नकली कैलेण्डर के अनुसार नए साल पर, फ़ालतू का
हंगामा करने के बजाये, पूर्णरूप से वैज्ञानिक और
भारतीय-कैलेण्डर (विक्रम संवत) के अनुसार आने
वाले चैत्र वर्ष-प्रतिपदा पर, समाज उपयोगी
सेवाकार्य करते हुए नववर्ष का स्वागत करना
चाहिए...!!
जनवरी : रोमन देवता 'जेनस' के नाम पर वर्ष के पहले
महीने जनवरी का नामकरण हुआ. मान्यता है कि
जेनस के दो चेहरे हैं. एक से वह आगे और दूसरे से पीछे
देखता है. इसी तरह जनवरी के भी दो चेहरे हैं. एक से
वह बीते हुए वर्ष को देखता है और दूसरे से अगले वर्ष
को. जेनस को लैटिन में जैनअरिस कहा गया. जेनस
जो बाद में जेनुअरी बना जो हिन्दी में जनवरी
हो गया.
फरवरी : इस महीने का संबंध लैटिन के फैबरा से है.
इसका अर्थ है 'शुद्धि की दावत' . पहले इसी माह
में 15 तारीख को लोग शुद्धि की दावत दिया
करते थे. कुछ लोग फरवरी नाम का संबंध रोम की
एक देवी फेबरुएरिया से भी मानते हैं. जो
संतानोत्पत्ति की देवी मानी गई है इसलिए
महिलाएं इस महीने इस देवी की पूजा करती थीं
तब यह साल का आखरी महीना था और इसमें ३०
दिन होते थे अगस्त का महीना भी ३० दिनों
का था लेकिन जूलियस सीजर के भतीजे आगस्टस
सीजर ने अपने नाम को अमर बनाने के लिए
सेक्सटिलिस का नाम बदलकर अगस्टस कर दिया
जो बाद में केवल अगस्त रह गया. एक और
विडम्बना इस महीने से जुडी है जब आगस्टस सीजर
ने देखा की जुलाई में ३१ दिन है तो उसने इस माह
को भी ३१ दिनों का कर दिया इसे ३१ दिनों
का करने के लिए साल के आखरी महीने फैबरा से १
दिन छीन लिया .
मार्च : रोमन देवता 'मार्स' के नाम पर मार्च
महीने का नामकरण हुआ. रोमन वर्ष का प्रारंभ
इसी महीने से होता था. मार्स मार्टिअस का
अपभ्रंश है जो आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है.
सर्दियों का मौसम खत्म होने पर लोग शत्रु देश
पर आक्रमण करते थे इसलिए इस महीने को मार्च
रखा गया.
अप्रैल : इस महीने की उत्पत्ति लैटिन शब्द
'एस्पेरायर' से हुई. इसका अर्थ है खुलना. रोम में
इसी माह बसंत का आगमन होता था इसलिए शुरू
में इस महीने का नाम एप्रिलिस रखा गया. इसके
बाद वर्ष के केवल दस माह होने के कारण यह बसंत
से काफी दूर होता चला गया. वैज्ञानिकों ने
पृथ्वी के सही भ्रमण की जानकारी से दुनिया
को अवगत कराया तब वर्ष में दो महीने और
जोड़कर एप्रिलिस का नाम पुनः सार्थक
किया गया.
मई : रोमन देवता मरकरी की माता 'मइया' के
नाम पर मई नामकरण हुआ. मई का तात्पर्य 'बड़े-
बुजुर्ग रईस' हैं. मई नाम की उत्पत्ति लैटिन के
मेजोरेस से भी मानी जाती है.
जून : इस महीने लोग शादी करके घर बसाते थे.
इसलिए परिवार के लिए उपयोग होने वाले
लैटिन शब्द जेन्स के आधार पर जून का नामकरण
हुआ. एक अन्य मान्यता के मुताबिक रोम में सबसे
बड़े देवता जीयस की पत्नी जूनो के नाम पर जून
का नामकरण हुआ.
जुलाई : राजा जूलियस सीजर का जन्म एवं मृत्यु
दोनों जुलाई में हुई. इसलिए इस महीने का नाम
जुलाई कर दिया गया.
अगस्त : जूलियस सीजर के भतीजे आगस्टस सीजर ने
अपने नाम को अमर बनाने के लिए सेक्सटिलिस
का नाम बदलकर अगस्टस कर दिया जो बाद में
केवल अगस्त रह गया.
