***क्रोध का मनोविज्ञान***
**********************
क्रोध का मनोविज्ञान है कि तुम कुछ चाहते थे और किसी ने तुम्हें वह पाने से रोक दिया।
कोई राह का रोड़ा बन गया,एक रुकावट के रूप में।
तुम्हारी पूरी उर्जा कुछ पाने जा रही था और किसी ने उर्जा को रोक दिया।
तुम जो चाहते थे, नहीं पा सके।
अब यह कुंठित उर्जा क्रोध बन जाती है...
क्रोध उस व्यक्ति के विरुद्ध जिसने तुम्हारी आकांक्षा के पूर्ण होने की सम्भावना को नष्ट कर दिया हो।
तुम क्रोध को नहीं रोक सकते क्योंकि क्रोध एक उपोत्पाद,
एक बाइप्रोडक्ट है।
लेकिन तुम कुछ और कर सकते हो जिससे यह बाइप्रोडक्ट फिर पैदा न हो।
जीवन में, एक बात याद रखो:
किसी भी वस्तु की चाहत इतनी तीव्रता से न करो कि यह तुम्हारे जीवन-मरण का प्रश्न बन जाए।
थोड़े हल्के-फुल्के, खेलपूर्ण बनो।
मैं नहीं कहता कि तुम इच्छा मत करो-
क्योंकि यह तुम्हारे भीतर एक दमन बनेगा।
मैं कह रहा हूं, इच्छा करो लेकिन तुम्हारी इच्छा खेलपूर्ण हो।
यदि तुम इसे पा सको, अच्छा है।
यदि तुम इसे नहीं पा सके,
शायद यह सही समय नहीं था;
हम इसे अगली बार देखेंगे।
खेल की कुछ कला सीखो।
हम आकांक्षा से इतने एकाकार हो गए हैं कि जब इसमें रोड़े अटकाए जाते हैं
या इसे रोका जाता है, हमारी अपनी उर्जा आग बन जाती है;
यह तुम्हें ही जला देती है।
और लगभग पागलपन की उस दशा में तुम कुछ नहीं कर सकते हो, जिसके लिए तुम पश्चात्ताप कर रहे हो। यह घटनाओं की एक श्रृंखला पैदा कर देती है कि तुम्हारा पूरा जीवन उसमें संलग्न हो जाता है।
इसके कारण, हजारों वर्षों से लोग कहते रहे हैं,
'आकांक्षा रहित हो जाओ।'
अब इसकी मांग करना कुछ अमानवीय हो जाता है।
यहां तक कि जिन लोगों ने कहा,
'इच्छा रहित हो जाओ।' उन्होंने भी तुम्हें एक उद्देश्य,
एक आकांक्षा दे दिया:
यदि तुम आकांक्षा रहित हो जाओ तो तुम मोक्ष की,
निर्वाण की परम स्वतंत्रता को उपलब्ध हो जाओगे।
वह भी एक इच्छा है।
तुम अपनी आकांक्षा को कुछ बड़ी आकांक्षा के लिए दबा सकते हो,
और तुम भूल भी सकते हो कि तुम अब भी वही व्यक्ति हो।
तुमने केवल अपना लक्ष्य बदल दिया है। निश्चित ही,
बहुत लोग नहीं हैं जो मोक्ष पाने का प्रयास कर रहे हैं,
इसलिए तुम्हें बहुत बड़ी प्रतियोगिता का सामना नहीं करना होगा, वास्तव में लोग बहुत प्रसन्न होंगे कि तुमने मोक्ष की ओर जाना शुरु कर दिया है-
जीवन का एक प्रतियोगी कम हुआ।
लेकिन जहां तक तुम्हारा सवाल है,
कुछ नहीं बदला है।
और यदि कुछ भी किया जाए जो तुम्हारी मोक्ष की आकांक्षा को बाधा दे,
फिर तुम्हारा निरहंकरिता प्रज्वलित हो उठेगा।
और इस बार यह अधिक बड़ा होगा, क्योंकि अब तुम्हारी आकांक्षा अधिक बड़ी होगी।
क्रोध हमेशा आकांक्षा के अनुपात में होता है।
मैने सुना है....�
जंगल में बहुत पास-पास तीन मठ थे- ईसाई मठ।
एक दिन चौराहे पर तीन साधु मिले।
