नसरुद्दीन ने तीसरी शादी की। नई दुल्हन के हाथ का बना खाना जब पहले दिन खाया तो सारा मुंह, जीभ, ओंठ, गाल—गला और यहां तक कि दांत भी कड़वे हो उठे। किसी तरह उस सब्जी के कौर को वह निगल गया, सोचा कोई बात नहीं। दूसरा कौर दाल का लिया तो मुंह भनभना गया, मिर्च ही मिर्च थी, दाल का तो नामोनिशान नहीं। पेट में जलन होने लगी और आंखो में आंसू आने लगे। वह अपनी इस नई बीवी को नाराज करना नहीं चाहता था, इसलिए बोला, खाना तो बहुत अदभुत बना है डार्लिंग। नई दुल्हन ने पूछा फिर आंखों में ये आंसू कैसे? कुछ न पूछो प्रिये—मुल्ला ने बात सम्हाल ली—ये तो खुशी के आंसू हैं। अच्छा तो और सब्जी दूं? या थोड़ी दाल और ले लो। नहीं डार्लिग— नसरुद्दीन ने रूमाल से आंखें पोंछते हुए कहा— मैं दिल का मरीज हूं। इतनी ज्यादा खुशी एक साथ बरदाश्त न कर पाऊंगा! विवाह कुछ न कुछ प्रेम में अड़चनें डाल देता है, क्योंकि विवाह के साथ आती हैं — अपेक्षाएं। विवाह के साथ आता है— आग्रह। विवाह के साथ आता है— एक—दूसरे पर दावेदारी का रुख। विवाह के साथ आती है— राजनीति, कि कौन मालिक, कौन प्रमुख? पुरुष समझता है कि वह खास है, स्त्री में क्या रखा है! स्त्री तो नरक का द्वार है! और पुरुष समझता है कि वह बलशाली है, इसलिए स्त्री को दबाने की हर चेष्टा करता है, मालकियत जमाने की पूरी कोशिश करता है। उसी मालकियत जमाने में प्रेम मर जाता है। प्रेम तो फूल जैसी नाजुक चीज है, इस पर जोर से मुट्ठी बाधोगे, मर जाएगा। और स्त्री भी पीछे नहीं है कुछ पुरुष से। वे उसकी अलग तरकीबें हैं। उसके अपने सूक्ष्म रास्ते हैं पुरुष को झुकाने के। पुरुष के रास्ते थोड़े फूहड़ हैं, थोड़े स्थूल हैं, साफ दिखाई पड़ते हैं। स्त्री के रास्ते सूक्ष्म हैं, स्थूल नहीं हैं, दिखाई भी नहीं पड़ते। और इसीलिए अंततः स्त्रियां जीत जाती हैं और पुरुष हार जाते हैं। देर लगती है स्त्री को जीतने में, लेकिन वह जीत जाती है। जीत जाती है इसलिए कि उसके सूक्ष्म रास्तों के सामने पुरुष धीरे— धीरे हारा हो जाता है, उसकी समझ में नहीं आता कि मैं क्या करूं, क्या न करूं! पुरुष को गुस्सा आए तो स्त्री को मारता है, स्त्री को गुस्सा आए तो वह खुद का सिर दीवाल से पीट लेती है। अब जब स्त्री दीवाल से सिर पीट ले तो पुरुष को पछतावा होता है कि यह मैंने झंझट क्यों खड़ी की! नाहक उसको इतना कष्ट दिया! पुरुष को गुस्सा आए तो स्त्री को रोने को मजबूर कर दे, स्त्री को गुस्सा आए तो खुद रो लेती है। ये सूक्ष्म प्रकार हैं कब्जा करने के। धीरे— धीरे यह संघर्ष दोनों को नष्ट करता है। दोनों जिंदगी भर इसी कोशिश में लगे रहते हैं। जिंदगी और बड़े कामों के लिए है। कुछ और गीत गाने हैं या नहीं? कुछ और संगीत छेड़ना है या नहीं? कोई और महोत्सव खोजना है या नहीं? या बस इसी कलह में गुजार देना है? एक स्त्री और एक पुरुष लड़ते—लड़ते जिंदगी गुजार देते हैं। नब्बे प्रतिशत जीवन उनका इसी कलह में बीतता है। और परिणाम क्या है? हाथ में क्या लगता है? कभी मुश्किल से ही कोई जोड़ा दिखाई पड़ता है जो इस मूढ़ता से बचता हो। बहुत मुश्किल से। मैं हजारों घरों में ठहरा हूं हजारों परिवारों का मुझे अनुभव है। कभी हजार में एक जोड़ा ऐसा दिखाई पड़ता है, जिसमें प्रेम है; नहीं तो बस कलह है, संघर्ष है, उपद्रव है। मन ही पूजा मन ही धूप🌹ओशो
क्या मर्द और क्या औरत, सभी की उत्सुकता इस बात को लेकर होती है कि पहली बार सेक्स कैसे हुआ और इसकी अनुभूति कैसी रही। ...हालांकि इस मामले में महिलाओं को लेकर उत्सुकता ज्यादा होती है क्योंकि उनके साथ 'कौमार्य' जैसी विशेषता जुड़ी होती है। दक्षिण एशिया के देशों में तो इसे बहुत अहमियत दी जाती है। इस मामले में पश्चिम के देश बहुत उदार हैं। वहां न सिर्फ पुरुष बल्कि महिलाओं के लिए भी कौमार्य अधिक मायने नहीं रखता। महिला ने कहा- मैं चाहती थी कि एक बार यह भी करके देख लिया जाए और जब तक मैंने सेक्स नहीं किया था तब तो सब कुछ ठीक था। पहली बार सेक्स करते समय मैं बस इतना ही सोच सकी- 'हे भगवान, कितनी खुशकिस्मती की बात है कि मुझे फिर कभी ऐसा नहीं करना पड़ेगा।' उनका यह भी कहना था कि इसमें कोई भी तकलीफ नहीं हुई, लेकिन इसमें कुछ अच्छा भी नहीं था। पहली बार कुछ ठीक नहीं लगा, लेकिन वर्जीनिया की एक महिला का कहन...
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