Osho : मृत्यु तो उसी दिन हो गई जिस दिन तुम जन्मे। अब छूटने का कोई उपाय नहीं। जिस दिन पैदा हुए उसी दिन मरना शुरू हो गए। अब एक कदम उठा लिया, अब दूसरा तो उठाना ही पड़ेगा। जैसे कि प्रत्यंचा से तीर निकल गया तो अब लौटाने का क्या उपाय है! जन्म हो गया, तो अब मौत से बचने का कोई उपाय नहीं।
जिस दिन तुम्हारी यह बात समझ में आ जाएगी कि मौत तो होनी ही है, सुनिश्चित होनी है-और सब अनिश्चित है, मौत ही निश्चित है—उसी दिन भय समाप्त हो जाएगा। जो होना ही है, उसका क्या भय! जो होकर ही रहनी है, उसका क्या भय! जिसको टाला ही नहीं जा सकता, उसका क्या भय! जिसको अन्यथा किया ही नहीं जा सकता, उसका क्या भय!
आशंका है तुम्हें
जिस दुर्घटना की
घट चुकी है वह
पहले ही भीतर
केवल आएगा तैरकर
गत आगत की सतह पर
हो चुका है पहले ही काम। मर गए तुम उसी दिन जिस दिन तुम जन्मे। जिस दिन तुमने सांस ली, उसी दिन सांस छूटने का उपाय हो गया। अब सांस किसी भी दिन छूटेगी। तुम सदा न रह सकोगे। इसलिए इस भय को समझने की कोशिश करो, बचने की आशा मत करो। बचने को तो कोई नहीं बच पाया। कितने लोगों ने कितने उपाय किए बचने के।
तुम पूछते हो, मृत्यु का बड़ा भय है, क्या इससे छूटने का कोई उपाय है?
छूटने का उपाय करते रहोगे, भय बढ़ता जाएगा। तुम छूटने का उपाय करोगे, मौत रोज करीब आ रही है। क्योंकि बुढ़ापा रोज करीब आ रहा है। तुम जितने ही उपाय करोगे उतने ही घबड़ाते जाओगे। मुझसे तुमने पूछा है, अगर मेरी बात समझ सको तो मैं तुमसे कहूंगा: मौत को स्वीकार कर लो, छूटने की बात ही छोड़ो। जो होना है, होना है। उसे तुम स्वीकार कर लो। उसे तुम इतने अंतरतम से स्वीकार लो कि उसके प्रति विरोध न रह जाए। वहीं भय समाप्त हो जाएगा।
मृत्यु से तो नहीं छूटा जा सकता, लेकिन मृत्यु के भय से छुटकारा हो सकता है। मृत्यु तो होगी, लेकिन भय आवश्यक नहीं है। भय तुमने पैदा किया है। वृक्ष तो भयभीत नहीं हैं, मौत उनकी भी होगी। क्योंकि उनके पास सोच-विचार की बुद्धि नहीं है। पशु तो चिंता में नहीं बैठे हैं, उदास नहीं बैठे हैं कि मौत हो जाएगी, मौत उनकी भी होगी।
मौत तो स्वाभाविक है। वृक्ष, पशु, पक्षी, आदमी, सभी मरेंगे। लेकिन सिर्फ आदमी भयभीत है। क्योंकि आदमी सोचता कि किसी तरह बचने का उपाय हो जाए। कोई रास्ता निकल आए।
तुम जब तक बचना चाहोगे तब तक भयभीत रहोगे। तुम्हारे बचने की आकांक्षा से ही भय पैदा हो रहा है। स्वीकार कर लो! मौत है, होनी है। तो जब होनी है हो जाएगी। और हर्जा क्या है? जन्म के पहले तुम नहीं थे, कोई तकलीफ थी? कभी इस तरह सोचो, जन्म के पहले तो तुम नहीं थे, कोई तकलीफ थी? मौत के बाद तुम फिर नहीं हो जाओगे। जो जन्म के पहले हालत थी, वही मौत के बाद हालत हो जाएगी। जब तक तुमने पहली सांस न ली थी, तब तक का तुम्हें कुछ याद है? कोई परेशानी है? कोई झंझट! ऐसे ही जब आखिरी सांस छूट जाएगी, उसके बाद भी क्या झंझट, क्या परेशानी!
