जो चेलेंज मोदी जी फेस कर रहे है जो लड़ाई वो लड़ रहे है इस भ्रष्ट सिस्टम से वो इस देश की वास्तविक लड़ाई है...!!
आपको वर्तमान सरकार की पीठ थपथपानी चाहिए क्यूंकि सरकार ने धैर्य पूर्वक भारत को एक आर्थिक आपदा से निकाला है। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने लोकसभा में यह कहा था की पब्लिक सेक्टर के बैंकों में एनपीए 36 % की जगह 82 % है और राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को टूटने से बचाने के लिए उस पर चुप रहे तो यह शत प्रतिशत सही बात है। इन चार सालो में इस सरकार ने बैंको की यथास्थिति को उजागर करने और उनको कारगर बने रहने के लिये जो मेहनत की है वह स्पष्टतः सामने दिख रही है। आपको अक्ल नही है तो यह बता दूं कि विश्व में कोई भी बैंकिंग सेक्टर 82 % की एनपीए ओढ़ कर जीवित नहीं रह सकता है। उसका दिवालिया होना निश्चित है।
और जब किसी राष्ट्र के पब्लिक सेक्टर के बैंक दिवालिया होते है तो राष्ट्र दिवालिया हो जाता है। आज जब 4 वर्षो बाद स्थिति सरकार के हाथ में है तब जाकर पंजाब नेशनल बैंक अपने शेरों में आयी गिरावट को झेल सका है। यही नीरव मोदी का मामला और 82 % की एनपीए भारत की जनता और देशी विदेशी निवेशकों को 2 /3 वर्ष पहले पता लगता तो जहाँ पंजाब नेशनल बैंक का दिवालिया होना तय था वही पर भारत की अर्थव्यवस्था चरमरा कर 1991 से भी ज्यादा बुरी स्थिति में पहुँच जाती।
वर्तमान की सरकार को पूर्व की सोनिया गाँधी, मनमोहन सिंह, चिदंबरम और रघुराम राजन की भृष्ट यूपीए सरकार द्वारा निर्मित यह ऐसी वृहत वित्तीय घोटालो की समस्या मिली है जिससे मुक्त होने का सिर्फ एक ही उपाय था की प्रथमिकता के आधार पर एनपीए के पूर्ण सत्य का पता करना और एक एक वित्तीय अपराधी को कानून की हद में लाना है। जिस तरह से वर्तमान सरकार संभल संभल कर इन वित्तीय अपराधियों के खिलाफ मजबूत केस बना रही है, उससे मुझे तो यही आशा है की आने वाले समय में और बड़े नाम/अनाम और बड़ी रकमों के साथ हमारे सामने आने वाले है।
सवाल : NPA क्या होता है?
जवाब : जब उधार लेने वाला ब्याज वापस देना बंद कर देता है या मूल धन या दोनों को ही वापस नहीं लौटता तो उस धन को नॉन परफार्मिंग एसेट (NPA ) कहा जाता है. भारतीय बैंकिंग सिस्टम की ये सबसे बड़ी समस्याओं में से एक हमेशा रहा है. उदाहरण के लिए समझते हैं कि मानों अजी हाँ ने अपनी डिजिटल मीडिया कंपनी खोली और बैंकों से १ करोड़ का लोन उठाया..बैंक वालों ने बोला कि भय्ये साल का १२ टका ब्याज देता रहियो..हम कमिटमेंट दे दिए..शुरू में धंधा बढ़िया चला और टाइम से हम ब्याज देते रहे..बाद में आपस की लड़ाई में..या बिजनेस इंट्रेस्ट चेंज हो जाने से..या किसी भी कारण से हम 90 दिन तक कोई ब्याज नहीं दिए..तो ऐसे में बैंक उस लोन को NPA में दिखायेगा.
NPA तीन प्रकार का होता है..
सबस्टैंडर्ड : जब १२ महीने या उस से कम समय तक कोई भी रिटर्न न आये
डाउटफुल : १२ महीने के बाद भी कोई रिटर्न न आये..
