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जीवन में होश की हमें कोई आदत नहीं है। जीवन में हमें बेहोशी की आदत है !

जीवन जिने की कला
जीवन में होश की हमें कोई आदत नहीं है।
जीवन में हमें बेहोशी की आदत है। और बेहोशी को हम प्रेम भी करने लगते हैं, क्योंकि बेहोशी का एक सुख है, जागने का एक कष्ट है; बेहोशी का एक सुख है इसलिए सारी दुनिया में शराब पी जाती है, और नशे किए जाते हैं। बेहोशी का सुख यह है कि जीवन भूल जाता है। बेहोशी का सुख यह है कि जीवन भूल जाता है।
हम जीवन को भूलने के सब तरह के उपाय करते हैं। नाटक देखते हैं, संगीत सुनते हैं, फिल्में देखते हैं, शराब पीते हैं; यह सब का सब भूलने का उपाय है। किसी भांति हम अपने जीवन को भूल जाएं सो जाएं, हमें नींद पूरी आ जाए, तो जीवन में कोई तकलीफ नहीं है। अधिकतम लोग सोना पसंद करते हैं, जागने की बजाय। अधिकतम लोग भूलना पसंद करते हैं, होश की बजाय; असल में अधिकतम लोग मरना पसंद करते हैं जीने की बजाय। अगर आप बहुत गहरे में देखेंगे, तो आपके सोने की जो प्रवृत्ति है कि सोए रहें, कोई तकलीफ न हो; कोई बेचैनी न हो, क्योंकि बेचैनी जगाती है, तकलीफ जगाती है, दुख जगाता है।
इसलिए आप सुख को खोजते हैं, क्योंकि सुख में नींद हो सकती है। कम्फर्ट की जो खोज है, सुख की जो खोज है, वह नींद की खोज है। इसको समझ लेना चाहिए कि जितना आप सुख खोज रहे हैं, किसलिए खोज रहे हैं? क्योंकि सुख में ज्यादा जागने की जरूरत नहीं रहती। और यही वजह है कि जो लोग सामान्यतः सुख में रहते हैं, उनके भीतर कोई प्रज्ञा, कोई विवेक कभी नहीं जगता।
जीवन में प्रज्ञा और विवेक का जन्म दुख में होता है। सफरिंग में होता है। क्यों? क्योंकि सफरिंग में सोया नहीं रह सकते आप, जागना पड़ेगा। होश रखना पड़ेगा। पीड़ा जगाती है और आराम सुलाता है।
हमारी सबकी खोज, आराम की खोज है। आराम की खोज अगर ठीक से समझें, तो जागने के विरोध में है। हम सोए होने के पक्ष में हैं। और जो आदमी सोए होने के पक्ष में है, अगर बहुत ठीक से सोचेगा, तो उसका लॉजिकल, उसका तार्किक अंत है कि वह आदमी मरने के पक्ष में है। क्योंकि मृत्यु तो बिल्कुल सो जाना है। जीवन को तो वही उपलब्ध होगा जो जागरण के पक्ष में हो। इसलिए जो मैंने पहले दिन कहा था कि हमारी मृत्यु की तरह है यह जिंदगी, यह इसीलिए मृत्यु की तरह है कि हम सोए हुए हैं।
अगर आप जीवन को जानना चाहते हैं तो जागना होगा। और जागने के लिए कोई ऐसा नहीं है कि कभी मंदिर चले जाएं, आधा घड़ी को जाग जाएं, जागना होगा चैबीस घंटे, इसलिए तपश्चर्या अखंड है। खंडित नहीं है कि आपने दस-पांच मिनट कर ली, कि आपने समय पर कर ली और निपट गए। कोई जीवन, कोई जीवन में क्रांतियां ऐसे नहीं होती कि आप दस-पंद्रह मिनट एक कोने में बैठ गए मंदिर के जाकर और आप समझें, काम पूरा हुआ, लौट चलें।
जीवन अखंड है, तपश्चर्या अखंड है। प्रतिक्षण उसे साधना होगा। तपश्चर्या से कोई छुट्टी, कोई हॉलिडे नहीं होता। ऐसा नहीं होता कि दो घंटे तपश्चर्या कर ली, और फिर छुट्टी हो गई। चैबीस घंटे में तेइस घंटे तपश्चर्या कर ली, एक घंटा छुट्टी मना ली। तपश्चर्या से कोई छुट्टी नहीं है। कोई अवकाश नहीं है। चैबीस घंटे है, जागते है, धीरे-धीरे सोते हुए भी है। धीरे-धीरे चैबीस घंटे चेतना पर काम करना है, और चेतना पर काम करना तब ही होता है, जब हम बोध को क्रमशः जगाएं। जितना हम जगाएंगे, उतना जागेगा।
जीवन की कला
ओशो

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