इंसाफ बिकता है,बोलो खरीदोगे क्या ? जान,इज्जत हमारी सस्ती है,बोलो दाव पर लगाओ गे क्या ?
आज आसिफा गेंग रेप को 3 महीने गुजर जाने के बाद उस मासूम बच्ची के घटना पर जिस तरह से राजनैतिक चल रहा है,वह कोई नही नई बात नही है।निर्भया केस में भी सभी ने देखा होगा हमारी क़ानून व्यवस्था किस प्रकार की है।आज में जब इस घटनाक्रम को देख रहा हूं, तो सवाल मन मे बार बार यही आता है,की किसी को उसके गुनाह के लिये जेल में रखा जाना तो समज में आता है।लेकिन जब 11 साल के बाद पता चलता है,की वह व्यक्ति गुन्हेगार नही है,और सबूत के अभाव में उसे आज़ाद कर दिया जाता है।पोलिस ने चार्जसीट पेश किया और जिसे हम इंसाफ की देवी मानते है,वह अगर आँख पर इसी तरह पट्टी बांधकर चुप तमाशा दिखती ही रहने का काम कर रही है,तो फ़िर क्यू जनता कानून व्यवस्था पर विश्वास करें।और इंसाफ के लिये क्यू इतना बड़ा इंतेजार करे।शायद सब ने अपने मन मे ही यही सोच कर इस तरह का अपराध को अंजाम देते है,जैसा उन्नव में हुवा या कठुआ में हुवा।अगर सजा देना है,तो उन पुलिस अधिकारियों को भी दो जिसने सब से पहले इस जघन्य अपराध को छुपा कर रखा।और उस जज साहेब को भी सजा मिलनी चाहिये।जिसने बिना सोचे उस पर इस तरह का न्याय किया।

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