लॉस : इस केस में RBI या बैंक को पता तो चल जाता है कि लॉस है पर अमाउंट को write ऑफ़ नहीं किया जाता.
सवाल : हमारे देश में NPA का खेल क्या है?
जवाब : ब्रिक्स देशों के समूहों में हम इस मामले में सबसे फिसड्डी हैं..२०१६ के आंकलन के हिसाब से लगभग कुल लोन का १०% लोन NPA था जो लगभग ७ लाख करोड़ तक पहुँच रहा था..इसमें भी बहुत सा डाटा करेक्ट नहीं था और ज्यादातर ऑडिट और रिपोर्टिंग एजेंसी ने रिपोर्ट ग्रीन दिखाने को गलत रिपोर्ट ऊपर तक पहुंचाई गयी थी..समस्या इतनी विकराल बनती जा रही थी कि बैंकिंग सिस्टम क्रैश होने के कगार पर आ चुका था..
सवाल : इतना NPA कैसे इकठ्ठा हो गया?
जवाब : बहुत से कारण है..जैसे कुछ और करने को लोन लिया था..कुछ और करते रहे..या कभी ग्लोबल स्लोडाउन का शिकार बिजनेस हो गया..या कोई स्पेसफिक सेक्टर मंदी की चपेट में आ गया..या लोन देते में ही गड़बड़ घोटाला कर दिया गया ..या कंपनी का मैनजमेंट फुद्दू निकला..या कंपनी ने औकात से ज्यादा बड़ा एक्सपेंशन कर लिया और फिर उसे संभाल नहीं पाए.
इस सब से होता ये है कि बैंकों का प्रॉफिट मार्जिन कम होता जाता है..सरकार तक कम पैसा पहुँच पाता है..इन्वेस्टमेंट पर रिटर्न कम रहने से ग्रोथ रुक जाती है..बेरजोगारी बढ़ती है..और बैंकों को इंटरेस्ट रेट बढ़ा कर नुक्सान की भरपाई करनी होती है..
सवाल : ठीक है ठीक है ये तो ज्ञान बाजी हो गयी..ये बताओ मोदी सरकार क्या कर रही है ?
जवाब : २०१५ में इस सरकार ने मिशन इंद्रधनुष लांच किया जो कि बैंकों का राष्ट्रीयकरण होने के बाद सबसे बड़ा बैंकिंग रिफार्म माना जाता है..
इसके ७ प्रमुख अंग हैं :
अपॉइंटमेंट : वैश्विक नॉर्म्स के हिसाब से सबकी अकॉउंटबिल्टी सेट करती हुई restructuring की.
बैंक बोर्ड ब्युरो : अर्थ जगत के बुद्धिजीवियों के साथ मिलके ब्यूरो का गठन किया जो पारदर्शिता से अपॉइंटमेंट करने की जिम्मेवारी के साथ काम करेगा.
कॅपिटलिजेशन : सरकार लगभग ७०००० करोड़ रुपया सरकारी बैंकों को देगी जिस से उनकी कार्य क्षमता को सपोर्ट मिलेगा.
*डी-स्ट्रेस्सिंग : रिस्क कंट्रोल मैकेनिज्म बनाना
* एम्प्लॉयमेंट
*एकाउंटेबिलिटी फ्रेमवर्क.
* गवर्नेंस रिफॉर्म्स
2015 का स्ट्रेटेजिक डेब्ट रिस्ट्रक्चरिंग (SDR ) - इसमें बैंकों को अधिकार दिया गया कि लोन के बदले धंधे में इक्विटी ली जा सकती है..इसमें लोन न लौटाने की स्थिति में बैंक कंपनी की ओनरशिप अपने हाथ ले सकते हैं.
2015 का ही एसेट क्वालिटी रिव्यु (ARC ) : जितने भी स्ट्रेस्ड अकाउंट हैं उनमें बड़े खिलाड़ियों का सेम्पल ऑडिट..जिससे अर्ली डिटेक्शन और बैंकों की कार्य प्रणाली पर नज़र रखी जा सके..