सितंबर : रोम में सितंबर सैप्टेंबर कहा जाता था.
सेप्टैंबर में सेप्टै लैटिन शब्द है जिसका अर्थ है सात
और बर का अर्थ है वां यानी सेप्टैंबर का अर्थ
सातवां, लेकिन बाद में यह नौवां महीना बन
गया.
अक्टूबर : इसे लैटिन 'आक्ट' (आठ) के आधार पर
अक्टूबर या आठवां कहते थे, लेकिन दसवां महीना
होने पर भी इसका नाम अक्टूबर ही चलता रहा.
नवंबर : नवंबर को लैटिन में पहले 'नोवेम्बर' यानी
नौवां कहा गया. ग्यारहवां महीना बनने पर
भी इसका नाम नहीं बदला एवं इसे नोवेम्बर से
नवंबर कहा जाने लगा.
दिसंबर : इसी प्रकार लैटिन डेसेम के आधार पर
दिसंबर महीने को डेसेंबर कहा गया. वर्ष का
बारहवां महीना बनने पर भी इसका नाम नहीं
बदला.
सितम्बर अक्तूबर नवम्बर व दिसम्बर महीनो से
पता चलता है कि वे क्रमशः सातवां ,आठवां
,नौवा व दसवां महीना थे जनवरी ग्यारहवां व
फरवरी बारहवां महीना था और मार्च से नववर्ष
शुरू होता था और दुनिया के अधिकाँश धर्म
मार्च (चैत्र ) में अपना नववर्ष शुरू करते थे लेकिन
रोमन कैथोलिक पादरियों द्वारा इसे ईसा
मसीह का नामकरण (यीशु की सुन्नत से एक घटना
है से जोड़ कर साल का पहला महीना कर दिया
. जिसका कोई वैज्ञानिक कारण नहीं है .और हम
मुर्ख लोग उनका अनुकरण करने लगे . दुनिया के
अधिकाँश देशो ने इसे 14वी शताब्दी के बाद इसे
अपनाया है .
‘सप्तांबर, अष्टांबर, नवाम्बर, दशाम्बर’ आपके
मनमें, कभी प्रश्न उठा होगा कि अंग्रेज़ी
महीनों के नाम जैसे कि, सप्टेम्बर, ऑक्टोबर,
नोह्वेम्बर, डिसेम्बर कहीं, संस्कृत सप्ताम्बर,
अष्टाम्बर, नवाम्बर, दशाम्बर जैसे शुद्ध संस्कृत
रूपों से मिलते क्यों प्रतीत होते हैं? विश्व की
और विशेषतः यूरोप की भाषाओं में संस्कृत
शब्दों के स्रोत माने जाते हैं।
इस विषय की कुछ कडियां, जो आज शायद लुप्त
हो चुकी हैं, उन्हें जानने, काम किया है, वह आपके
सामने प्रस्तुत करता हूं। जो जुड़ती कडियों का
अनुसंधान मिलता है,
क्या यह आकस्मिक घटना है? एक साथ अनुक्रम में,
निरंतर चारों महीनों के नाम अंग्रेज़ी में आएं,
ऐसी, आकस्मिक घटना होने की संभावना, नहीं
के बराबर है। जो विद्वान संभावना
(प्रॉबेबिलिटी) की, अवधारणा से परिचित है,
वें इसे आकस्मिक मानने के लिए तैयार नहीं होंगे।
पर प्रश्न यह भी है, कि, यदि सप्ताम्बर-सेप्टेम्बर
है, तो वह अंग्रेजी कॅलेंडर में, क्रम में नववां महीना
कैसे हुआ? और उसी प्रकार, फिर अष्ट्म्बर-ऑक्टो
बर-दसवां, नवाम्बर-नोह्वेम्बर-ग्यारहवां, और
दशाम्बर-डिसेम्बर-बारहवां, कैसे हुए?
इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने और संदर्भ खोजने के लिए,
एन्सायक्लोपिडिया ब्रिटानिका का विश्व
कोष छानकर देखा, और कुछ तथ्य हाथ लगे। उसमें
निम्न बिंदुओं की ओर ध्यान आकर्षित हुआ। इस
विश्व कोष में, कॅलेन्डर के विषय में वैसे और भी
जानकारी है। ईसवी सन, 1750 के आसपास आज
कल उपयोग में लिया जाता कॅलेंडर स्वीकारा
गया, जिसे ग्रेगॅरियन कॅलेंडर के नाम से जाना
जाता है। उसके पहले ज्युलियन कॅलेंडर उपयोग में
लिया जाता था। ऐसा भी दिखाई देता है,
कि, पुराने कॅलेंडरों के अनुसार मार्च महीने से ही
वर्ष प्रारंभ होता था। यह वस्तुस्थिति ध्यान
देने योग्य हैं, क्योंकि, यदि, मार्च महीने से ही
वर्ष प्रारंभ हो, तो, सितम्बर सातवां महीना
होता है, फिर अक्तुबर आठवां, नवम्बर नववां, और
डिसम्बर दसवां महीना होगा।
दूसरा एक सहज दिखाई देनेवाला तथ्य भी,
मार्च से ही नये वर्ष के प्रारंभ की, पुष्टि करता
है। वह है, फरवरी में, हर चार वर्ष में आता हुआ,
लिप वर्ष का सुधार। कोई भी सुधार
सामान्यतः अंत में ही किया जाता है। बहुत
सारी व्यापारी पेढियां, वर्ष के अंत में ही,
हिसाब बराबर करती हैं। आय-कर(Income
Tax)का हिसाब भी, वर्षानुवर्ष डिसम्बर के अंत
तक, देना होता है।
तो यह प्रश्न कि, फरवरी में ही क्यों, लिप
वर्षका सुधार आता है? बडा ही तर्क संगत है।
इसका उत्तर कहीं, इतिहास की जमा धूल के
नीचे, छिप कर बैठा है। लगता है, कि कभी न
कभी तो फरवरी वर्ष का अंतिम महीना रहा
होगा। कोई वर्ष के बीच ही कारण बिना,
ऐसा सुधार करे, यह संभव नहीं, मैं तो ऐसा होना
तार्किक और वैज्ञानिक दृष्टिसे असंभव मानता
हूं। एक और कारण भी स्पष्ट है, कि अन्य माह 30
या 31 दिन के होते हैं ; फिर क्यों, अकेले फरवरी
को 28 या 29 दिन देकर पक्षपात किया गया?
तो यह फरवरी का लिप वर्ष का सुधार, एक; और
28 या 29 दिन के अवधि का माह होना, दूसरा;
यह दोनो तथ्य फरवरी के वर्षान्त माह होने की
पुष्टि करते हैं। अर्थात् मार्च कभी तो पहला
महीना रहा होगा, यह तथ्य भी इसीसे
प्रमाणित होता है।
तीसरा तथ्य भी इस के साथ जोडना आवश्यक है,
वह यह है, कि, भारतीय शालिवाहन शक का
वर्ष गुडी पडवा (वर्ष प्रतिपदा, युगादि) से ही
माना जाता है। और हिंदू तिथि और अंग्रेज़ी
डेट प्रायः आगे पीछे हुआ करती है। महाराष्ट्र,
कर्नाटक सहित दक्षिण में सभी परंपराएं
शालिवाहन शक मानती हैं। शालिवाहन शक के
वर्ष का प्रारंभ, वर्ष-प्रतिपदा जो मार्च में
आती है, उसी से होता है। इस ईसवी सन 2010 के
वर्ष में, 16 मार्च को शक संवत 1932 प्रारंभ हुआ
था, और साथ साथ विक्रमी संवत 2067 भी
प्रारंभ हुआ था। युगाब्द का 5111 वां वर्ष भी
इसी दिनसे प्रारंभ हुआ था।
पाठकों को अब ध्यान में आया होगा, कि
क्यों, सितम्बर सातवां, अक्तुबर आठवां, नवम्बर
नववां, और डिसम्बर दसवां होने का आभास
होता है। वैसे अम्बर अर्थात, आकाश भी संस्कृत
शब्द ही है। हो सकता है कि सप्ताम्बर = सप्त
+अम्बर का अर्थ संदर्भ भी, आकाश का सातवां
भाग इस(एक राशि) अर्थ की व्युत्पत्ति से जुडा
हो।
इंग्लैंड का इतिहास: इंग्लैंड में सन 1752 तक 25
मार्च को नवीन वर्ष दिन मनाया जाता था।
सन १७५२ में पार्लामेंट के प्रस्ताव द्वारा कानून
