कश्मीरी लोगों की चिंता होती है,लेकिन अपने युवा लोगों की नहीँ !

                        @संपादक की कलम से !
ईद-उल-फितर’ अथवा ‘ईद’ का त्योहार मुस्लिम समुदाय का मुख्य त्योहार है। यह मूल रूप से इंसानियत और मिलनसारिता का पर्व है। इस दिन उन सभी लोगों से गर्मजोशी से मुलाकात की जाती है जिनसे साल भर किसी कारणवश मिलना नहीं हो सका हो, लेकिन ईद पर मिलने से सारे गिले शिकवे दूर हो जाते हैं।
लेकिन जब हमारे रिपोर्टर इस पर कवरेज करने गये तो हर जगह लगभग एक ही मुद्दे पर मुस्लिम जनता अपने रैली में संदेश प्रोजेक्ट नशामुक्ति पर ही ज्यादा फ़ोकस कर के दिखा रहे थे। मुस्लिम युवा पीढ़ी जिस तरह नशा के गुलाम हो रहे है।उसका बहुत बड़ा कारण उनका एजुकेशन से वंचित रहना भी बहुत बड़ा कारण है।अगर सच मे ही मदरसा में उन मासूमयो को इस्लाम धर्म के साथ नशामुक्ति भी पाठ पढ़ाया जाता तो आज जिस तरह से इस कोम को आज इस नफरत भरी निगाहों का सामना नही करना पड़ता।कुछ सालों में जिस तरह tv चैलन पर आतंकवाद, बाबरी विवाद,कश्मीर मसला,ट्रिपल तलाक,पर सारे मौलवी, बहस करने बैठ जाते है।पूरी जान लगा देते है।अपनी बात सच है, साबित करने में,लेकिन कभी भी हमनें नही देखा उनको की आज तक की नशामुक्ति पर चर्चा करते हुवे। कश्मीरी लोगों की चिंता होती है।लेकिन अपने युवा लोगों की नहीँ।

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