अमरीकी : सेना ने खुद को अल्पसंख्यक धर्मों और संस्कृतियों के संदर्भ में अधिक समावेशी बनाते हुए हाल ही में एक नया नियमन जारी किया है।इस नियमन के जरिए सेना ने पगड़ी,हिजाब पहनने वाले या दाढ़ी रखने वाले लोगों को सेना में भर्ती होने की मंजूरी दे दी है।सैन्य सचिव एरिक फैनिंग की आेर से जारी किए गए ये नए नियम ब्रिगेड स्तर पर धार्मिक पहचानों को समाहित करने की मंजूरी देते हैं।इससे पहले यह मंजूरी सचिव स्तर तक के लिए थी।इस मंजूरी के बाद हुआ बदलाव यह सुनिश्चित करेगा कि धार्मिक पहचान का समावेश स्थायी हो और अमरीकी सेना में अधिकतर पदों पर लागू हो।कांग्रेस सदस्य जो क्राउले ने अमरीकी सैन्य सचिव की आेर से जारी निर्देश का स्वागत करते हुए कहा,‘‘यह न सिर्फ सिख अमरीकी समुदाय के लिए,बल्कि हमारे देश की सेना के लिए एक बड़ी प्रगति है।सिख-अमरीकी इस देश से प्यार करते हैं और हमारे देश में सेवा का उचित अवसर चाहते हैं।आज की घोषणा एेसा करने में मददगार साबित होगी।’’क्राउले ने कहा,‘‘हम एक मजबूत सेना से लैस मजबूत देश हैं क्योंकि हम धार्मिक एवं निजी स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं।’सिख-अमरीकियों और अमरीकी सांसदों ने इस कदम का स्वागत किया है।ये लोग पिछले कई साल से इस संदर्भ में चल रहे राष्ट्रीय अभियान के अगुवा रहे हैं।अमरीकी सेना की आेर से 3 जनवरी को घोषित इन बदलावों से पहले सिख अमरीकियों और अन्य को अपने धर्म से जुड़ी चीजों को अपने साथ रखते हुए सेना में सेवा देने की अनुमति सीमित थी।ये समावेश स्थायी नहीं थे और हर नियत कार्य के बाद इसकी एक तरह से समीक्षा की जाती थी।सेवाकर्मियों को तब तक के लिए अपने धर्म से संबंधित पहचानें हटानी भी पड़ती थीं,जब तक उनका इन पहचानों के साथ काम करने का अनुरोध स्वीकार नहीं होता था।एेसे एक अभियान के अगुवा रहे सिख-अमरीकी गठबंधन ने इस कदम का स्वागत किया लेकिन साथ ही यह भी कहा कि यह उनकी आेर से की जा रही मांग की तुलना में कम है।इस संगठन की विधि निदेशक हरसिमरन कौर ने कहा,‘‘हम अब भी नीति में एक स्थायी बदलाव चाहते हैं, जो सभी धार्मिक अल्पसंख्यकों को स्वतंत्र तरीके से सेवा देने की अनुमति दे।हम इस नई नीति के जरिए हमारे देश के सबसे बड़े नियोक्ता की आेर से धार्मिक सहिष्णुता एवं विविधता की दिशा में दिखाई गई इस प्रगति से खुश हैं।
क्या मर्द और क्या औरत, सभी की उत्सुकता इस बात को लेकर होती है कि पहली बार सेक्स कैसे हुआ और इसकी अनुभूति कैसी रही। ...हालांकि इस मामले में महिलाओं को लेकर उत्सुकता ज्यादा होती है क्योंकि उनके साथ 'कौमार्य' जैसी विशेषता जुड़ी होती है। दक्षिण एशिया के देशों में तो इसे बहुत अहमियत दी जाती है। इस मामले में पश्चिम के देश बहुत उदार हैं। वहां न सिर्फ पुरुष बल्कि महिलाओं के लिए भी कौमार्य अधिक मायने नहीं रखता। महिला ने कहा- मैं चाहती थी कि एक बार यह भी करके देख लिया जाए और जब तक मैंने सेक्स नहीं किया था तब तो सब कुछ ठीक था। पहली बार सेक्स करते समय मैं बस इतना ही सोच सकी- 'हे भगवान, कितनी खुशकिस्मती की बात है कि मुझे फिर कभी ऐसा नहीं करना पड़ेगा।' उनका यह भी कहना था कि इसमें कोई भी तकलीफ नहीं हुई, लेकिन इसमें कुछ अच्छा भी नहीं था। पहली बार कुछ ठीक नहीं लगा, लेकिन वर्जीनिया की एक महिला का कहन...
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