SSSA 2016 - इसमें बड़ी मछलियों की मिलीभगत पर नज़र रखी जा सकती है..किसको औकात से ज्यादा लोन मिल रहा है..वो उस लोन का क्या कर रहा है..किस एवज में उसको ये लोन मिला है ये सब यहां चेक पॉइंट लगा के देखा जा सकता है.
इन सबके अलावा Pubic ARC vs. Private ARC – 2017 और Bad Banks के आर्थिक सुधारों की बात भी इस साल के इकनोमिक सर्वे में सरकार ने रखी है..
इस सब को पढ़ के इतना तो समझ आता है कि चीजें कैसे चलती रहीं थी और कैसे चल रही हैं..इतनी जानकारी अगर पहले जुटा लेते तो नोटबंदी समझने के लिए एक अलग पर्सपेक्टिव भी मिलता..बैंकों का री-कैपिटलिजेशन क्यों जरूरी था ये भी समझ आता..कैसे कैसे टाइम बम इकॉनमी में लगा के रखे गए थे वो पकड़ में ही नहीं आते अगर एसेट क्वालिटी रिव्यु इस सरकार ने नहीं initiate किया होता..
सब कुछ एक दुसरे से जुड़ा हुआ प्रतीत ही होता है...बैंकिंग कोलैप्स होती तो ब्याज दरें कहाँ जाती..मंहगाई का क्या हाल होता..बिजनेस एनवायरनमेंट पे क्या असर पड़ता..ये सब integrate करके सोचा जा सकता है...इतना डिटेल में लिखने के लिए डिटेल में पढ़ना भी पड़ा है..और पढ़ के ये समझ आया..कि outrage बहुत आसान है..एक लाइन का जोक मारना बहुत आसान है..लेकिन जो चेलेंज मोदी जी फेस कर रहे है जो लड़ाई वो लड़ रहा है इस भ्रष्ट सिस्टम से वो इस देश की वास्तविक लड़ाई है.
पीएम मोदीजी ने संसद में घोषणा की है कि उनकी सरकार में बैंक द्वारा एक भी ऐसा लोन नहीं दिया जिससे एक रुपये का भी एनपीए बना हो।
मार्च 2014 में ही एनपीए जहां 2,04,249 करोड़ रुपये था। वहीं जून 2017 में बढ़कर ये 8,29,338 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। क्योंकि इसे के साथ 3rd पार्टी ऑडिट भी कराना जरूरी हो गया जिसे एक्चुअल अमाउंट का पता चला ।
देश के तमाम बैंक किस कदर एनपीए के जाल में उलझे हैं। इसे देश के 25 बैंकों के एनपीए से समझा जा सकता है।
भारतीय स्टेट बैंक 1,88,068 करोड
पंजाब नेशनल बैंक 57,721
बैंक ऑफ इंडिया 51,019 करोड
आईडीबीआई बैंक 50,173 करोड
बैंक ऑफ बड़ौदा 46,173 करोड
आईसीआईसीआई बैंक 43,148 करोड
केनरा बैंक 37,658. करोड
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया 37,286 करोड
इंडियन ओवरसीज बैंक 35,453 करोड
सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया 31,398 करोड
यूको बैंक 25,054 करोड
ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स 24,409 करोड
एक्सिस बैंक लिमिटेड 22,031 करोड
कॉरपोरेशन बैंक 21,713 करोड
इलाहाबाद बैंक 21,032 करोड
सिंडिकेट बैंक 20,184 करोड
आंध्रा बैंक 19,428 करोड
बैंक ऑफ महाराष्ट्र 18,049 करोड
देना बैंक 12,994 करोड
यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया 12,165 करोड
इंडियन बैंक 9,653 करोड
एचडीएफसी बैंक 7,243 करोड
विजया बैंक 6,812 करोड
पंजाब और सिंध बैंक 6,693 करोड
जम्मू व कश्मीर बैंक 5,641 करोड
25 बैंकों की ये लिस्ट बताती है कि जनता का पैसा कोंग्रेस सरकार में कैसे लोन के तौर पर रईसों में बांटा गया ।
