हिंदी व क्षेत्रीय भाषाओं में हो न्यायालय का कामकाज – संसदीय समिति
देहली : उच्च न्यायापालिका में अंग्रेजी का वर्चस्व खत्म करने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल हुई है। कानून एवं कार्मिक मामलों की संसदीय समिति ने देश के सभी २४ उच्च न्यायालयों में हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं में भी कामकाज किए जाने की सिफारिश की है। अभी सर्वोच्च और उच्च न्यायालय की सारी कार्यवाही केवल अंग्रेजी में ही होती है। निर्णय भी अंग्रेजी में ही सुनाया जाता है।
संसदीय समिति का कहना है कि इस बारे में निर्णय लेने के लिए संविधान ने केंद्र सरकार को पर्याप्त अधिकार दे रखा है। इसके लिए न्यायपालिका से सलाह लेने की कोई आवश्यकता नहीं है। वैसे कोलकाता, चैन्नर्इ, गुजरात, छत्तीसगढ और कर्नाटक उच्च न्यायालय में बांग्ला, तमिल, गुजराती, हिंदी और कन्नड़ में कामकाज शुरू करने को लेकर केंद्र सरकार को प्रस्ताव मिल चुके हैं। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने ११ अक्टूबर, २०१२ को इन सभी प्रस्तावों को खारिज कर दिया था। उसने १९९७ और १९९९ के अपने निर्णयों का हवाला देते हुए न्यायालयीन कामकाज में अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषाओं के उपयोग की मांग को ठुकरा दिया।
इस महीने संसद के पटल पर पेश अपनी रिपोर्ट में समिति का कहना है, ‘संबंधित राज्य सरकार अगर मांग करे तो उच्च न्यायालय में अंग्रेजी के अलावा अन्य अनुसूचित भाषाओं में कामकाज करने की अनुमती दी जा सकती है।’ संविधान के अनुच्छेद ३४८ का हवाला देते हुए उसने तर्क दिया, ‘उच्च न्यायालय में अनुसूचित भाषाओं के प्रयोग को लेकर संवैधानिक प्रावधान बेहद स्पष्ट हैं लिहाजा न्यायपालिका से विचार-विमर्श करने की आवश्यकता नहीं है !’
किसी उच्च न्यायालय की भाषा में परिवर्तन को लेकर न्यायपालिका से सलाह लेने की परंपरा २१ मई, १९६५ से शुरू हुई, जब केंद्रीय कैबिनेट ने इस बारे में निर्णय लिया। हालांकि मोदी सरकार इस पर पुनर्विचार कर रही है। इसको लेकर जुलाई, २०१६ में एक कैबिनेट नोट मसौदा भी तैयार किया गया। समिति ने कहा है कि सरकार इस मसौदे पर जल्द निर्णय ले ताकि उच्च न्यायालय में हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं का इस्तेमाल शुरू हो सके।
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