महबूबाजी थोडा पॉझिटिव्ह सोच रखे आपके बाकी लोगों से आप अलग सोच रखे जो ज़रूरी बाते जो देशहित की है उसे खुलेआम समर्थन दे उसमे ही देश की भलाई है वंदे मातरम्
कश्मीर में धारा 370 को लेकर मोदी सरकार के साथ सुप्रीम कोर्ट भी आया एक्शन में, महबूबा के उड़े होश
कश्मीर से धारा-370 का अंत अब निकट आ चुका है !
नई दिल्ली :- सरदार वल्लभ भाई पटेल की बात ना मानते हुए भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने जो गलती कश्मीर में की थी, अब उसके सही होने का वक़्त आ गया है.
सर्जिकल स्ट्राइक, नोटबंदी और जीएसटी जैसे बड़े-बड़े फैसले लेकर चौंकाने वाले पीएम मोदी के अगले मिशन कश्मीर पर काम शुरू हो गया है.
बताया जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर को विशेषाधिकार देने वाली धारा-370 पर सुप्रीम कोर्ट में बहस शुरू हो गई है.
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी करके जवाब मांगा है कि धारा-370 को कैसे और क्यों खत्म किया जा सकता है.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि एक एनजीओ ने धारा 370 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी.
एनजीओ ने अपनी याचिका में कहा है कि यह अनुच्छेद कभी संसद में पेश ही नहीं हुआ बल्कि इसे तो राष्ट्रपति के आदेश पर लागू किया गया था.
इस प्रावधान को 1954 में तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने अनुच्छेद 370 में प्रदत्त राष्ट्रपति के अधिकारों का उपयोग करते हुए ‘संविधान (जम्मू एवं कश्मीर के लिए आवेदन) आदेश 1954’ को लागू किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने धारा-370 को लेकर आयी इस याचिका पर व्यापक बहस के लिए इसे तीन न्यायाधीशों की पीठ को हस्तांतरित कर दिया है.
याचिकाकर्ता के मुताबिक संविधान के इन प्रावधानों के तहत कोई महिला जो जम्मू-कश्मीर की स्थाई निवासी है,यदि वो किसी गैर कश्मीरी शख्स से शादी करती है, तो उसकी कश्मीरी नागरिकता रद्द हो जाती है,
साथ ही वो राज्य में अपनी सम्पति और रोजगार के तमाम हक़ भी खो देती है. यहाँ तक की उसके बच्चों को भी कश्मीर का नागरिक नहीं माना जाता इसके अलावा संविधान के इन प्रावधानों के तहत कोई भी गैर कश्मीरी कश्मीर में अचल संपत्ति नहीं खरीद सकते और ना ही वहां वोट डाल सकते हैं.
संविधान के आर्टिकल35 A के तहत जम्मू-कश्मीर में रह रहे पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थी, बाल्मीकी, गोरखा सहित लाखों लोग 60 साल से अधिक वक़्त बीत जाने के बावजूद ना तो राज्य में सरकारी नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं और ना ही इनके बच्चे यहां व्यावसायिक शिक्षा में दाखिला ले सकते हैं.
इसके अलावा जम्मू-कश्मीर का गैर स्थायी नागरिक (नॉन पीआरसी) लोकसभा में तो मतदान कर सकता है, लेकिन स्थानीय निकाय चुनाव में उसे मतदान का अधिकार तक नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल को सुनवाई की अगली तारीख यानि 14 अगस्त तक इस मुद्दे पर केंद्र सरकार का रुख साफ करने का आदेश दिया है.
वहीँ जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती कश्मीर के विशेषाधिकार पर ख़तरा देखकर बुरी तरह बौखला गयी हैं.
दरअसल विशेषाधिकार के कारण ही इन टुटपुँजिये नेताओं की राजनीतिक दुकाने चल रही हैं,
इसके चलते बौखलाहट खुलकर सामने आने लगी है. महबूबा ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 35(ए) के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ को स्वीकार नहीं किया जाएगा.
उन्होंने यहाँ तक कह दिया कि यदि अनुच्छेद को खत्म किया जाता है तो कोई भी कश्मीर में भारत के राष्ट्रध्वज तिरंगे के शव को भी हाथ नहीं लगाएगा.
सूत्रों के मुताबिक़ मोदी सरकार का रुख इस मामले में स्पष्ट है कि धारा-370 देश पर लगा एक बदनुमा दाग है,
जिसे हर कीमत पर मिटा दिया जाएगा. बीजेपी के सूत्रों से पता चला है कि सरकार की पूरी कोशिश है कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले ही इसे लेकर देशभर में व्यापक बहस छेड़ दी जाए और नोटबंदी व् जीएसटी की तरह इसे लेकर भी फैसला सुना दिया जाए.