वे गांवों से अपने मठ वापस आ रहे थे; प्रत्येक अलग मठ से संबंधित थे।
वे थके हुए थे।
वे पेड़ के नीचे बैठ गए और समय बिताने के लिए कुछ बात करने लगे।
एक आदमी ने कहा,
'एक बात तुम्हें स्वीकार करनी होगी कि जहां तक विद्वत्ता का संबंध है,
शिक्षा का संबंध है,
हमारा मठ सबसे अच्छा है।
दूसरे साधु ने कहा,
'मैं सहमत हूं, यह सच है।
तुम्हारे लोग ज्यादा पढ़ने वाले हैं,
परंतु जहां तक तपस्या का संबंध है,
अनुशासन का संबंध है,
आध्यात्मिक ट्रेनिंग का संबंध है,
तुम हमारे मठ के कहीं पास तक नहीं आते हो। और याद रखना,
शिक्षा तुम्हें सत्य के अनुभव करने में सहयोगी नहीं होगी।
यह केवल आध्यात्मिक अनुशासन है,
और जहां तक आध्यात्मिक अनुशासन का संबंध है,
हम सबसे अच्छे हैं।
तीसरे साधु ने कहा,
'तुम दोनों ठीक हो।
पहला मठ शिक्षा में, स्कालरशिप में सबसे अच्छा है,
दूसरा मठ आध्यात्मिक अनुशासन, तपस्या, उपवास में सबसे अच्छा है।
लेकिन जहां तक शील, निरहंकारिता का संबंध है, हम सबसे ऊंचे हैं।'
शील, निरहंकारिता...लेकिन वह व्यक्ति जो कह रहा है,
उससे पूरी तरह बेहोश लग रहा है:
'जहां तक शील, निरहंकरिता का संबंध है, हम सबसे ऊंचे हैं।'
यहां तक कि शील भी एक अहंकार की यात्रा बन सकता है। निरहंकरिता भी अहंकार की यात्रा बन सकता है। बहुत सजग रहने के आवश्यकता है।
तुम्हें निरहंकरिता को रोकने का प्रयास नहीं करना चाहिए।
तुम्हें किसी भी तरह निरहंकरिता को रोकना नहीं चाहिए,
अन्यथा यह तुम्हें जला देगा,
तुम्हें नष्ट कर देगा।
मैं कह रहा हूं कि:
तुम्हें जड़ों तक जाना है। इसकी जड़ में है कोई आकांक्षा जिसे रोका गया है,
और उसकी निराशा ने निरहंकरिता पैदा किया।
आकांक्षा को बहुत गंभीरता से मत लो।
किसी चीज को गंभीरता से मत लो।
यह दुर्भाग्यपूर्ण रहा है कि दुनिया के किसी धर्म ने विनोद-भाव, सेन्स आफ ह्यूमर को धार्मिक व्यक्ति के एक बुनियादी गुण के रूप में स्वीकार नहीं किया है।
मैं तुम्हें समझाना चाहता हूं कि प्लेफुलनेस, विनोद-भाव मूलभूत गुण होने चाहिए।
तुम्हें चीजों को इतनी गंभीरता से नहीं लेना चाहिए,
तब निरहंकरिता पैदा नहीं होगा।
तुम पूरे घटना-क्रम पर बस हंसते हो।
तुम अपने-आप पर हंसना शुरू कर सकते हो।
तुम उन परिस्थितियों पर हंसना शुरू कर सकते सक हो जिनमें तुम साधारणतया क्रोधित और पागल हो जाते।
विनोद-भाव और हंसी का उपयोग करो।
यह बड़ी दुनिया है,
और यहां लाखों लोग हैं।
हर व्यक्ति कुछ पाने का प्रयत्न कर रहा है।
यह बहुत स्वाभाविक है कि कभी लोग एक दूसरे के रास्ते में आ जाएं-
ऐसा नहीं कि जानबूझ कर,
यह मात्र परिस्थितिवश,
संयोगवश हो सकता है।
मैंने एक सूफी मिस्टिक, जुन्नैद के बारे में सुना है,
जो प्रतिदिन सायं की प्रार्थना में अस्तित्व को उसकी करुणा,
उसके प्रेम, उसकी देख-भाल के लिए धन्यवाद दिया करता था।
