साक्षी की साधना - भाग - 19
साक्षी की दूसरी स्थिति है प्रेम। जब हम अपने प्रेमी या प्रेमिका की आंखों में झांकते हैं, तब हम अचानक वर्तमान में आ खड़े होते हैं। न तो भविष्य की किसी योजना का विचार करते हैं और न ही अतीत की किसी स्मृति में डोलते हैं। यानी सोच-विचार बंद हो जाता है। और जैसे ही सोच-विचार बंद होता है, हम साक्षी हो जाते हैं। सोच-विचार इसलिए चलता रहता है क्योंकि हमारा साक्षी अनुपस्थित रहता है।
तभी तो प्रेम में जीना इतना आनंदपूर्ण हो जाता है, कि चलते-फिरते, उठते - बैठते, हर समय प्रेमी का चेहरा आंखों के सामने से हटता ही नहीं है। और रह-रह कर उसकी याद सताने लगती है। यही कारण है कि हम अपने प्रेमी को खोना नहीं चाहते, हर वक्त यही भय बना रहता है कि कहीं वह हमसे दूर न चला जाए, या कि वह किसी दूसरे की ओर आकर्षित न हो जाए।
क्या घटता है प्रेमी की आंखों में झांकते समय, कि हम साक्षी में स्थापित हो जाते हैं ?
जब हम अपने प्रेमी की आंखों में झांकते हैं, तब हम वर्तमान में आ जाते हैं और हमारा सोच-विचार बंद हो जाता है। हमारी श्वास गहरी हो जाती है। दिल जोर-जोर से धड़कने लगता है। शरीर में कंपकंपी सी छूट जाती है। और मुंह से कोई भी शब्द नहीं फूटते हैं।
दिल तो चौबीसों घंटे धड़क रहा है, लेकिन हम सोच-विचार में इतने उलझे रहते हैं कि हमारा ध्यान उस पर जाता ही नहीं है। प्रेमी के सामने जैसे ही सोच-विचार रूकता है, हम साक्षी हो जाते हैं, या कहें कि हम बोध से भर जाते हैं, और हमें अपने दिल की धड़कनें सुनाई पड़ने लगती है।
सोच-विचार हमारे शरीर को तनाव से भर देता है। सो शरीर शिथिल हो विश्राम में नहीं जा पाता है। क्योंकि मन में जो भी विचार आता है, शरीर उसको क्रिया में परिवर्तित करने लगता है। यदि मन में कामवासना का विचार आया, तो शरीर गहरी-गहरी श्वास लेकर उर्जा को कामकेंद्र पर भेजते हुए कामवासना में उतरने की तैयारी शुरू कर देता है, जबकि दूसरा यहां मौजूद ही नहीं है।
क्रोध में भी यही होता है। शत्रु का विचार आते ही शरीर गहरी-गहरी श्वास लेकर उर्जा को उपर उठाता है, परिणाम स्वरूप मुठ्ठियां बंध जाती है, जबड़े भींच जाते हैं, पैर लात मारने को उतावले हो उठते हैं, जबकि शत्रु यहां है ही नहीं। अतः हमारा शरीर मन में उठे भाव और विचारों को सतत क्रिया में परिवर्तित करते रहने के कारण हमेशा तनावपूर्ण बना रहता है।
शरीर किसी भाषा को नहीं जानता, किसी नैतिकता का विचार नहीं करता, वह तो अपने स्वभाव में जीते हुए मन में उठने वाले भाव और विचार से ही संचालित होता है। सारे उपद्रव मन ही खड़े करता है। मन को हम शरीर से अलग नहीं कर सकते, वह शरीर का ही दूसरा छोर है, और एक छोर, दूसरे छोर का अनुगमन करता है।
प्रेमी की आंखों में झांकते समय जैसे ही हम साक्षी होते हैं, और हमारा सोच-विचार बंद हो जाता है, शरीर के पास कोई भाव या विचार नहीं होता जिसे वह क्रिया में परिवर्तित कर सके। अतः शरीर से तनाव हट जाता है, श्वास गहरी हो जाती है और वह शिथिल हो विश्राम में जाने लगता है।
