यदि आप ध्यान में जाना ही चाहते हैं तो दुनिया की कोई भी शक्ति आपको ध्यान में जाने से नहीं रोक सकती है। इसलिए अगर ध्यान में जाने में बाधा पडती हो तो जानना कि आपके संकल्प में ही कमी है। शायद आप जाना ही नहीं चाहते है। यह बहुत अजीब लगेगा! क्योंकि जो भी व्यक्ति कहता है कि मैं ध्यान में जाना चाहता हूं और नहीं जा पाता, वह मान कर चलता है कि वह जाना तो चाहता ही है। लेकिन बहुत भीतरी कारण होते हैं जिनकी वजह से हमें पता नहीं चलता कि हम जाना नहीं चाहते हैं।
अब जैसे, जो व्यक्ति भी कहता है, मैं ध्यान में जाना चाहता हूं, उसे बहुत ठीक से समझ लेना चाहिए कि क्या वह सुख और दुख दोनों को छोडने को तैयार है?
दुख को छोडने को सभी तैयार हैं। जो ध्यान में जाना चाहते हैं, वे भी इसीलिए जाना चाहते है कि दुख छूट जाए और सुख मिल जाए। लेकिन आपको साफ हो जाना चाहिए: ध्यान में जैस हीे प्रवेश करेंगे, सुख-दुख दोनों ही छूट जाते हैं। और जो उपलब्धि होती है वह सुख की नहीं है, परम शांति की है।
तो यदि आप सुख पाने के लिए ध्यान में जाना चाहते हैं, तो आप जाना ही नहीं चाहते। क्योंकि सुख एक तनाव है, एक अशांति है। भला प्रीतिकर लगती हो, लेकिन सुख एक उद्विग्न अवस्था है। दुख भी एक उद्विग्न अवस्था है। सुख में भी नींद नहीं आती, दुख में भी नींद नहीं आती। सुख में भी मन बेचैन रहता है, दुख में भी मन बेचैन रहता है। सुख एक उत्तेजना है। इसलिए सुख भी थका डालता है, तोड डालता है। यदि आप सुख पाने के लिए ध्यान में जाना चाहते हैं, तो ध्यान में आप जाना नहीं चाहते। ठीक से समझ लें कि सुख और दुख दोनों को छोड कर ही ध्यान में जा सकते हैं।
दूसरी बात, ध्यान में अगर कोई कुतूहलवश जाना चाहता हो तो कभी नहीं जा सकेगा। सिर्फ कुतूहलवश----कि देखें क्या होता है? इतनी बचकानी इच्छा से कभी कोई ध्यान में नहीं जा सकेगा। न, जिसे ऐसा लगा हो कि बिना ध्यान के मेरा जीवन व्यर्थ गया है। 'देखें, ध्यान में क्या होता है? 'ऐसा नहीं; बिना ध्यान के मैंने देख लिया कि कुछ भी नहीं होता है और अब मुझे ध्यान में जाना ही है, ध्यान के अतिरिक्त अब मेरे पास कोई विकल्प नहीं है----ऐसे निर्णय के साथ ही अगर जाएंगे तो जा सकेंगे। क्योंकि ध्यान बडी छलांग है। उसमें पूरी शक्ति लगा कर ही कूदना पडता है।
कुतूहल में पूरी शक्ति की कोई जरूरत नहीं होती। कुतूहल तो ऐसा है कि पडोसी के दरवाजे के पास कान लगा कर सुन लिया कि क्या बातचीत चल रही है; अपने रास्ते चले गए। किसी की खिडकी में जरा झांक कर देख लिया कि भीतर क्या हो रहा है; अपने रास्ते चले गए। वह कोई आपके जीवन की धारा नहीं है। उस पर आपका कोई जीवन टिकने वाला नहीं है।
लेकिन हम कुतूहलवश बहुत सी बातें कर लेते हैं। ध्यान कुतूहल नहीं है।
तो अकेली क्युरिआसिटी अगर है तो काम नहीं होगा इंक्कायरी चाहिए
तो मैं आपसे कहना चाहूंगा कि आप बिना ध्यान के तो जीकर देख लिए हैं------कोई तीस साल, कोई चालीस साल, कोई सत्तर साल। क्या अब भी बिना ध्यान में ही जीने की आकांक्षा शेष है? क्या पा लिया है?
तो लौट कर अपने जीवन को एक बार देख लें कि बिना ध्यान के कुछ पाया तो नहीं है। धन पा लिया होगा, यश पा लिया होगा। फिर भी भीतर सब रिक्त और खाली है। कुछ पाया नहीं है। हाथ अभी भी खाली हैं। और जिन्होंने भी जाना है, वे कहते हैं कि ध्यान के अतिरिक्त वह मणि मिलती नहीं, वह रतन मिलता नहीं, जिसे पाने पर लगता है कि अब पाने की और कोई जरूरत न रही, सब पा लिया।
तो ध्यान को कुतूहल नहीं, मुमुक्षा-----बहुत गहरी प्यास, अभीप्सा अगर बनाएंगे, तो ही प्रवेश कर पाएंगे। अगर न जा पाते हों ध्यान में, तो संकल्प की कमी है, इसकी खोज करें।
और पूछेंगे आप कि संकल्प की कमी को पूरा कैसे करें?