आपको वर्तमान सरकार की पीठ थपथपानी चाहिए क्यूंकि सरकार ने धैर्य पूर्वक भारत को एक आर्थिक आपदा से निकाला है। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने लोकसभा में यह कहा था की पब्लिक सेक्टर के बैंकों में एनपीए 36 % की जगह 82 % है और राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को टूटने से बचाने के लिए उस पर चुप रहे तो यह शत प्रतिशत सही बात है। इन चार सालो में इस सरकार ने बैंको की यथास्थिति को उजागर करने और उनको कारगर बने रहने के लिये जो मेहनत की है वह स्पष्टतः सामने दिख रही है। आपको अक्ल नही है तो यह बता दूं कि विश्व में कोई भी बैंकिंग सेक्टर 82 % की एनपीए ओढ़ कर जीवित नहीं रह सकता है। उसका दिवालिया होना निश्चित है।
और जब किसी राष्ट्र के पब्लिक सेक्टर के बैंक दिवालिया होते है तो राष्ट्र दिवालिया हो जाता है। आज जब 4 वर्षो बाद स्थिति सरकार के हाथ में है तब जाकर पंजाब नेशनल बैंक अपने शेरों में आयी गिरावट को झेल सका है। यही नीरव मोदी का मामला और 82 % की एनपीए भारत की जनता और देशी विदेशी निवेशकों को 2 /3 वर्ष पहले पता लगता तो जहाँ पंजाब नेशनल बैंक का दिवालिया होना तय था वही पर भारत की अर्थव्यवस्था चरमरा कर 1991 से भी ज्यादा बुरी स्थिति में पहुँच जाती।
वर्तमान की सरकार को पूर्व की सोनिया गाँधी, मनमोहन सिंह, चिदंबरम और रघुराम राजन की भृष्ट यूपीए सरकार द्वारा निर्मित यह ऐसी वृहत वित्तीय घोटालो की समस्या मिली है जिससे मुक्त होने का सिर्फ एक ही उपाय था की प्रथमिकता के आधार पर एनपीए के पूर्ण सत्य का पता करना और एक एक वित्तीय अपराधी को कानून की हद में लाना है। जिस तरह से वर्तमान सरकार संभल संभल कर इन वित्तीय अपराधियों के खिलाफ मजबूत केस बना रही है, उससे मुझे तो यही आशा है की आने वाले समय में और बड़े नाम/अनाम और बड़ी रकमों के साथ हमारे सामने आने वाले है।
सवाल : NPA क्या होता है?
जवाब : जब उधार लेने वाला ब्याज वापस देना बंद कर देता है या मूल धन या दोनों को ही वापस नहीं लौटता तो उस धन को नॉन परफार्मिंग एसेट (NPA ) कहा जाता है. भारतीय बैंकिंग सिस्टम की ये सबसे बड़ी समस्याओं में से एक हमेशा रहा है. उदाहरण के लिए समझते हैं कि मानों अजी हाँ ने अपनी डिजिटल मीडिया कंपनी खोली और बैंकों से १ करोड़ का लोन उठाया..बैंक वालों ने बोला कि भय्ये साल का १२ टका ब्याज देता रहियो..हम कमिटमेंट दे दिए..शुरू में धंधा बढ़िया चला और टाइम से हम ब्याज देते रहे..बाद में आपस की लड़ाई में..या बिजनेस इंट्रेस्ट चेंज हो जाने से..या किसी भी कारण से हम 90 दिन तक कोई ब्याज नहीं दिए..तो ऐसे में बैंक उस लोन को NPA में दिखायेगा.
NPA तीन प्रकार का होता है..
सबस्टैंडर्ड : जब १२ महीने या उस से कम समय तक कोई भी रिटर्न न आये
डाउटफुल : १२ महीने के बाद भी कोई रिटर्न न आये..
लॉस : इस केस में RBI या बैंक को पता तो चल जाता है कि लॉस है पर अमाउंट को write ऑफ़ नहीं किया जाता.