यहां एक बात यह घटती है कि शरीर के विश्राम में जाते ही तनाव के कारण जो श्वास छाती तक आकर वापस लौट जाती थी, वही श्वास नाभि तक पहुंचाने लगती है। और श्वास जब नाभि तक पहुंचती है तो फेफड़े पूरी तरह से श्वास से भर जाते हैं।
फेफड़े ह्रदय को रक्त द्वारा आक्सीजन पहुंचाते हैं और कार्बन डाई आक्साइड को बाहर भेजने का काम करते हैं। फेफड़ों में ज्यादा श्वास आने पर ह्दय को भी ज्यादा काम करना पड़ता है अतः दिल की धड़कनें और भी जोर से सुनाई पड़ती है। साथ ही आक्सीजन की मात्रा बढ़ने लगती है जो हमें और भी ताजगी से भर देती है।तथा सोच-विचार में जो उर्जा खर्च हो रही थी, वह उर्जा भी साक्षी की ओर बहना शुरू हो जाती है जो हमारे साक्षी को और भी प्रगाढ़ करना शुरू कर देती है, फलस्वरूप हम और भी प्रेम और आनंद से भर उठते हैं।
दूसरी घटना यहां यह घटना है, कि सतत देखते रहने और पुतलियों के सतत गति करने पर हमारी आंखों से बहुत सारी उर्जा बाहर की ओर जाती रहती है। जो हमें तनाव और थकान से भर देती है। तभी तो ज्यादा देर तक टीवी या फिल्म देखने पर हम थकान और सुस्ती अनुभव करते हैं।
प्रेमी की आंखों में झांकते समय हमारी आंखों में कोई गति नहीं होती,क्योंकि गति विचार से आती है जब निर्विचार से आंखे ठहर जाती है और आंखों के ठहरते ही हमारी उर्जा वापस एक - दूसरे पर लौट आती है अतः हमारी उर्जा खोती नहीं और हम पुन:उर्जा से आपूरित हो उठते हैं।
यही बात दूसरी ओर से भी घटित हो सकती है। यदि प्रेमी के सामने वर्तमान में उपस्थित होने पर सोच-विचार रूकता है, और गहरी श्वास से शरीर शिथिल हो विश्राम में चला जाता है, तो इसके उलट हम श्वास को गहरी और धीमी कर शरीर को शिथिल कर विश्राम में ले जाते हैं तो हमारा मन भी शिथिल हो विश्राम में चला जाता है। और जैसे ही मन विश्राम में गया कि सोच-विचार बंद हो जाता है और हम आसानी से साक्षी में स्थापित हो जाते हैं। यानी प्रेमी की आंखों में झांकने पर जो आनंद मिला, वह गहरी श्वास से शरीर के शिथिल होने से मिले निर्विचार के कारण साक्षी में प्रवेश का परिणाम था, और प्रेमी सिर्फ माध्यम बना था? अर्थात प्रेमी के बिना भी, या कि बिना प्रेम में जाए भी हम उस स्थिति को उपलब्ध हो साक्षी में प्रवेश कर सकते हैं।
Osho
साक्षी की दूसरी स्थिति है प्रेम। जब हम अपने प्रेमी या प्रेमिका की आंखों में झांकते हैं, तब हम अचानक वर्तमान में आ खड़े होते हैं। न तो भविष्य की किसी योजना का विचार करते हैं और न ही अतीत की किसी स्मृति में डोलते हैं। यानी सोच-विचार बंद हो जाता है। और जैसे ही सोच-विचार बंद होता है, हम साक्षी हो जाते हैं। सोच-विचार इसलिए चलता रहता है क्योंकि हमारा साक्षी अनुपस्थित रहता है।
तभी तो प्रेम में जीना इतना आनंदपूर्ण हो जाता है, कि चलते-फिरते, उठते - बैठते, हर समय प्रेमी का चेहरा आंखों के सामने से हटता ही नहीं है। और रह-रह कर उसकी याद सताने लगती है। यही कारण है कि हम अपने प्रेमी को खोना नहीं चाहते, हर वक्त यही भय बना रहता है कि कहीं वह हमसे दूर न चला जाए, या कि वह किसी दूसरे की ओर आकर्षित न हो जाए।
क्या घटता है प्रेमी की आंखों में झांकते समय, कि हम साक्षी में स्थापित हो जाते हैं ?