पारित कर, नवीन वर्ष का प्रारंभ 1 जनवरी को
बदला गया था।
मार्च 25 को नये वर्ष का प्रारंभ मानने के पीछे,
क्या ऐतिहासिक कारण हो सकता है? यह भी
कहीं इतिहास के अनजाने अज्ञात रहस्यो में खो
गया है। आज कुछ अनुमान ही किया जा सकता
है। कारण हो सकता है, कि इंग्लैंड का वैदिक
गुरुकुल शिक्षा पद्धति और वैदिक पंचांग से जिस
वर्ष संबंध टूटा होगा, उस वर्ष वैदिक गणित के
अनुसार २५वी मार्च को प्रारंभ होनेवाला,
भारतीय नव वर्ष रहा होगा।
संभवतः, जिस प्रकार घडी को उलटी दिशा में
घुमाते घुमाते हर बीते हुए दिन का समय और वार
हमें प्राप्त हो सकता है, उसी प्रकार कॅलेंडर को
भी उलटी दिशा में गिनते गिनते हम २५ वी
मार्च से प्रारंभ होने वाला शक संवत खोज सकते
हैं।
मध्य रात्रि में सु प्रभातम्? और एक रहस्यमय
प्रथा के प्रति प्रश्न खडा होना स्वाभाविक
है, वह है, इंग्लैंड में मध्य रात्रि के समय दिन का
आरंभ माना जाना। मध्य रात्रिमें, रात के 12
बजे, Good Morning कहते हुए नया दिन आरंभ कर
देते हैं। मैंने रात के 12 बज कर 1 मिनट पर, मध्य
रात्रि के घोर अंधेरे में, रेडियो संचालक को गुड
मॉर्निंग कहते हुए सुना है। यह मुझे तो कुछ अटपटा
प्रतीत होता है। मध्य रात्रि के समय
सुप्रभातम्? तो, अचरज तो यह है, कि नया दिन
रात को प्रारंभ होता हुआ मान लिया जाए।
क्या, रात के 12 बजे जागकर कॅलेंडर की तारीख
बदलनी पडेगी?
दूसरा प्रश्न इसी प्रथा से जुडा, यह भी है, कि,
फिर मध्य रात्रि के बाद की बची हुई, दूसरे दिन
की प्रातः तक की अंधेरे-युक्त रात्रि का क्या
हुआ? मध्य रात्रि हुयी, और तुरंत एक क्षण में,
सारी शेष रात्रि को छल्लांग लगा कर
सुप्रभातम्,। क्या कोई तर्क है, इसके पीछे? इसे
कॅल्क्युलस की पारिभाषिक शब्दावलि में
(Discontinuity) विच्छिन्नता, सातत्य भंग,
तार्किक असंगति, या त्रूटकता इत्यादि कहते
हैं। यह निश्चित ही तर्कहीन ही लगता है। इस
प्रश्न का कुछ तर्क संगत उत्तर भी निम्न परिच्छेद
में देने का प्रयास किया है।
वास्तव में, इंग्लैंड के रात के बारह बजे, भारतमें
प्रातः है। वैदिक संस्कृति के अनुसार भारतमें,
प्रातः 5:30 बजे सूर्योदय के साथ साथ तिथि
बदली जाती थी। उज्जैन (भारत) और ग्रीनवीच
(इंग्लैंड) के अक्षांश में 82.5 अंशोका (डिग्रीका)
अंतर है। उज्जैन या प्रयाग के अक्षांश 82.5 है, जब
ग्रीनवीच के (0)-शून्य हैं। इस लिए, भारत में जब
प्रातः के, 5:30 बजते हैं, तब ग्रीनवीच, इंग्लैंड में
पिछली रात के, 12 बजे होते हैं, किंतु भारत की
प्रातः से ताल मिलाने के लिए मध्य रात्रि के
तुरंत बाद, शेष रात्रि की ओर दुर्लक्ष्य करते हुए,
गुड मॉर्निंग (सु प्रभातम्) हो जाती है। यह तर्क
शुद्ध प्रतीत होता है। इस तथ्य की एक पुष्टि यह
भी है, कि भारत को पूरब का देश भी माना
जाता है, और ऐसे ही स्वीकारा जाता है।
पाठकों को ’पूरब और पच्छिम” नाम का चलचित्र
(मूवी)भी स्मरण होगा, जिसमें भारत को पूरब
माना गया था, और ऐतिहासिक दृष्टिसे सदा
स्वीकारा भी गया है।
हंगामा करने के बजाये, पूर्णरूप से वैज्ञानिक और
भारतीय-कैलेण्डर (विक्रम संवत) के अनुसार आने
वाले चैत्र वर्ष-प्रतिपदा पर, समाज उपयोगी
सेवाकार्य करते हुए नववर्ष का स्वागत करना
चाहिए...!!