एक बार ऐसी घटना हुई कि तीन दिन तक वे यात्रा करते रहे और उन गांवो से गुजरे जहां लोग जुन्नैद के अधिक विरोध में थे,
क्योंकि उनका सोचना था कि उसकी शिक्षाएं ठीक मुहम्मद की शिक्षाओं की तरह नहीं थीं।
उसकी शिक्षाएं उसकी खुद की मालूम पड़ती थी,
और, 'वह लोगों को भ्रष्ट करता है।'
इसलिए तीन गांवों से उन्हें कोई भोजन नहीं मिला,
यहां तक कि पानी भी नहीं।
तीसरे दिन वे वास्तव में बुरी दशा में थे।
उसके शिष्य सोच रहे थे,
'अब हम देखें प्रार्थना में क्या घटता है।
अब वह अस्तित्व से कैसे कह सकता है,
'तुम हम पर मेहरबान हो;
तुम्हारा प्रेम हमारे पर है,
और हम तुम्हारे आभारी हैं।'
और जब प्रार्थना का समय आया,
जुन्नैद ने उसी तरह प्रार्थना की।
प्रार्थना के बाद अनुयायियों ने कहा,
'यह बहुत ज्यादा हो गया।
तीन दिनों से हम भूख, प्यास से परेशान हैं।
हम थके हुए हैं, हम सोए नहीं हैं,
और तब भी तुम अस्तित्व से कह रहे हो,
'तुम करुणावान हो,
हमारे प्रति तुम्हारा प्रेम महान है,
और तुम इतनी देख-भाल रखते हो कि हम तुम्हारे आभारी हैं।'
जुन्नैद ने कहा,
'मेरी प्रार्थना किसी शर्त पर आधारित नहीं है;
वे सब बातें बहुत साधारण हैं।
मुझे भोजन मिलता है कि नहीं मिलता है,
इसके लिए मैं अस्तित्व को परेशान नहीं करना चाहता-
इतने बड़े अस्तित्व में इतनी छोटी चीज।
यदि मुझे पानी भी न मिले...
यदि मैं मर भी जाऊं,
तो कोई बात नहीं,
मेरी प्रार्थना वही होगी। क्योंकि इतना बड़ा अस्तित्व...
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि जुन्नैद जिंदा है अथवा मर गया है।'
मेरे कहने का अर्थ यही है जब मैं कहता हूं, किसी चीज को गंभीरता से मत लो...स्वयं को भी नहीं।
और तब तुम देखोगे कि क्रोध नहीं होगा।
क्रोध के होने की कोई संभावना नहीं रही।
और क्रोध निश्चित रूप से आध्यात्मिक ऊर्जा का सबसे बड़ा रिसाव है।
यदि तुम अपनी आकांक्षाओं के प्रति प्लेफुल होना सीख सको,
और हमेशा समान रहो,
सफल होओ अथवा असफल।
बहुत सहजता से अपने बारे में सोचना शुरु करो: कुछ विशेष नहीं;
नहीं कि तुम जीतने के लिए हो,
नहीं कि तुम हमेशा हर स्थिति में सफल होने को हो।
यह बड़ी दुनिया है
और हम बहुत छोटे लोग हैं।
एक बार यह तुम्हारे अस्तित्व में समाहित हो जाए
तब सब कुछ स्वीकृत हो सकेगा।
क्रोध विदा हो जाएगा,
और उसका विदा होना एक नया आश्चर्य लाएगा,
क्योंकि जब क्रोध विदा होगा,
उसके पीछे करुणा की,
प्रेम की और मित्रता की एक अपरिसीम ऊर्जा छूट जाती है।
ओशो
**********************
क्रोध का मनोविज्ञान है कि तुम कुछ चाहते थे और किसी ने तुम्हें वह पाने से रोक दिया।
कोई राह का रोड़ा बन गया,एक रुकावट के रूप में।
तुम्हारी पूरी उर्जा कुछ पाने जा रही था और किसी ने उर्जा को रोक दिया।
तुम जो चाहते थे, नहीं पा सके।
अब यह कुंठित उर्जा क्रोध बन जाती है...
