आखिरी प्रश्न: भगवान!
आप दलबदल करने वाले राजनीतिज्ञों के संबंध में क्या कहते हैं?
सरलादेवी!
मुझे पता है कि तुम्हारे पति भी दलबदलू हैं, आयाराम गयाराम हैं। इसीलिए प्रश्न तुम्हारे मन में उठा होगा। वे तो यहां आते नहीं। मैं क्या कहता हूं, उनके कानों तक पहुंचेगा भी नहीं। राजनीतिज्ञ करीब-करीब बहरे होते हैं, अंधे होते हैं। अंधे और बहरे न हों, तो राजनीति में क्यों हों? मगर तुम चाहो तो कुछ कर सकती हो।
यह कविता मैं पढ़ रहा था। इससे कुछ सार तुम निकाल सको तो अच्छा है।
एक नेता दलबदल कर घर लौटे,
उन्हें पत्नी का पत्र मिला,
जो कई महीनों से मैके गई हुई थी,
लिखा था:
रम्मो के चाचा, तुम्हारे साथ रहते-रहते
बोर हो गए,
अब हमने राधेलालजी से
दाम्पत्य समझौता कर लिया है।
यह समझौता समान विचारों के
आधार पर किया है।
कहा-सुना माफ करना,
हमारे पति-बदल कार्य को उसी प्रकार
लाइटली लेना,
जैसे हम तुम्हारे दलबदल कार्य को लेती रही हैं।
भविष्य में दल बदलो तो सूचित करना,
हम भी पति-बदल प्रक्रिया से आपको अवगत कराएंगे।
तिजोरी की चाबी बगल वाले कमरे के आले में रक्खी है,
सेहत का खयाल रखना, मंत्री बनते ही तार देना।
हम हनीमून मनाने शिमला जा रहे हैं।
नेता जी ने पत्र पढ़ा।
माथा ठनका,
सोचने लगे,
दलबदल का एक दिन ऐसा सुफल मिलेगा,
कभी नहीं सोचा था।
उन्होंने उत्तर भेजा--
प्राणप्यारी जी, तुमसे ऐसी आशा नहीं थी,
दलबदल को इतना सीरियसली
नहीं लेना था।
तुम अब घर लौट आओ,
मैं भी पुराने दल में वापस जा रहा हूं।
पत्नी ने चार पंक्तियों का उत्तर भेजा--
पल-पल में दलबदल करते रहे हो,
एक दल में कुछ समय रह कर सूचित करना,
सहानुभूतिपूर्ण विचार करूंगी।
आम का अचार घड़े में रक्खा है,
उसे कभी-कभी पलटते रहना।
हम तो इस चेंज से काफी खुश हैं,
बड़े मौज से जिंदगी कट रही है।
सेहत का खयाल रखना।
आपकी भूतपूर्व पत्नी--
अब मिसेज राधेलाल।
कुछ ऐसा करो तो शायद पति को कुछ अकल आए तो आए सरलादेवी, अन्यथा आने वाली नहीं है। राजनीतिज्ञ की कोई आत्मा होती है? कोई निष्ठा होती है? ये तो चलते-फिरते मुर्दे हैं। इनको तो जहां पद मिले, वहीं पूंछ हिलाने लगते हैं। इनका कोई मूल्य नहीं है। इनकी चिंता भी मत लो, ये चिंता के योग्य भी नहीं हैं। तुम अपनी फिक्र करो। इनकी उलझन में पड़े-पड़े अपना जीवन नष्ट न करो। इनको करने दो दलबदल, तुम अपना जीवन बदलो।
मत समझ लेना कि मैं कह रहा हूं मिसेज राधेलाल हो जाओ। मैं कह रहा हूं--जीवन बदलो। मैं कह रहा हूं--मन से अमन की तरफ चलो; विचार से ध्यान की तरफ चलो; समस्याओं से समाधि की तरफ। बहुत दिन जी लिया इस तरह, अब इस जीवन के ऊपर उठो, पार, अतिक्रमण करो।
और परमात्मा दूर नहीं है, बहुत पास है। हम एक कदम उठाएं तो परमात्मा हजार कदम हमारी तरफ उठाता है।
आज इतना ही।
पिया को खोजन मैं चली-(प्रश्नोंत्तर)-प्रवचन-09
आप दलबदल करने वाले राजनीतिज्ञों के संबंध में क्या कहते हैं?