जब हम अपने प्रेमी की आंखों में झांकते हैं, तब हम वर्तमान में आ जाते हैं और हमारा सोच-विचार बंद हो जाता है। हमारी श्वास गहरी हो जाती है। दिल जोर-जोर से धड़कने लगता है। शरीर में कंपकंपी सी छूट जाती है। और मुंह से कोई भी शब्द नहीं फूटते हैं।
दिल तो चौबीसों घंटे धड़क रहा है, लेकिन हम सोच-विचार में इतने उलझे रहते हैं कि हमारा ध्यान उस पर जाता ही नहीं है। प्रेमी के सामने जैसे ही सोच-विचार रूकता है, हम साक्षी हो जाते हैं, या कहें कि हम बोध से भर जाते हैं, और हमें अपने दिल की धड़कनें सुनाई पड़ने लगती है।
सोच-विचार हमारे शरीर को तनाव से भर देता है। सो शरीर शिथिल हो विश्राम में नहीं जा पाता है। क्योंकि मन में जो भी विचार आता है, शरीर उसको क्रिया में परिवर्तित करने लगता है। यदि मन में कामवासना का विचार आया, तो शरीर गहरी-गहरी श्वास लेकर उर्जा को कामकेंद्र पर भेजते हुए कामवासना में उतरने की तैयारी शुरू कर देता है, जबकि दूसरा यहां मौजूद ही नहीं है।
क्रोध में भी यही होता है। शत्रु का विचार आते ही शरीर गहरी-गहरी श्वास लेकर उर्जा को उपर उठाता है, परिणाम स्वरूप मुठ्ठियां बंध जाती है, जबड़े भींच जाते हैं, पैर लात मारने को उतावले हो उठते हैं, जबकि शत्रु यहां है ही नहीं। अतः हमारा शरीर मन में उठे भाव और विचारों को सतत क्रिया में परिवर्तित करते रहने के कारण हमेशा तनावपूर्ण बना रहता है।
शरीर किसी भाषा को नहीं जानता, किसी नैतिकता का विचार नहीं करता, वह तो अपने स्वभाव में जीते हुए मन में उठने वाले भाव और विचार से ही संचालित होता है। सारे उपद्रव मन ही खड़े करता है। मन को हम शरीर से अलग नहीं कर सकते, वह शरीर का ही दूसरा छोर है, और एक छोर, दूसरे छोर का अनुगमन करता है।
प्रेमी की आंखों में झांकते समय जैसे ही हम साक्षी होते हैं, और हमारा सोच-विचार बंद हो जाता है, शरीर के पास कोई भाव या विचार नहीं होता जिसे वह क्रिया में परिवर्तित कर सके। अतः शरीर से तनाव हट जाता है, श्वास गहरी हो जाती है और वह शिथिल हो विश्राम में जाने लगता है।
यहां एक बात यह घटती है कि शरीर के विश्राम में जाते ही तनाव के कारण जो श्वास छाती तक आकर वापस लौट जाती थी, वही श्वास नाभि तक पहुंचाने लगती है। और श्वास जब नाभि तक पहुंचती है तो फेफड़े पूरी तरह से श्वास से भर जाते हैं।
फेफड़े ह्रदय को रक्त द्वारा आक्सीजन पहुंचाते हैं और कार्बन डाई आक्साइड को बाहर भेजने का काम करते हैं। फेफड़ों में ज्यादा श्वास आने पर ह्दय को भी ज्यादा काम करना पड़ता है अतः दिल की धड़कनें और भी जोर से सुनाई पड़ती है। साथ ही आक्सीजन की मात्रा बढ़ने लगती है जो हमें और भी ताजगी से भर देती है।तथा सोच-विचार में जो उर्जा खर्च हो रही थी, वह उर्जा भी साक्षी की ओर बहना शुरू हो जाती है जो हमारे साक्षी को और भी प्रगाढ़ करना शुरू कर देती है, फलस्वरूप हम और भी प्रेम और आनंद से भर उठते हैं।
दूसरी घटना यहां यह घटना है, कि सतत देखते रहने और पुतलियों के सतत गति करने पर हमारी आंखों से बहुत सारी उर्जा बाहर की ओर जाती रहती है। जो हमें तनाव और थकान से भर देती है। तभी तो ज्यादा देर तक टीवी या फिल्म देखने पर हम थकान और सुस्ती अनुभव करते हैं।
प्रेमी की आंखों में झांकते समय हमारी आंखों में कोई गति नहीं होती,क्योंकि गति विचार से आती है जब निर्विचार से आंखे ठहर जाती है और आंखों के ठहरते ही हमारी उर्जा वापस एक - दूसरे पर लौट आती है अतः हमारी उर्जा खोती नहीं और हम पुन:उर्जा से आपूरित हो उठते हैं।
यही बात दूसरी ओर से भी घटित हो सकती है। यदि प्रेमी के सामने वर्तमान में उपस्थित होने पर सोच-विचार रूकता है, और गहरी श्वास से शरीर शिथिल हो विश्राम में चला जाता है, तो इसके उलट हम श्वास को गहरी और धीमी कर शरीर को शिथिल कर विश्राम में ले जाते हैं तो हमारा मन भी शिथिल हो विश्राम में चला जाता है। और जैसे ही मन विश्राम में गया कि सोच-विचार बंद हो जाता है और हम आसानी से साक्षी में स्थापित हो जाते हैं। यानी प्रेमी की आंखों में झांकने पर जो आनंद मिला, वह गहरी श्वास से शरीर के शिथिल होने से मिले निर्विचार के कारण साक्षी में प्रवेश का परिणाम था, और प्रेमी सिर्फ माध्यम बना था? अर्थात प्रेमी के बिना भी, या कि बिना प्रेम में जाए भी हम उस स्थिति को उपलब्ध हो साक्षी में प्रवेश कर सकते हैं।
Osho
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