क्रोध उस व्यक्ति के विरुद्ध जिसने तुम्हारी आकांक्षा के पूर्ण होने की सम्भावना को नष्ट कर दिया हो।
तुम क्रोध को नहीं रोक सकते क्योंकि क्रोध एक उपोत्पाद,
एक बाइप्रोडक्ट है।
लेकिन तुम कुछ और कर सकते हो जिससे यह बाइप्रोडक्ट फिर पैदा न हो।
जीवन में, एक बात याद रखो:
किसी भी वस्तु की चाहत इतनी तीव्रता से न करो कि यह तुम्हारे जीवन-मरण का प्रश्न बन जाए।
थोड़े हल्के-फुल्के, खेलपूर्ण बनो।
मैं नहीं कहता कि तुम इच्छा मत करो-
क्योंकि यह तुम्हारे भीतर एक दमन बनेगा।
मैं कह रहा हूं, इच्छा करो लेकिन तुम्हारी इच्छा खेलपूर्ण हो।
यदि तुम इसे पा सको, अच्छा है।
यदि तुम इसे नहीं पा सके,
शायद यह सही समय नहीं था;
हम इसे अगली बार देखेंगे।
खेल की कुछ कला सीखो।
हम आकांक्षा से इतने एकाकार हो गए हैं कि जब इसमें रोड़े अटकाए जाते हैं
या इसे रोका जाता है, हमारी अपनी उर्जा आग बन जाती है;
यह तुम्हें ही जला देती है।
और लगभग पागलपन की उस दशा में तुम कुछ नहीं कर सकते हो, जिसके लिए तुम पश्चात्ताप कर रहे हो। यह घटनाओं की एक श्रृंखला पैदा कर देती है कि तुम्हारा पूरा जीवन उसमें संलग्न हो जाता है।
इसके कारण, हजारों वर्षों से लोग कहते रहे हैं,
'आकांक्षा रहित हो जाओ।'
अब इसकी मांग करना कुछ अमानवीय हो जाता है।
यहां तक कि जिन लोगों ने कहा,
'इच्छा रहित हो जाओ।' उन्होंने भी तुम्हें एक उद्देश्य,
एक आकांक्षा दे दिया:
यदि तुम आकांक्षा रहित हो जाओ तो तुम मोक्ष की,
निर्वाण की परम स्वतंत्रता को उपलब्ध हो जाओगे।
वह भी एक इच्छा है।
तुम अपनी आकांक्षा को कुछ बड़ी आकांक्षा के लिए दबा सकते हो,
और तुम भूल भी सकते हो कि तुम अब भी वही व्यक्ति हो।
तुमने केवल अपना लक्ष्य बदल दिया है। निश्चित ही,
बहुत लोग नहीं हैं जो मोक्ष पाने का प्रयास कर रहे हैं,
इसलिए तुम्हें बहुत बड़ी प्रतियोगिता का सामना नहीं करना होगा, वास्तव में लोग बहुत प्रसन्न होंगे कि तुमने मोक्ष की ओर जाना शुरु कर दिया है-
जीवन का एक प्रतियोगी कम हुआ।
लेकिन जहां तक तुम्हारा सवाल है,
कुछ नहीं बदला है।
और यदि कुछ भी किया जाए जो तुम्हारी मोक्ष की आकांक्षा को बाधा दे,
फिर तुम्हारा निरहंकरिता प्रज्वलित हो उठेगा।
और इस बार यह अधिक बड़ा होगा, क्योंकि अब तुम्हारी आकांक्षा अधिक बड़ी होगी।
क्रोध हमेशा आकांक्षा के अनुपात में होता है।
मैने सुना है....�
जंगल में बहुत पास-पास तीन मठ थे- ईसाई मठ।
एक दिन चौराहे पर तीन साधु मिले।
वे गांवों से अपने मठ वापस आ रहे थे; प्रत्येक अलग मठ से संबंधित थे।
वे थके हुए थे।
वे पेड़ के नीचे बैठ गए और समय बिताने के लिए कुछ बात करने लगे।