सरलादेवी!
मुझे पता है कि तुम्हारे पति भी दलबदलू हैं, आयाराम गयाराम हैं। इसीलिए प्रश्न तुम्हारे मन में उठा होगा। वे तो यहां आते नहीं। मैं क्या कहता हूं, उनके कानों तक पहुंचेगा भी नहीं। राजनीतिज्ञ करीब-करीब बहरे होते हैं, अंधे होते हैं। अंधे और बहरे न हों, तो राजनीति में क्यों हों? मगर तुम चाहो तो कुछ कर सकती हो।
यह कविता मैं पढ़ रहा था। इससे कुछ सार तुम निकाल सको तो अच्छा है।
एक नेता दलबदल कर घर लौटे,
उन्हें पत्नी का पत्र मिला,
जो कई महीनों से मैके गई हुई थी,
लिखा था:
रम्मो के चाचा, तुम्हारे साथ रहते-रहते
बोर हो गए,
अब हमने राधेलालजी से
दाम्पत्य समझौता कर लिया है।
यह समझौता समान विचारों के
आधार पर किया है।
कहा-सुना माफ करना,
हमारे पति-बदल कार्य को उसी प्रकार
लाइटली लेना,
जैसे हम तुम्हारे दलबदल कार्य को लेती रही हैं।
भविष्य में दल बदलो तो सूचित करना,
हम भी पति-बदल प्रक्रिया से आपको अवगत कराएंगे।
तिजोरी की चाबी बगल वाले कमरे के आले में रक्खी है,
सेहत का खयाल रखना, मंत्री बनते ही तार देना।
हम हनीमून मनाने शिमला जा रहे हैं।
नेता जी ने पत्र पढ़ा।
माथा ठनका,
सोचने लगे,
दलबदल का एक दिन ऐसा सुफल मिलेगा,
कभी नहीं सोचा था।
उन्होंने उत्तर भेजा--
प्राणप्यारी जी, तुमसे ऐसी आशा नहीं थी,
दलबदल को इतना सीरियसली
नहीं लेना था।
तुम अब घर लौट आओ,
मैं भी पुराने दल में वापस जा रहा हूं।
पत्नी ने चार पंक्तियों का उत्तर भेजा--
पल-पल में दलबदल करते रहे हो,
एक दल में कुछ समय रह कर सूचित करना,
सहानुभूतिपूर्ण विचार करूंगी।
आम का अचार घड़े में रक्खा है,
उसे कभी-कभी पलटते रहना।
हम तो इस चेंज से काफी खुश हैं,
बड़े मौज से जिंदगी कट रही है।
सेहत का खयाल रखना।
आपकी भूतपूर्व पत्नी--
अब मिसेज राधेलाल।
कुछ ऐसा करो तो शायद पति को कुछ अकल आए तो आए सरलादेवी, अन्यथा आने वाली नहीं है। राजनीतिज्ञ की कोई आत्मा होती है? कोई निष्ठा होती है? ये तो चलते-फिरते मुर्दे हैं। इनको तो जहां पद मिले, वहीं पूंछ हिलाने लगते हैं। इनका कोई मूल्य नहीं है। इनकी चिंता भी मत लो, ये चिंता के योग्य भी नहीं हैं। तुम अपनी फिक्र करो। इनकी उलझन में पड़े-पड़े अपना जीवन नष्ट न करो। इनको करने दो दलबदल, तुम अपना जीवन बदलो।
मत समझ लेना कि मैं कह रहा हूं मिसेज राधेलाल हो जाओ। मैं कह रहा हूं--जीवन बदलो। मैं कह रहा हूं--मन से अमन की तरफ चलो; विचार से ध्यान की तरफ चलो; समस्याओं से समाधि की तरफ। बहुत दिन जी लिया इस तरह, अब इस जीवन के ऊपर उठो, पार, अतिक्रमण करो।
और परमात्मा दूर नहीं है, बहुत पास है। हम एक कदम उठाएं तो परमात्मा हजार कदम हमारी तरफ उठाता है।
आज इतना ही।
पिया को खोजन मैं चली-(प्रश्नोंत्तर)-प्रवचन-09
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