्ञानिक भी इस बात पर सहमत है कि स्त्री ही ज्यादा शक्तिशाली है। यह केवल पुरुष का अहंकार है, सदियों से चली आ रही गलतफहमी में जी रहा है पुरुष।
यदि लड़कियाँ, लड़कों से कमजोर हैं, तो सरकार ने शादी के लिए लड़कों की उम्र 21 वर्ष और लड़कियों की उम्र 18 वर्ष क्यों तय की है? शादी के बाद शारीरिक संबंध स्थापित करने के लिए शारीरिक श्रम करना पड़ता है। प्रथम शारीरिक संबंधों के दौरान लड़की को कौमार्य झिल्ली भंग होने पर कष्ट सहना पड़ता है, जबकि पुरुष आनंद का भागी होता है तथा यौन संबंधों के पश्चात पुरुष का केवल वीर्य स्खलन होने पर वह शांत महसूस करता है। जबकि स्त्री को गर्भ धारण की संभवानाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। गर्भ काल व प्रसवकाल की पीड़ा का आभास तो मात्र माताएँ ही कर सकती हैं। प्रसव पीड़ा का असहनीय दर्द को कमजोर सहन नहीं कर सकता।
यदि पुरुष, स्त्री से शक्तिशाली होता तो शादी के लिए स्त्री की उम्र 21 वर्ष और पुरुष की उम्र 18 वर्ष तय होती। प्रसव पीड़ा को सहर्ष सहन कर अपनी औलाद के भोजन का इंतजाम वह अपने खून व भावनाओं से निर्मित दूध से करती है। सारा जग जानता है कि शिशु के लिए माँ का दूध ही सर्वश्रेष्ठ आहार है। इतना सबकुछ एक कमजोर नहीं कर सकता।
एक वैज्ञानिक अध्यन के अनुसार शारीरिक, मानसिक, बौधिक और भावनात्मक रूप से लड़कों और लड़कियों में पाँच वर्ष का फासला होता है। लड़कियाँ अपने हमउम्र लड़कों से पाँच वर्ष पूर्व परिपक्व हो जाती हैं। व्यावहारिक जीवन में भी देखा जाता है कि छोटी उम्र में ही लड़कियाँ अधिक व्यावहारिक हो जाती हैं। पांच -सात वर्ष की लड़की अपने पिता-भाई के मनोभाव को समझ जाती हैं। पन्द्रह-वीस वर्ष के लड़के नहीं समझ पाते। समाज में यह धारणा बनी हुई है कि शादी के समय लड़की से लड़कों की उम्र अधिक होनी चाहिए इसलिए अट्ठारह वर्ष की लड़की से विवाह करने के लिए इक्कीस वर्ष के लड़कों को ही कानूनी मान्यता प्राप्त है।
नारी के पास एक ओर शक्ति है, सहनशीलता। इसी सहनशीलता के कारण पुरुष प्रधान समाज की ज्यादतियों को बर्दाश्त करती है, पुरुष उनकी सहनशीलता को नारी की कमजोरी मानने लगता है, जहाँ से मर्दों की शक्ति समाप्त होती है, नारी की शक्ति वहाँ से शुरू होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महिषासुर नामक दैत्य का खौफ पूरे ब्रह्माण्ड में फैला हुआ था। महिषासुर ने अपनी अभय शक्ति से सभी देवताओं को परास्त कर इन्द्रलोक पर अपना प्रभुत्व जमा लिया। तीनों लोकों में उसके भय, आतंक का साम्राज्य था। ऋषि मुनियों सहित सभी देवता अपनी जान बचाने हेतु इधर-उधर भागते फिर रहे थे। अन्त में सभी देवताओं ने माँ भवानी से प्रार्थना की, हे माता! आप दुष्ट महिषासुर से हमारी रक्षा करें। माँ भवानी ने महाशक्ति का रूप धर महिषासुर दैत्य का वध कर तीनों लोकों में आतंक का साम्राज्य समाप्त कर सुख शांति स्थापित की।
पुरुष अपनी सामाजिक, राजनीतिक, व्यापारिक सफतला पर खूब इठलाता है, लेकिन इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता कि हर सफल व्यक्ति के पीछे एक नारी का हाथ होता है। जब एक नारी अपने महत्वपूर्ण योगदान से पुरुष को सफलता के चरम तक पहुँचा सकती है, तो उस महिला की योग्यता को कैसे झुठलाया जा सकता है।
लगभग एक दशक से लगातार परीक्षा परिणामों में लड़कियों ने लड़कों को पछाड़ा हैं तथा राजनीति में भी इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी, प्रतिभा पाटिल, माया देवी, जयललिता, ममता बैनर्जी सरीखी कई राजनेत्रियों ने कई मर्द राजनेताओं को धूल चटाई है। इतना ही नहीं 1857 में देश की आजादी का विगुल बजाने वाली मातृशक्ति महारानी लक्ष्मी बाई ही थीं, जिन्हें समाज ने मर्दानी भी कहा।
एक इंसान ताकतवर कैसे माना जाता है? उसमें यदि शारीरिक ताकत हो या पैसे की ताकत हो, या विद्या बुद्धि का बल हो। आदिकाल से इन शक्तियों पर, इन ताकतों पर महिलाओं (देवियों) का राज रहा है। शक्ति का रूप माँ भवानी, पैसा धन संपदा की देवी माँ लक्ष्मी और विद्या बुद्धि की अधिष्ठस्नत्री माँ सरस्वती हैं। फिर किस ताकत शौर्य के दम पर पुरुष अपने आप को ताकतवर मानता है। पुरुषों को धैर्य और संयम से इस पर विचार करना चाहिए। सच कहूं तो धैर्य और संयम भी स्त्रियों में ही होता है, पुरुष स्वभाव से आक्रमक व उतावले होते हैं।।
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