एक आदमी ने कहा,
'एक बात तुम्हें स्वीकार करनी होगी कि जहां तक विद्वत्ता का संबंध है,
शिक्षा का संबंध है,
हमारा मठ सबसे अच्छा है।
दूसरे साधु ने कहा,
'मैं सहमत हूं, यह सच है।
तुम्हारे लोग ज्यादा पढ़ने वाले हैं,
परंतु जहां तक तपस्या का संबंध है,
अनुशासन का संबंध है,
आध्यात्मिक ट्रेनिंग का संबंध है,
तुम हमारे मठ के कहीं पास तक नहीं आते हो। और याद रखना,
शिक्षा तुम्हें सत्य के अनुभव करने में सहयोगी नहीं होगी।
यह केवल आध्यात्मिक अनुशासन है,
और जहां तक आध्यात्मिक अनुशासन का संबंध है,
हम सबसे अच्छे हैं।
तीसरे साधु ने कहा,
'तुम दोनों ठीक हो।
पहला मठ शिक्षा में, स्कालरशिप में सबसे अच्छा है,
दूसरा मठ आध्यात्मिक अनुशासन, तपस्या, उपवास में सबसे अच्छा है।
लेकिन जहां तक शील, निरहंकारिता का संबंध है, हम सबसे ऊंचे हैं।'
शील, निरहंकारिता...लेकिन वह व्यक्ति जो कह रहा है,
उससे पूरी तरह बेहोश लग रहा है:
'जहां तक शील, निरहंकरिता का संबंध है, हम सबसे ऊंचे हैं।'
यहां तक कि शील भी एक अहंकार की यात्रा बन सकता है। निरहंकरिता भी अहंकार की यात्रा बन सकता है। बहुत सजग रहने के आवश्यकता है।
तुम्हें निरहंकरिता को रोकने का प्रयास नहीं करना चाहिए।
तुम्हें किसी भी तरह निरहंकरिता को रोकना नहीं चाहिए,
अन्यथा यह तुम्हें जला देगा,
तुम्हें नष्ट कर देगा।
मैं कह रहा हूं कि:
तुम्हें जड़ों तक जाना है। इसकी जड़ में है कोई आकांक्षा जिसे रोका गया है,
और उसकी निराशा ने निरहंकरिता पैदा किया।
आकांक्षा को बहुत गंभीरता से मत लो।
किसी चीज को गंभीरता से मत लो।
यह दुर्भाग्यपूर्ण रहा है कि दुनिया के किसी धर्म ने विनोद-भाव, सेन्स आफ ह्यूमर को धार्मिक व्यक्ति के एक बुनियादी गुण के रूप में स्वीकार नहीं किया है।
मैं तुम्हें समझाना चाहता हूं कि प्लेफुलनेस, विनोद-भाव मूलभूत गुण होने चाहिए।
तुम्हें चीजों को इतनी गंभीरता से नहीं लेना चाहिए,
तब निरहंकरिता पैदा नहीं होगा।
तुम पूरे घटना-क्रम पर बस हंसते हो।
तुम अपने-आप पर हंसना शुरू कर सकते हो।
तुम उन परिस्थितियों पर हंसना शुरू कर सकते सक हो जिनमें तुम साधारणतया क्रोधित और पागल हो जाते।
विनोद-भाव और हंसी का उपयोग करो।
यह बड़ी दुनिया है,
और यहां लाखों लोग हैं।
हर व्यक्ति कुछ पाने का प्रयत्न कर रहा है।
यह बहुत स्वाभाविक है कि कभी लोग एक दूसरे के रास्ते में आ जाएं-
ऐसा नहीं कि जानबूझ कर,
यह मात्र परिस्थितिवश,
संयोगवश हो सकता है।
मैंने एक सूफी मिस्टिक, जुन्नैद के बारे में सुना है,
जो प्रतिदिन सायं की प्रार्थना में अस्तित्व को उसकी करुणा,