सवाल : हमारे देश में NPA का खेल क्या है?
जवाब : ब्रिक्स देशों के समूहों में हम इस मामले में सबसे फिसड्डी हैं..२०१६ के आंकलन के हिसाब से लगभग कुल लोन का १०% लोन NPA था जो लगभग ७ लाख करोड़ तक पहुँच रहा था..इसमें भी बहुत सा डाटा करेक्ट नहीं था और ज्यादातर ऑडिट और रिपोर्टिंग एजेंसी ने रिपोर्ट ग्रीन दिखाने को गलत रिपोर्ट ऊपर तक पहुंचाई गयी थी..समस्या इतनी विकराल बनती जा रही थी कि बैंकिंग सिस्टम क्रैश होने के कगार पर आ चुका था..
सवाल : इतना NPA कैसे इकठ्ठा हो गया?
जवाब : बहुत से कारण है..जैसे कुछ और करने को लोन लिया था..कुछ और करते रहे..या कभी ग्लोबल स्लोडाउन का शिकार बिजनेस हो गया..या कोई स्पेसफिक सेक्टर मंदी की चपेट में आ गया..या लोन देते में ही गड़बड़ घोटाला कर दिया गया ..या कंपनी का मैनजमेंट फुद्दू निकला..या कंपनी ने औकात से ज्यादा बड़ा एक्सपेंशन कर लिया और फिर उसे संभाल नहीं पाए.
इस सब से होता ये है कि बैंकों का प्रॉफिट मार्जिन कम होता जाता है..सरकार तक कम पैसा पहुँच पाता है..इन्वेस्टमेंट पर रिटर्न कम रहने से ग्रोथ रुक जाती है..बेरजोगारी बढ़ती है..और बैंकों को इंटरेस्ट रेट बढ़ा कर नुक्सान की भरपाई करनी होती है..
सवाल : ठीक है ठीक है ये तो ज्ञान बाजी हो गयी..ये बताओ मोदी सरकार क्या कर रही है ?
जवाब : २०१५ में इस सरकार ने मिशन इंद्रधनुष लांच किया जो कि बैंकों का राष्ट्रीयकरण होने के बाद सबसे बड़ा बैंकिंग रिफार्म माना जाता है..
इसके ७ प्रमुख अंग हैं :
अपॉइंटमेंट : वैश्विक नॉर्म्स के हिसाब से सबकी अकॉउंटबिल्टी सेट करती हुई restructuring की.
बैंक बोर्ड ब्युरो : अर्थ जगत के बुद्धिजीवियों के साथ मिलके ब्यूरो का गठन किया जो पारदर्शिता से अपॉइंटमेंट करने की जिम्मेवारी के साथ काम करेगा.
कॅपिटलिजेशन : सरकार लगभग ७०००० करोड़ रुपया सरकारी बैंकों को देगी जिस से उनकी कार्य क्षमता को सपोर्ट मिलेगा.
*डी-स्ट्रेस्सिंग : रिस्क कंट्रोल मैकेनिज्म बनाना
* एम्प्लॉयमेंट
*एकाउंटेबिलिटी फ्रेमवर्क.
* गवर्नेंस रिफॉर्म्स
2015 का स्ट्रेटेजिक डेब्ट रिस्ट्रक्चरिंग (SDR ) - इसमें बैंकों को अधिकार दिया गया कि लोन के बदले धंधे में इक्विटी ली जा सकती है..इसमें लोन न लौटाने की स्थिति में बैंक कंपनी की ओनरशिप अपने हाथ ले सकते हैं.
2015 का ही एसेट क्वालिटी रिव्यु (ARC ) : जितने भी स्ट्रेस्ड अकाउंट हैं उनमें बड़े खिलाड़ियों का सेम्पल ऑडिट..जिससे अर्ली डिटेक्शन और बैंकों की कार्य प्रणाली पर नज़र रखी जा सके..