जनवरी : रोमन देवता 'जेनस' के नाम पर वर्ष के पहले
महीने जनवरी का नामकरण हुआ. मान्यता है कि
जेनस के दो चेहरे हैं. एक से वह आगे और दूसरे से पीछे
देखता है. इसी तरह जनवरी के भी दो चेहरे हैं. एक से
वह बीते हुए वर्ष को देखता है और दूसरे से अगले वर्ष
को. जेनस को लैटिन में जैनअरिस कहा गया. जेनस
जो बाद में जेनुअरी बना जो हिन्दी में जनवरी
हो गया.
फरवरी : इस महीने का संबंध लैटिन के फैबरा से है.
इसका अर्थ है 'शुद्धि की दावत' . पहले इसी माह
में 15 तारीख को लोग शुद्धि की दावत दिया
करते थे. कुछ लोग फरवरी नाम का संबंध रोम की
एक देवी फेबरुएरिया से भी मानते हैं. जो
संतानोत्पत्ति की देवी मानी गई है इसलिए
महिलाएं इस महीने इस देवी की पूजा करती थीं
तब यह साल का आखरी महीना था और इसमें ३०
दिन होते थे अगस्त का महीना भी ३० दिनों
का था लेकिन जूलियस सीजर के भतीजे आगस्टस
सीजर ने अपने नाम को अमर बनाने के लिए
सेक्सटिलिस का नाम बदलकर अगस्टस कर दिया
जो बाद में केवल अगस्त रह गया. एक और
विडम्बना इस महीने से जुडी है जब आगस्टस सीजर
ने देखा की जुलाई में ३१ दिन है तो उसने इस माह
को भी ३१ दिनों का कर दिया इसे ३१ दिनों
का करने के लिए साल के आखरी महीने फैबरा से १
दिन छीन लिया .
मार्च : रोमन देवता 'मार्स' के नाम पर मार्च
महीने का नामकरण हुआ. रोमन वर्ष का प्रारंभ
इसी महीने से होता था. मार्स मार्टिअस का
अपभ्रंश है जो आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है.
सर्दियों का मौसम खत्म होने पर लोग शत्रु देश
पर आक्रमण करते थे इसलिए इस महीने को मार्च
रखा गया.
अप्रैल : इस महीने की उत्पत्ति लैटिन शब्द
'एस्पेरायर' से हुई. इसका अर्थ है खुलना. रोम में
इसी माह बसंत का आगमन होता था इसलिए शुरू
में इस महीने का नाम एप्रिलिस रखा गया. इसके
बाद वर्ष के केवल दस माह होने के कारण यह बसंत
से काफी दूर होता चला गया. वैज्ञानिकों ने
पृथ्वी के सही भ्रमण की जानकारी से दुनिया
को अवगत कराया तब वर्ष में दो महीने और
जोड़कर एप्रिलिस का नाम पुनः सार्थक
किया गया.
मई : रोमन देवता मरकरी की माता 'मइया' के
नाम पर मई नामकरण हुआ. मई का तात्पर्य 'बड़े-
बुजुर्ग रईस' हैं. मई नाम की उत्पत्ति लैटिन के
मेजोरेस से भी मानी जाती है.
जून : इस महीने लोग शादी करके घर बसाते थे.
इसलिए परिवार के लिए उपयोग होने वाले
लैटिन शब्द जेन्स के आधार पर जून का नामकरण
हुआ. एक अन्य मान्यता के मुताबिक रोम में सबसे
बड़े देवता जीयस की पत्नी जूनो के नाम पर जून
का नामकरण हुआ.
जुलाई : राजा जूलियस सीजर का जन्म एवं मृत्यु
दोनों जुलाई में हुई. इसलिए इस महीने का नाम
जुलाई कर दिया गया.
अगस्त : जूलियस सीजर के भतीजे आगस्टस सीजर ने
अपने नाम को अमर बनाने के लिए सेक्सटिलिस
का नाम बदलकर अगस्टस कर दिया जो बाद में
केवल अगस्त रह गया.