उसके प्रेम, उसकी देख-भाल के लिए धन्यवाद दिया करता था।
एक बार ऐसी घटना हुई कि तीन दिन तक वे यात्रा करते रहे और उन गांवो से गुजरे जहां लोग जुन्नैद के अधिक विरोध में थे,
क्योंकि उनका सोचना था कि उसकी शिक्षाएं ठीक मुहम्मद की शिक्षाओं की तरह नहीं थीं।
उसकी शिक्षाएं उसकी खुद की मालूम पड़ती थी,
और, 'वह लोगों को भ्रष्ट करता है।'
इसलिए तीन गांवों से उन्हें कोई भोजन नहीं मिला,
यहां तक कि पानी भी नहीं।
तीसरे दिन वे वास्तव में बुरी दशा में थे।
उसके शिष्य सोच रहे थे,
'अब हम देखें प्रार्थना में क्या घटता है।
अब वह अस्तित्व से कैसे कह सकता है,
'तुम हम पर मेहरबान हो;
तुम्हारा प्रेम हमारे पर है,
और हम तुम्हारे आभारी हैं।'
और जब प्रार्थना का समय आया,
जुन्नैद ने उसी तरह प्रार्थना की।
प्रार्थना के बाद अनुयायियों ने कहा,
'यह बहुत ज्यादा हो गया।
तीन दिनों से हम भूख, प्यास से परेशान हैं।
हम थके हुए हैं, हम सोए नहीं हैं,
और तब भी तुम अस्तित्व से कह रहे हो,
'तुम करुणावान हो,
हमारे प्रति तुम्हारा प्रेम महान है,
और तुम इतनी देख-भाल रखते हो कि हम तुम्हारे आभारी हैं।'
जुन्नैद ने कहा,
'मेरी प्रार्थना किसी शर्त पर आधारित नहीं है;
वे सब बातें बहुत साधारण हैं।
मुझे भोजन मिलता है कि नहीं मिलता है,
इसके लिए मैं अस्तित्व को परेशान नहीं करना चाहता-
इतने बड़े अस्तित्व में इतनी छोटी चीज।
यदि मुझे पानी भी न मिले...
यदि मैं मर भी जाऊं,
तो कोई बात नहीं,
मेरी प्रार्थना वही होगी। क्योंकि इतना बड़ा अस्तित्व...
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि जुन्नैद जिंदा है अथवा मर गया है।'
मेरे कहने का अर्थ यही है जब मैं कहता हूं, किसी चीज को गंभीरता से मत लो...स्वयं को भी नहीं।
और तब तुम देखोगे कि क्रोध नहीं होगा।
क्रोध के होने की कोई संभावना नहीं रही।
और क्रोध निश्चित रूप से आध्यात्मिक ऊर्जा का सबसे बड़ा रिसाव है।
यदि तुम अपनी आकांक्षाओं के प्रति प्लेफुल होना सीख सको,
और हमेशा समान रहो,
सफल होओ अथवा असफल।
बहुत सहजता से अपने बारे में सोचना शुरु करो: कुछ विशेष नहीं;
नहीं कि तुम जीतने के लिए हो,
नहीं कि तुम हमेशा हर स्थिति में सफल होने को हो।
यह बड़ी दुनिया है
और हम बहुत छोटे लोग हैं।
एक बार यह तुम्हारे अस्तित्व में समाहित हो जाए
तब सब कुछ स्वीकृत हो सकेगा।
क्रोध विदा हो जाएगा,
और उसका विदा होना एक नया आश्चर्य लाएगा,
क्योंकि जब क्रोध विदा होगा,
उसके पीछे करुणा की,
प्रेम की और मित्रता की एक अपरिसीम ऊर्जा छूट जाती है।
ओशो
Comments
chuyển phát hỏa tốc đi Belize
ship cấp tốc tới Mali
ship chứng từ đi Chad