देश के तिरंगे का अपमान करने वाली महबूबा की तड़प से स्पष्ट है कि
कश्मीर में धारा 370 को लेकर मोदी सरकार के साथ सुप्रीम कोर्ट भी आया एक्शन में, महबूबा के उड़े होश
कश्मीर से धारा-370 का अंत अब निकट आ चुका है !
नई दिल्ली :- सरदार वल्लभ भाई पटेल की बात ना मानते हुए भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने जो गलती कश्मीर में की थी, अब उसके सही होने का वक़्त आ गया है.
सर्जिकल स्ट्राइक, नोटबंदी और जीएसटी जैसे बड़े-बड़े फैसले लेकर चौंकाने वाले पीएम मोदी के अगले मिशन कश्मीर पर काम शुरू हो गया है.
बताया जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर को विशेषाधिकार देने वाली धारा-370 पर सुप्रीम कोर्ट में बहस शुरू हो गई है.
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी करके जवाब मांगा है कि धारा-370 को कैसे और क्यों खत्म किया जा सकता है.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि एक एनजीओ ने धारा 370 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी.
एनजीओ ने अपनी याचिका में कहा है कि यह अनुच्छेद कभी संसद में पेश ही नहीं हुआ बल्कि इसे तो राष्ट्रपति के आदेश पर लागू किया गया था.
इस प्रावधान को 1954 में तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने अनुच्छेद 370 में प्रदत्त राष्ट्रपति के अधिकारों का उपयोग करते हुए ‘संविधान (जम्मू एवं कश्मीर के लिए आवेदन) आदेश 1954’ को लागू किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने धारा-370 को लेकर आयी इस याचिका पर व्यापक बहस के लिए इसे तीन न्यायाधीशों की पीठ को हस्तांतरित कर दिया है.
याचिकाकर्ता के मुताबिक संविधान के इन प्रावधानों के तहत कोई महिला जो जम्मू-कश्मीर की स्थाई निवासी है,यदि वो किसी गैर कश्मीरी शख्स से शादी करती है, तो उसकी कश्मीरी नागरिकता रद्द हो जाती है,
साथ ही वो राज्य में अपनी सम्पति और रोजगार के तमाम हक़ भी खो देती है. यहाँ तक की उसके बच्चों को भी कश्मीर का नागरिक नहीं माना जाता इसके अलावा संविधान के इन प्रावधानों के तहत कोई भी गैर कश्मीरी कश्मीर में अचल संपत्ति नहीं खरीद सकते और ना ही वहां वोट डाल सकते हैं.
संविधान के आर्टिकल35 A के तहत जम्मू-कश्मीर में रह रहे पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थी, बाल्मीकी, गोरखा सहित लाखों लोग 60 साल से अधिक वक़्त बीत जाने के बावजूद ना तो राज्य में सरकारी नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं और ना ही इनके बच्चे यहां व्यावसायिक शिक्षा में दाखिला ले सकते हैं.
इसके अलावा जम्मू-कश्मीर का गैर स्थायी नागरिक (नॉन पीआरसी) लोकसभा में तो मतदान कर सकता है, लेकिन स्थानीय निकाय चुनाव में उसे मतदान का अधिकार तक नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल को सुनवाई की अगली तारीख यानि 14 अगस्त तक इस मुद्दे पर केंद्र सरकार का रुख साफ करने का आदेश दिया है.
वहीँ जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती कश्मीर के विशेषाधिकार पर ख़तरा देखकर बुरी तरह बौखला गयी हैं.
दरअसल विशेषाधिकार के कारण ही इन टुटपुँजिये नेताओं की राजनीतिक दुकाने चल रही हैं,
इसके चलते बौखलाहट खुलकर सामने आने लगी है. महबूबा ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 35(ए) के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ को स्वीकार नहीं किया जाएगा.
उन्होंने यहाँ तक कह दिया कि यदि अनुच्छेद को खत्म किया जाता है तो कोई भी कश्मीर में भारत के राष्ट्रध्वज तिरंगे के शव को भी हाथ नहीं लगाएगा.
सूत्रों के मुताबिक़ मोदी सरकार का रुख इस मामले में स्पष्ट है कि धारा-370 देश पर लगा एक बदनुमा दाग है,
जिसे हर कीमत पर मिटा दिया जाएगा. बीजेपी के सूत्रों से पता चला है कि सरकार की पूरी कोशिश है कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले ही इसे लेकर देशभर में व्यापक बहस छेड़ दी जाए और नोटबंदी व् जीएसटी की तरह इसे लेकर भी फैसला सुना दिया जाए.
देश के तिरंगे का अपमान करने वाली महबूबा की तड़प से स्पष्ट है कि
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