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किसी को भूल कर अच्छा बनाने की कोशिश मत करना। और अगर कोशिश की और वह बुरा हो जाए तो अपने को जिम्मेवार समझना।

किसी को भूल कर अच्छा बनाने की कोशिश मत करना। और अगर कोशिश की और वह बुरा हो जाए तो अपने को जिम्मेवार समझना। लोग सोचते हैं, हमने इतनी कोशिश की, फिर यह आदमी अच्छा न हो पाया! असलियत उलटी है। तुम्हारी इतनी कोशिश के कारण ही हो गया।
अच्छे बाप के घर बुरे बेटे पैदा होते हैं, क्योंकि अच्छा बाप बड़ी कोशिश करता है बेटे को अच्छा बनाने की। अपने से ऊंचा न जा सके तो कम से कम अपने तक तो हो जाए। यह कोशिश इतनी ज्यादा हो जाती है कि बेटे के लिए फंदे जैसी लगने लगती है। बेटे की अस्मिता को चोट पहुंचती है। बेटा इस बाप की अगर माने तो मुर्दा हो जाएगा। आज्ञा तोड़नी जरूरी है। बाप से विपरीत जाना जरूरी है। क्योंकि विपरीत जाकर ही बेटे अपने अस्तित्व को अनुभव करेंगे। यह अनिवार्य है।
जैसे मां के पेट के बाहर बच्चा जाएगा, यह जरूरी है नौ महीने के बाद। जाना ही चाहिए। जिस दिन मां के पेट के बाहर बच्चा जाता है उस दिन दूर जाने की प्रक्रिया शुरू हुई। यह चलती रहेगी। फिर जिस दिन बेटा पड़ोस के बच्चों के साथ खेलने लगेगा, वह मां से और दूर गया। मां बड़ी कोशिश करेगी कि किसी के साथ खेलने न जाने दे, घर में ही बंद रख ले। लेकिन फिर बेटा बड़ा कैसे होगा? उसका अहंकार कैसे निर्मित होगा? फिर बेटा स्कूल जाएगा, और दूर गया। फिर हॉस्टल में रहने लगेगा, और दूर गया। फिर किसी एक स्त्री के प्रेम में पड़ जाएगा। उस दिन, उस दिन गर्भ से जो काम शुरू हुआ था, पूरा हुआ। अब वह खुद ही गर्भ देने के योग्य हो गया, प्रक्रिया पूरी हो गई।और जिस दिन बेटा किसी स्त्री के प्रेम में पड़ता है, मां कितना ही उत्सव मनाए, भीतर दुखी और पीड़ित होती है। इसीलिए तो मां-बाप प्रेम को बिलकुल बरदाश्त नहीं करते। विवाह को बरदाश्त कर लेते हैं, प्रेम को बरदाश्त नहीं करते। क्योंकि विवाह के आयोजक वे ही होते हैं, प्रेम का आयोजन बेटा खुद कर लेता है। उसका मतलब वह बिलकुल इतनी दूर चला गया कि जीवन की इतनी गहनतम बात का भी निर्णय खुद ले रहा है। उस संबंध में भी बाप से पूछने नहीं आया। प्रेम को स्वीकार करना बाप को कठिन पड़ता है।
मुल्ला नसरुद्दीन की लड़की एक अभिनेता के प्रेम में पड़ गई। जैसा कि अक्सर लड़कियां पड़ जाती हैं; फिर पछताती हैं, क्योंकि अभिनेता यानी अभिनेता। बाप को आकर कहा, डरते हुए कहा। मुल्ला नसरुद्दीन ने सुन कर कहा कि बकवास बंद! अभिनेता? ये लुच्चे-लफंगे? इनके साथ प्रेम? जिंदगी खराब करनी है? पर उस लड़की ने कहा, पापा, मेरा प्रेम हो गया है। उसने कहा, छोड़, प्रेम-व्रेम से क्या लेना-देना? जिंदगी भर का सवाल है। यह मैं कभी बरदाश्त न करूंगा। तू कोई भी खोज ले अभिनेता को छोड़ कर।
लेकिन बेटी पीछे ही लगी रही। आखिर धीरे-धीरे बाप को उसने फुसलाना शुरू कर लिया। गांव में नाटक कंपनी आई जिसमें वह लड़का अभिनेता था। तो बेटी ने नसरुद्दीन को राजी कर लिया कि आप एक दफा देख तो लें उसको चल कर। नसरुद्दीन ने अभिनय देखा। अभिनय के पूरे होने पर लड़की से कहा कि नहीं, लड़का अच्छा है, देख-दिखाव भी अच्छा, व्यक्तित्व शानदार, प्रभावशाली। तू शादी कर सकती है; लड़का मुझे पसंद आ गया। और जिस बात से मुझे अड़चन थी वह अब न रही। क्योंकि उसके अभिनय से पक्का मुझे भरोसा आ गया कि यह कोई अभिनेता नहीं है। उसके अभिनय से मुझे पक्का भरोसा आ गया कि यह कोई अभिनेता नहीं है। तू कर सकती है शादी।
मैंने नसरुद्दीन को पूछा कि यह तुमने क्या किया? उसने कहा, बाप की इज्जत भी तो बचानी पड़ती है। अब जब बात इस सीमा तक चली गई कि लौटने का उपाय ही नहीं दिखता तो आज्ञा देना ही उचित है।
प्रेम की आज्ञा भी बाप तभी देता है, मां तभी देती है, जब बात इस सीमा तक पहुंच गई कि लौटने का कोई उपाय ही नहीं है। बेमर्जी से ही देता है। क्योंकि यह आखिरी टूट है। अब यह बेटी, यह बेटा किसी और का हो गया। मगर यह जरूरी है।
मां तो चाहेगी कि बेटा कभी किसी के प्रेम में न पड़े। ऐसी भी मां हैं जो इतना दबा देती हैं गर्दन को कि बेटा किसी के प्रेम में पड़ ही नहीं सकता। पर उन्होंने मार डाला। उन्होंने हत्या कर दी। उन्होंने जन्म न दिया, मौत दे दी।
इसीलिए तो सास और बहू की कलह शाश्वत है। उससे बचने का कोई उपाय नहीं दिखता। क्योंकि मां अकेली अधिकारिणी थी प्रेम की। फिर अचानक एक अजनबी औरत को यह लड़का घर ले आया, जिसका न कोई पता-ठिकाना, न कोई हिसाब। कल की अजनबी और अचानक पूरे हृदय पर काबू कर लिया उसने! और जिस बेटे को मैंने जन्म दिया--मां सोचती है--वह मेरा न रहा, और एक दूसरी औरत का हो गया! यह कलह बड़ी गहरी है।
भला करने की भी अतिशय कोशिश बुरे में ले जाएगी। क्योंकि बेटे को अहंकार, बेटी को अपना अहंकार निर्मित करना जरूरी है। प्रकृति चाहती है कि वे व्यक्ति बनें। और व्यक्ति बनने का उनके पास एक ही उपाय है कि वे आज्ञा तोड़ें। इसलिए बेटों को इस तरह की आज्ञा देना जिनको वे तोड़ भी सकें और उनका कोई नुकसान भी न हो। यह बड़ी नाजुक कला है। बेटे को ऐसी कुछ आज्ञाएं जरूर देना जिनको वह तोड़ सके, और तोड़ कर उसका अहंकार निर्मित हो सके, लेकिन उनको तोड़ने में वह बर्बाद न हो जाए।
बच्चों को जन्म देना बहुत आसान, मां-बाप बनना बहुत कठिन है।
ओशो♣

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