सितंबर : रोम में सितंबर सैप्टेंबर कहा जाता था.
सेप्टैंबर में सेप्टै लैटिन शब्द है जिसका अर्थ है सात
और बर का अर्थ है वां यानी सेप्टैंबर का अर्थ
सातवां, लेकिन बाद में यह नौवां महीना बन
गया.
अक्टूबर : इसे लैटिन 'आक्ट' (आठ) के आधार पर
अक्टूबर या आठवां कहते थे, लेकिन दसवां महीना
होने पर भी इसका नाम अक्टूबर ही चलता रहा.
नवंबर : नवंबर को लैटिन में पहले 'नोवेम्बर' यानी
नौवां कहा गया. ग्यारहवां महीना बनने पर
भी इसका नाम नहीं बदला एवं इसे नोवेम्बर से
नवंबर कहा जाने लगा.
दिसंबर : इसी प्रकार लैटिन डेसेम के आधार पर
दिसंबर महीने को डेसेंबर कहा गया. वर्ष का
बारहवां महीना बनने पर भी इसका नाम नहीं
बदला.
सितम्बर अक्तूबर नवम्बर व दिसम्बर महीनो से
पता चलता है कि वे क्रमशः सातवां ,आठवां
,नौवा व दसवां महीना थे जनवरी ग्यारहवां व
फरवरी बारहवां महीना था और मार्च से नववर्ष
शुरू होता था और दुनिया के अधिकाँश धर्म
मार्च (चैत्र ) में अपना नववर्ष शुरू करते थे लेकिन
रोमन कैथोलिक पादरियों द्वारा इसे ईसा
मसीह का नामकरण (यीशु की सुन्नत से एक घटना
है से जोड़ कर साल का पहला महीना कर दिया
. जिसका कोई वैज्ञानिक कारण नहीं है .और हम
मुर्ख लोग उनका अनुकरण करने लगे . दुनिया के
अधिकाँश देशो ने इसे 14वी शताब्दी के बाद इसे
अपनाया है .
‘सप्तांबर, अष्टांबर, नवाम्बर, दशाम्बर’ आपके
मनमें, कभी प्रश्न उठा होगा कि अंग्रेज़ी
महीनों के नाम जैसे कि, सप्टेम्बर, ऑक्टोबर,
नोह्वेम्बर, डिसेम्बर कहीं, संस्कृत सप्ताम्बर,
अष्टाम्बर, नवाम्बर, दशाम्बर जैसे शुद्ध संस्कृत
रूपों से मिलते क्यों प्रतीत होते हैं? विश्व की
और विशेषतः यूरोप की भाषाओं में संस्कृत
शब्दों के स्रोत माने जाते हैं।
इस विषय की कुछ कडियां, जो आज शायद लुप्त
हो चुकी हैं, उन्हें जानने, काम किया है, वह आपके
सामने प्रस्तुत करता हूं। जो जुड़ती कडियों का
अनुसंधान मिलता है,
क्या यह आकस्मिक घटना है? एक साथ अनुक्रम में,
निरंतर चारों महीनों के नाम अंग्रेज़ी में आएं,
ऐसी, आकस्मिक घटना होने की संभावना, नहीं
के बराबर है। जो विद्वान संभावना
(प्रॉबेबिलिटी) की, अवधारणा से परिचित है,
वें इसे आकस्मिक मानने के लिए तैयार नहीं होंगे।
पर प्रश्न यह भी है, कि, यदि सप्ताम्बर-सेप्टेम्बर
है, तो वह अंग्रेजी कॅलेंडर में, क्रम में नववां महीना
कैसे हुआ? और उसी प्रकार, फिर अष्ट्म्बर-ऑक्टो
बर-दसवां, नवाम्बर-नोह्वेम्बर-ग्यारहवां, और
दशाम्बर-डिसेम्बर-बारहवां, कैसे हुए?
इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने और संदर्भ खोजने के लिए,
एन्सायक्लोपिडिया ब्रिटानिका का विश्व
कोष छानकर देखा, और कुछ तथ्य हाथ लगे। उसमें
निम्न बिंदुओं की ओर ध्यान आकर्षित हुआ। इस
विश्व कोष में, कॅलेन्डर के विषय में वैसे और भी
जानकारी है। ईसवी सन, 1750 के आसपास आज
कल उपयोग में लिया जाता कॅलेंडर स्वीकारा
गया, जिसे ग्रेगॅरियन कॅलेंडर के नाम से जाना
जाता है। उसके पहले ज्युलियन कॅलेंडर उपयोग में
लिया जाता था। ऐसा भी दिखाई देता है,
कि, पुराने कॅलेंडरों के अनुसार मार्च महीने से ही
वर्ष प्रारंभ होता था। यह वस्तुस्थिति ध्यान
देने योग्य हैं, क्योंकि, यदि, मार्च महीने से ही
वर्ष प्रारंभ हो, तो, सितम्बर सातवां महीना
होता है, फिर अक्तुबर आठवां, नवम्बर नववां, और
डिसम्बर दसवां महीना होगा।
दूसरा एक सहज दिखाई देनेवाला तथ्य भी,
मार्च से ही नये वर्ष के प्रारंभ की, पुष्टि करता
है। वह है, फरवरी में, हर चार वर्ष में आता हुआ,
लिप वर्ष का सुधार। कोई भी सुधार
सामान्यतः अंत में ही किया जाता है। बहुत
सारी व्यापारी पेढियां, वर्ष के अंत में ही,
हिसाब बराबर करती हैं। आय-कर(Income
Tax)का हिसाब भी, वर्षानुवर्ष डिसम्बर के अंत
तक, देना होता है।
तो यह प्रश्न कि, फरवरी में ही क्यों, लिप
वर्षका सुधार आता है? बडा ही तर्क संगत है।
इसका उत्तर कहीं, इतिहास की जमा धूल के
नीचे, छिप कर बैठा है। लगता है, कि कभी न
कभी तो फरवरी वर्ष का अंतिम महीना रहा
होगा। कोई वर्ष के बीच ही कारण बिना,
ऐसा सुधार करे, यह संभव नहीं, मैं तो ऐसा होना
तार्किक और वैज्ञानिक दृष्टिसे असंभव मानता
हूं। एक और कारण भी स्पष्ट है, कि अन्य माह 30
या 31 दिन के होते हैं ; फिर क्यों, अकेले फरवरी
को 28 या 29 दिन देकर पक्षपात किया गया?
तो यह फरवरी का लिप वर्ष का सुधार, एक; और
28 या 29 दिन के अवधि का माह होना, दूसरा;
यह दोनो तथ्य फरवरी के वर्षान्त माह होने की
पुष्टि करते हैं। अर्थात् मार्च कभी तो पहला
महीना रहा होगा, यह तथ्य भी इसीसे
प्रमाणित होता है।
तीसरा तथ्य भी इस के साथ जोडना आवश्यक है,
वह यह है, कि, भारतीय शालिवाहन शक का
वर्ष गुडी पडवा (वर्ष प्रतिपदा, युगादि) से ही
माना जाता है। और हिंदू तिथि और अंग्रेज़ी
डेट प्रायः आगे पीछे हुआ करती है। महाराष्ट्र,
कर्नाटक सहित दक्षिण में सभी परंपराएं
शालिवाहन शक मानती हैं। शालिवाहन शक के
वर्ष का प्रारंभ, वर्ष-प्रतिपदा जो मार्च में
आती है, उसी से होता है। इस ईसवी सन 2010 के
वर्ष में, 16 मार्च को शक संवत 1932 प्रारंभ हुआ
था, और साथ साथ विक्रमी संवत 2067 भी
प्रारंभ हुआ था। युगाब्द का 5111 वां वर्ष भी
इसी दिनसे प्रारंभ हुआ था।
पाठकों को अब ध्यान में आया होगा, कि
क्यों, सितम्बर सातवां, अक्तुबर आठवां, नवम्बर
नववां, और डिसम्बर दसवां होने का आभास
होता है। वैसे अम्बर अर्थात, आकाश भी संस्कृत
शब्द ही है। हो सकता है कि सप्ताम्बर = सप्त
+अम्बर का अर्थ संदर्भ भी, आकाश का सातवां
भाग इस(एक राशि) अर्थ की व्युत्पत्ति से जुडा
हो।
इंग्लैंड का इतिहास: इंग्लैंड में सन 1752 तक 25