सुकरात मरता था, किसी ने पूछा कि घबड़ा नहीं रहे आप? सुकरात ने कहा, घबड़ाना क्या है? या तो जैसा आस्तिक कहते हैं, आत्मा अमर है, तो घबड़ाने की कोई जरूरत ही नहीं! आत्मा अमर है तो क्या घबड़ाना! या जैसा कि नास्तिक कहते हैं, कि आत्मा मर जाती है, तो भी बात खतम हो गई। जब खतम ही हो गए तो घबड़ाना किसका! घबड़ाएगा कौन? बचे ही नहीं, तो न रहा बांस न बजेगी बांसुरी। तो सुकरात ने कहा दोनों हालत में-दोनों में से कोई ठीक होगा, और तो कोई उपाय नहीं है, या तो आस्तिक ठीक, या नास्तिक ठीक। आस्तिक ठीक, तो अमर हैं, बात खतम हुई, चिंता क्या करनी? नास्तिक ठीक तो बात खतम ही हो जानी है, चिंता किसको करनी है, किसकी करनी है? सुकरात ने कहा, इसलिए हम निश्चिंत हैं। जो भी होगा, ठीक है।
तुम बचने की कोशिश न करो। मौत तो होगी। लेकिन तुमसे मैं कहना चाहता हूं, मौत तुम्हारी नहीं होगी। तुम्हारा जन्म ही नहीं हुआ तो तुम्हारी मौत कैसे होगी? शरीर का जन्म हुआ है, शरीर की मौत होगी। तुम्हारा चैतन्य अजन्मा है और अमृतधर्मा है।
शरीर तो रोज मर रहा है। शरीर की तो प्रक्रिया मृत्यु है। इस शरीर के पार एक चैतन्य की दशा है, मगर उसका तुम्हें कुछ पता नहीं। तुम वही हो और तुम्हें उसका पता नहीं। तुम्हें आत्मस्मरण नहीं।
यह मत पूछो कि मौत के लिए हम क्या करें? इतना ही पूछो कि हमारे भीतर शरीर के पार जो है, उसे जानने के लिए क्या करें? मृत्यु से बचने की मत पूछो, ध्यान में जागने की पूछो। अगर तुम्हें इतना पता चल जाए कि मैं भीतर चैतन्य हूं, तो फिर शरीर ठीक है, तुम्हारा आवास है। घर को अपना होना मत समझ लो। और जैसे ही तुम्हें यह बात समझ में आनी शुरू हो जाएगी, तुम्हारे भीतर अपूर्व क्रांति घटित होगी।
नर! बन नारायण
स्वर! बन रामायण
और तब तुम अचानक पाओगे, तुम्हारे भीतर जो तुमने नर की तरह जाना था, वह नारायण है। और जो तुमने स्वर की तरह जाना था, वह रामायण है।
🙏🙏🌹🌹🔥🔥$$
-ओशो✍
अष्टावक्र महागीता, भाग-9
जिस दिन तुम्हारी यह बात समझ में आ जाएगी कि मौत तो होनी ही है, सुनिश्चित होनी है-और सब अनिश्चित है, मौत ही निश्चित है—उसी दिन भय समाप्त हो जाएगा। जो होना ही है, उसका क्या भय! जो होकर ही रहनी है, उसका क्या भय! जिसको टाला ही नहीं जा सकता, उसका क्या भय! जिसको अन्यथा किया ही नहीं जा सकता, उसका क्या भय!
आशंका है तुम्हें
जिस दुर्घटना की
घट चुकी है वह
पहले ही भीतर
केवल आएगा तैरकर
गत आगत की सतह पर
हो चुका है पहले ही काम। मर गए तुम उसी दिन जिस दिन तुम जन्मे। जिस दिन तुमने सांस ली, उसी दिन सांस छूटने का उपाय हो गया। अब सांस किसी भी दिन छूटेगी। तुम सदा न रह सकोगे। इसलिए इस भय को समझने की कोशिश करो, बचने की आशा मत करो। बचने को तो कोई नहीं बच पाया। कितने लोगों ने कितने उपाय किए बचने के।
तुम पूछते हो, मृत्यु का बड़ा भय है, क्या इससे छूटने का कोई उपाय है?