SSSA 2016 - इसमें बड़ी मछलियों की मिलीभगत पर नज़र रखी जा सकती है..किसको औकात से ज्यादा लोन मिल रहा है..वो उस लोन का क्या कर रहा है..किस एवज में उसको ये लोन मिला है ये सब यहां चेक पॉइंट लगा के देखा जा सकता है.
इन सबके अलावा Pubic ARC vs. Private ARC – 2017 और Bad Banks के आर्थिक सुधारों की बात भी इस साल के इकनोमिक सर्वे में सरकार ने रखी है..
इस सब को पढ़ के इतना तो समझ आता है कि चीजें कैसे चलती रहीं थी और कैसे चल रही हैं..इतनी जानकारी अगर पहले जुटा लेते तो नोटबंदी समझने के लिए एक अलग पर्सपेक्टिव भी मिलता..बैंकों का री-कैपिटलिजेशन क्यों जरूरी था ये भी समझ आता..कैसे कैसे टाइम बम इकॉनमी में लगा के रखे गए थे वो पकड़ में ही नहीं आते अगर एसेट क्वालिटी रिव्यु इस सरकार ने नहीं initiate किया होता..
सब कुछ एक दुसरे से जुड़ा हुआ प्रतीत ही होता है...बैंकिंग कोलैप्स होती तो ब्याज दरें कहाँ जाती..मंहगाई का क्या हाल होता..बिजनेस एनवायरनमेंट पे क्या असर पड़ता..ये सब integrate करके सोचा जा सकता है...इतना डिटेल में लिखने के लिए डिटेल में पढ़ना भी पड़ा है..और पढ़ के ये समझ आया..कि outrage बहुत आसान है..एक लाइन का जोक मारना बहुत आसान है..लेकिन जो चेलेंज मोदी जी फेस कर रहे है जो लड़ाई वो लड़ रहा है इस भ्रष्ट सिस्टम से वो इस देश की वास्तविक लड़ाई है.
पीएम मोदीजी ने संसद में घोषणा की है कि उनकी सरकार में बैंक द्वारा एक भी ऐसा लोन नहीं दिया जिससे एक रुपये का भी एनपीए बना हो।
मार्च 2014 में ही एनपीए जहां 2,04,249 करोड़ रुपये था। वहीं जून 2017 में बढ़कर ये 8,29,338 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। क्योंकि इसे के साथ 3rd पार्टी ऑडिट भी कराना जरूरी हो गया जिसे एक्चुअल अमाउंट का पता चला ।
देश के तमाम बैंक किस कदर एनपीए के जाल में उलझे हैं। इसे देश के 25 बैंकों के एनपीए से समझा जा सकता है।
भारतीय स्टेट बैंक 1,88,068 करोड
पंजाब नेशनल बैंक 57,721
बैंक ऑफ इंडिया 51,019 करोड
आईडीबीआई बैंक 50,173 करोड
बैंक ऑफ बड़ौदा 46,173 करोड
आईसीआईसीआई बैंक 43,148 करोड
केनरा बैंक 37,658. करोड
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया 37,286 करोड
इंडियन ओवरसीज बैंक 35,453 करोड
सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया 31,398 करोड
यूको बैंक 25,054 करोड
ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स 24,409 करोड
एक्सिस बैंक लिमिटेड 22,031 करोड
कॉरपोरेशन बैंक 21,713 करोड
इलाहाबाद बैंक 21,032 करोड
सिंडिकेट बैंक 20,184 करोड
आंध्रा बैंक 19,428 करोड
बैंक ऑफ महाराष्ट्र 18,049 करोड
देना बैंक 12,994 करोड
यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया 12,165 करोड
इंडियन बैंक 9,653 करोड
एचडीएफसी बैंक 7,243 करोड
विजया बैंक 6,812 करोड
पंजाब और सिंध बैंक 6,693 करोड
जम्मू व कश्मीर बैंक 5,641 करोड
25 बैंकों की ये लिस्ट बताती है कि जनता का पैसा कोंग्रेस सरकार में कैसे लोन के तौर पर रईसों में बांटा गया ।
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