मार्च को नवीन वर्ष दिन मनाया जाता था।
सन १७५२ में पार्लामेंट के प्रस्ताव द्वारा कानून
पारित कर, नवीन वर्ष का प्रारंभ 1 जनवरी को
बदला गया था।
मार्च 25 को नये वर्ष का प्रारंभ मानने के पीछे,
क्या ऐतिहासिक कारण हो सकता है? यह भी
कहीं इतिहास के अनजाने अज्ञात रहस्यो में खो
गया है। आज कुछ अनुमान ही किया जा सकता
है। कारण हो सकता है, कि इंग्लैंड का वैदिक
गुरुकुल शिक्षा पद्धति और वैदिक पंचांग से जिस
वर्ष संबंध टूटा होगा, उस वर्ष वैदिक गणित के
अनुसार २५वी मार्च को प्रारंभ होनेवाला,
भारतीय नव वर्ष रहा होगा।
संभवतः, जिस प्रकार घडी को उलटी दिशा में
घुमाते घुमाते हर बीते हुए दिन का समय और वार
हमें प्राप्त हो सकता है, उसी प्रकार कॅलेंडर को
भी उलटी दिशा में गिनते गिनते हम २५ वी
मार्च से प्रारंभ होने वाला शक संवत खोज सकते
हैं।
मध्य रात्रि में सु प्रभातम्? और एक रहस्यमय
प्रथा के प्रति प्रश्न खडा होना स्वाभाविक
है, वह है, इंग्लैंड में मध्य रात्रि के समय दिन का
आरंभ माना जाना। मध्य रात्रिमें, रात के 12
बजे, Good Morning कहते हुए नया दिन आरंभ कर
देते हैं। मैंने रात के 12 बज कर 1 मिनट पर, मध्य
रात्रि के घोर अंधेरे में, रेडियो संचालक को गुड
मॉर्निंग कहते हुए सुना है। यह मुझे तो कुछ अटपटा
प्रतीत होता है। मध्य रात्रि के समय
सुप्रभातम्? तो, अचरज तो यह है, कि नया दिन
रात को प्रारंभ होता हुआ मान लिया जाए।
क्या, रात के 12 बजे जागकर कॅलेंडर की तारीख
बदलनी पडेगी?
दूसरा प्रश्न इसी प्रथा से जुडा, यह भी है, कि,
फिर मध्य रात्रि के बाद की बची हुई, दूसरे दिन
की प्रातः तक की अंधेरे-युक्त रात्रि का क्या
हुआ? मध्य रात्रि हुयी, और तुरंत एक क्षण में,
सारी शेष रात्रि को छल्लांग लगा कर
सुप्रभातम्,। क्या कोई तर्क है, इसके पीछे? इसे
कॅल्क्युलस की पारिभाषिक शब्दावलि में
(Discontinuity) विच्छिन्नता, सातत्य भंग,
तार्किक असंगति, या त्रूटकता इत्यादि कहते
हैं। यह निश्चित ही तर्कहीन ही लगता है। इस
प्रश्न का कुछ तर्क संगत उत्तर भी निम्न परिच्छेद
में देने का प्रयास किया है।
वास्तव में, इंग्लैंड के रात के बारह बजे, भारतमें
प्रातः है। वैदिक संस्कृति के अनुसार भारतमें,
प्रातः 5:30 बजे सूर्योदय के साथ साथ तिथि
बदली जाती थी। उज्जैन (भारत) और ग्रीनवीच
(इंग्लैंड) के अक्षांश में 82.5 अंशोका (डिग्रीका)
अंतर है। उज्जैन या प्रयाग के अक्षांश 82.5 है, जब
ग्रीनवीच के (0)-शून्य हैं। इस लिए, भारत में जब
प्रातः के, 5:30 बजते हैं, तब ग्रीनवीच, इंग्लैंड में
पिछली रात के, 12 बजे होते हैं, किंतु भारत की
प्रातः से ताल मिलाने के लिए मध्य रात्रि के
तुरंत बाद, शेष रात्रि की ओर दुर्लक्ष्य करते हुए,
गुड मॉर्निंग (सु प्रभातम्) हो जाती है। यह तर्क
शुद्ध प्रतीत होता है। इस तथ्य की एक पुष्टि यह
भी है, कि भारत को पूरब का देश भी माना
जाता है, और ऐसे ही स्वीकारा जाता है।
पाठकों को ’पूरब और पच्छिम” नाम का चलचित्र
(मूवी)भी स्मरण होगा, जिसमें भारत को पूरब
माना गया था, और ऐतिहासिक दृष्टिसे सदा
स्वीकारा भी गया है।
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