छूटने का उपाय करते रहोगे, भय बढ़ता जाएगा। तुम छूटने का उपाय करोगे, मौत रोज करीब आ रही है। क्योंकि बुढ़ापा रोज करीब आ रहा है। तुम जितने ही उपाय करोगे उतने ही घबड़ाते जाओगे। मुझसे तुमने पूछा है, अगर मेरी बात समझ सको तो मैं तुमसे कहूंगा: मौत को स्वीकार कर लो, छूटने की बात ही छोड़ो। जो होना है, होना है। उसे तुम स्वीकार कर लो। उसे तुम इतने अंतरतम से स्वीकार लो कि उसके प्रति विरोध न रह जाए। वहीं भय समाप्त हो जाएगा।
मृत्यु से तो नहीं छूटा जा सकता, लेकिन मृत्यु के भय से छुटकारा हो सकता है। मृत्यु तो होगी, लेकिन भय आवश्यक नहीं है। भय तुमने पैदा किया है। वृक्ष तो भयभीत नहीं हैं, मौत उनकी भी होगी। क्योंकि उनके पास सोच-विचार की बुद्धि नहीं है। पशु तो चिंता में नहीं बैठे हैं, उदास नहीं बैठे हैं कि मौत हो जाएगी, मौत उनकी भी होगी।
मौत तो स्वाभाविक है। वृक्ष, पशु, पक्षी, आदमी, सभी मरेंगे। लेकिन सिर्फ आदमी भयभीत है। क्योंकि आदमी सोचता कि किसी तरह बचने का उपाय हो जाए। कोई रास्ता निकल आए।
तुम जब तक बचना चाहोगे तब तक भयभीत रहोगे। तुम्हारे बचने की आकांक्षा से ही भय पैदा हो रहा है। स्वीकार कर लो! मौत है, होनी है। तो जब होनी है हो जाएगी। और हर्जा क्या है? जन्म के पहले तुम नहीं थे, कोई तकलीफ थी? कभी इस तरह सोचो, जन्म के पहले तो तुम नहीं थे, कोई तकलीफ थी? मौत के बाद तुम फिर नहीं हो जाओगे। जो जन्म के पहले हालत थी, वही मौत के बाद हालत हो जाएगी। जब तक तुमने पहली सांस न ली थी, तब तक का तुम्हें कुछ याद है? कोई परेशानी है? कोई झंझट! ऐसे ही जब आखिरी सांस छूट जाएगी, उसके बाद भी क्या झंझट, क्या परेशानी!
सुकरात मरता था, किसी ने पूछा कि घबड़ा नहीं रहे आप? सुकरात ने कहा, घबड़ाना क्या है? या तो जैसा आस्तिक कहते हैं, आत्मा अमर है, तो घबड़ाने की कोई जरूरत ही नहीं! आत्मा अमर है तो क्या घबड़ाना! या जैसा कि नास्तिक कहते हैं, कि आत्मा मर जाती है, तो भी बात खतम हो गई। जब खतम ही हो गए तो घबड़ाना किसका! घबड़ाएगा कौन? बचे ही नहीं, तो न रहा बांस न बजेगी बांसुरी। तो सुकरात ने कहा दोनों हालत में-दोनों में से कोई ठीक होगा, और तो कोई उपाय नहीं है, या तो आस्तिक ठीक, या नास्तिक ठीक। आस्तिक ठीक, तो अमर हैं, बात खतम हुई, चिंता क्या करनी? नास्तिक ठीक तो बात खतम ही हो जानी है, चिंता किसको करनी है, किसकी करनी है? सुकरात ने कहा, इसलिए हम निश्चिंत हैं। जो भी होगा, ठीक है।
तुम बचने की कोशिश न करो। मौत तो होगी। लेकिन तुमसे मैं कहना चाहता हूं, मौत तुम्हारी नहीं होगी। तुम्हारा जन्म ही नहीं हुआ तो तुम्हारी मौत कैसे होगी? शरीर का जन्म हुआ है, शरीर की मौत होगी। तुम्हारा चैतन्य अजन्मा है और अमृतधर्मा है।
शरीर तो रोज मर रहा है। शरीर की तो प्रक्रिया मृत्यु है। इस शरीर के पार एक चैतन्य की दशा है, मगर उसका तुम्हें कुछ पता नहीं। तुम वही हो और तुम्हें उसका पता नहीं। तुम्हें आत्मस्मरण नहीं।
यह मत पूछो कि मौत के लिए हम क्या करें? इतना ही पूछो कि हमारे भीतर शरीर के पार जो है, उसे जानने के लिए क्या करें? मृत्यु से बचने की मत पूछो, ध्यान में जागने की पूछो। अगर तुम्हें इतना पता चल जाए कि मैं भीतर चैतन्य हूं, तो फिर शरीर ठीक है, तुम्हारा आवास है। घर को अपना होना मत समझ लो। और जैसे ही तुम्हें यह बात समझ में आनी शुरू हो जाएगी, तुम्हारे भीतर अपूर्व क्रांति घटित होगी।
नर! बन नारायण
स्वर! बन रामायण
और तब तुम अचानक पाओगे, तुम्हारे भीतर जो तुमने नर की तरह जाना था, वह नारायण है। और जो तुमने स्वर की तरह जाना था, वह रामायण है।
🙏🙏🌹🌹🔥🔥$$
-ओशो✍
अष्टावक्र महागीता, भाग-9
Comments