किसी ने मजाक में ही पूछा कि ईश्वर मर कैसे गया?
तो उस पागल आदमी ने कहा, यह भी तुम्हें पता नहीं है? तुम्हीं ने उसे मार डाला है नीत्शे ने एक बहुत अदभुत बोधकथा लिखी है। एक पागल आदमी पहाड़ों से उतरा और बीच बाजार में आकर हाथ में जलती हुई कंदील लिए भर दोपहर कुछ खोजने लगा, दौड़ने लगा यहां-वहां। ढली हुई गाड़ियों के नीचे झांका, वृक्षों के पीछे देखा, लोगों के आस-पास झांका, जहां भीड़ थी बीच में घुस गया। लोगों ने पूछा, क्या खोज रहे हो? क्या खो गया? और भर दोपहरी में लालटेन!
वह आदमी पागल मालूम होता था। और उस पागल ने कहा कि मैं ईश्वर को खोज रहा हूं।
लोग हंसने लगे। उन्होंने कहा, बहुत ईश्वर को खोजने वाले देखे, यह भी तुमने खूब ढंग निकाला! किस ईश्वर को खोज रहे हो? क्या ईश्वर खो गया है? क्या ईश्वर कोई बच्चा है, जो मेले में अपने मां-बाप से बिछुड़ गया? किस ईश्वर की बातें कर रहे हो? उसकी पहचान क्या?
और उस पागल आदमी ने अपनी लालटेन जमीन पर पटक दी और उसने कहा, मालूम होता है तुम्हें अब तक खबर नहीं मिली। ईश्वर मर चुका है! मैं तुम्हें उसकी खबर देने आया हूं।
किसी ने मजाक में ही पूछा कि ईश्वर मर कैसे गया?
तो उस पागल आदमी ने कहा, यह भी तुम्हें पता नहीं है? तुम्हीं ने उसे मार डाला है और तुम्हें अभी तक उसकी खबर नहीं! शायद खबर आने में देर लगेगी--दूर की खबर है, आते-आते समय लगेगा। शायद मैं अपने समय के पहले आ गया हूं।
और तब भीड़ में से किसी ने पूछा, हमने उसे क्यों मार डाला?
तो उस पागल आदमी ने कहा, उसे तुमने इसलिए मार डाला कि वह तुम्हें सदा देखता था। और उसकी आंखें तुम पर गड़ी रहती थीं। और तुम बेचैन होते गए। और तुम अपने को उससे छिपा न पाते थे। वह तुम्हारा साक्षी था, गवाह था। तुम गवाह को बर्दाश्त न कर सके, तुम उस शाश्वत साक्षी को बर्दाश्त न कर सके, इसलिए तुमने उसकी हत्या कर दी।
यह बात नीत्शे ने बड़ी अदभुत कही--कि आदमी ने ईश्वर की हत्या कर दी है, क्योंकि ईश्वर आदमी का गवाह है। उसकी आंखें सदा तुम पर गड़ी हैं। अच्छा नहीं लगता कि कोई आंखें सदा तुम पर गड़ाए रहे। मगर हजार आंखें हैं उसकी, चारों तरफ से वह तुम्हें देख रहा है। वही झांक रहा है चारों तरफ से। शायद तुम उसे देखने से डरते हो; या इस बात से डरते हो कि कहीं वह तुम्हें देख न रहा हो, इसलिए तुम आंखें बंद किए खड़े हो।
आंखें खोलो! परमात्मा प्रतिपल मौजूद है। और एक बार जरा सी भी आंख खोल लोगे, जरा सी पलक, जरा सी झलक, कि फिर न रुक सकोगे। फिर पकड़े गए; फिर उसके प्रेम के जाल में पड़े।
प्रेम—पंथ ऐसो कठिन🐾ओशो
तो उस पागल आदमी ने कहा, यह भी तुम्हें पता नहीं है? तुम्हीं ने उसे मार डाला है नीत्शे ने एक बहुत अदभुत बोधकथा लिखी है। एक पागल आदमी पहाड़ों से उतरा और बीच बाजार में आकर हाथ में जलती हुई कंदील लिए भर दोपहर कुछ खोजने लगा, दौड़ने लगा यहां-वहां। ढली हुई गाड़ियों के नीचे झांका, वृक्षों के पीछे देखा, लोगों के आस-पास झांका, जहां भीड़ थी बीच में घुस गया। लोगों ने पूछा, क्या खोज रहे हो? क्या खो गया? और भर दोपहरी में लालटेन!
वह आदमी पागल मालूम होता था। और उस पागल ने कहा कि मैं ईश्वर को खोज रहा हूं।
लोग हंसने लगे। उन्होंने कहा, बहुत ईश्वर को खोजने वाले देखे, यह भी तुमने खूब ढंग निकाला! किस ईश्वर को खोज रहे हो? क्या ईश्वर खो गया है? क्या ईश्वर कोई बच्चा है, जो मेले में अपने मां-बाप से बिछुड़ गया? किस ईश्वर की बातें कर रहे हो? उसकी पहचान क्या?
और उस पागल आदमी ने अपनी लालटेन जमीन पर पटक दी और उसने कहा, मालूम होता है तुम्हें अब तक खबर नहीं मिली। ईश्वर मर चुका है! मैं तुम्हें उसकी खबर देने आया हूं।
किसी ने मजाक में ही पूछा कि ईश्वर मर कैसे गया?
तो उस पागल आदमी ने कहा, यह भी तुम्हें पता नहीं है? तुम्हीं ने उसे मार डाला है और तुम्हें अभी तक उसकी खबर नहीं! शायद खबर आने में देर लगेगी--दूर की खबर है, आते-आते समय लगेगा। शायद मैं अपने समय के पहले आ गया हूं।
और तब भीड़ में से किसी ने पूछा, हमने उसे क्यों मार डाला?
तो उस पागल आदमी ने कहा, उसे तुमने इसलिए मार डाला कि वह तुम्हें सदा देखता था। और उसकी आंखें तुम पर गड़ी रहती थीं। और तुम बेचैन होते गए। और तुम अपने को उससे छिपा न पाते थे। वह तुम्हारा साक्षी था, गवाह था। तुम गवाह को बर्दाश्त न कर सके, तुम उस शाश्वत साक्षी को बर्दाश्त न कर सके, इसलिए तुमने उसकी हत्या कर दी।
यह बात नीत्शे ने बड़ी अदभुत कही--कि आदमी ने ईश्वर की हत्या कर दी है, क्योंकि ईश्वर आदमी का गवाह है। उसकी आंखें सदा तुम पर गड़ी हैं। अच्छा नहीं लगता कि कोई आंखें सदा तुम पर गड़ाए रहे। मगर हजार आंखें हैं उसकी, चारों तरफ से वह तुम्हें देख रहा है। वही झांक रहा है चारों तरफ से। शायद तुम उसे देखने से डरते हो; या इस बात से डरते हो कि कहीं वह तुम्हें देख न रहा हो, इसलिए तुम आंखें बंद किए खड़े हो।
आंखें खोलो! परमात्मा प्रतिपल मौजूद है। और एक बार जरा सी भी आंख खोल लोगे, जरा सी पलक, जरा सी झलक, कि फिर न रुक सकोगे। फिर पकड़े गए; फिर उसके प्रेम के जाल में पड़े।
प्रेम—पंथ ऐसो कठिन🐾ओशो
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