यह जरा जटिल है बात। क्योंकि जिसमें संकल्प की कमी है, वह संकल्प की कमी को पूरा करने का संकल्प भी नहीं कर पाता, यही उसकी गांठ है। तो वह पूछता है, संकल्प कैसे पूरा करूं? वह कमी कैसे पूरी करूं? वह इसमें भी पूरा संकल्प नहीं कर पाता। और अगर वह कोशीश करेगा, तो वह कोशिश भी अधूरी होनी वाली है, क्योंकि वह अधूरे संकल्प का आदमी है। फिर क्या किया जाए?
तो मैं कहता हूं, कोशिश न करें, कूद पडें। कोशिश तो आपसे होने वाली नहीं, कूद पडें। कूदना बडी अलग बात है; कोशिश बडी अलग बात है। कोशिश में समय लगता है-----वर्ष लगे, छह महीने लगे। कूदना अभी हो सकता है।
और इसीलिए मैं मॉस, समूह-ध्यान पर जोर देता हूं। क्योंकि जहां इतने लोग ध्यान में जा रहे हों, शायद लहर आपको पकड जाए और आप भी देखें कि कूद जाऊं और देखूं------क्या हो रहा है?
कूद जाएं। तैयारी आपसे न हो सकेगी। आप बिना तैयारी के कूद जाएं। और मैं आपसे कहता हूं, परमात्मा आपको बिना तैयारी के भी स्वीकार करने को राजी है, सिर्फ कूद जाएं।
मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं, हमारी पात्रता कहां?
ये सब बहाने हैं। ऐसा मत समझना कि वे विनम्र लोग हैं----कि वे कह रहे हैं, हमारी पात्रता कहां? वे सिर्फ यह कह रहे हैं कि वे अपने कूदने की कमी को भी छिपाने का उपाय खोज रहे हैं। वे कह रहे हैं, हमारी पात्रता कहां?
मैं आपसे कहता हूं, परमात्मा आपकी अपात्रता में भी आपको स्वीकार करने को राजी है। आप कूदें। खोजें मत बहाने। और बहाने मन बहुत खोजता है। और ऐसे-ऐसे बहाने खोजता है जिनका हिसाब नहीं। और मन रेशनेलाइज करना जानता है। वह जानता है कि किस तरकीब से अपने को समझा लो, आर्ग्युमेंट दो, दलील दो और कहो कि बिलकुल ठीक हूं, यह कैसे हो सकता है?
एक हिम्मत करें और छलांग लगा कर देखें कि...। स्वाद एक बार मिल जाए तो फिर स्वाद ही खींचता चला जाता है। एक किरण भी झलक में आ जाए तो आप न रुक सकेंगे।
ओशो 🌹🌹
अब जैसे, जो व्यक्ति भी कहता है, मैं ध्यान में जाना चाहता हूं, उसे बहुत ठीक से समझ लेना चाहिए कि क्या वह सुख और दुख दोनों को छोडने को तैयार है?
दुख को छोडने को सभी तैयार हैं। जो ध्यान में जाना चाहते हैं, वे भी इसीलिए जाना चाहते है कि दुख छूट जाए और सुख मिल जाए। लेकिन आपको साफ हो जाना चाहिए: ध्यान में जैस हीे प्रवेश करेंगे, सुख-दुख दोनों ही छूट जाते हैं। और जो उपलब्धि होती है वह सुख की नहीं है, परम शांति की है।
तो यदि आप सुख पाने के लिए ध्यान में जाना चाहते हैं, तो आप जाना ही नहीं चाहते। क्योंकि सुख एक तनाव है, एक अशांति है। भला प्रीतिकर लगती हो, लेकिन सुख एक उद्विग्न अवस्था है। दुख भी एक उद्विग्न अवस्था है। सुख में भी नींद नहीं आती, दुख में भी नींद नहीं आती। सुख में भी मन बेचैन रहता है, दुख में भी मन बेचैन रहता है। सुख एक उत्तेजना है। इसलिए सुख भी थका डालता है, तोड डालता है। यदि आप सुख पाने के लिए ध्यान में जाना चाहते हैं, तो ध्यान में आप जाना नहीं चाहते। ठीक से समझ लें कि सुख और दुख दोनों को छोड कर ही ध्यान में जा सकते हैं।
दूसरी बात, ध्यान में अगर कोई कुतूहलवश जाना चाहता हो तो कभी नहीं जा सकेगा। सिर्फ कुतूहलवश----कि देखें क्या होता है? इतनी बचकानी इच्छा से कभी कोई ध्यान में नहीं जा सकेगा। न, जिसे ऐसा लगा हो कि बिना ध्यान के मेरा जीवन व्यर्थ गया है। 'देखें, ध्यान में क्या होता है? 'ऐसा नहीं; बिना ध्यान के मैंने देख लिया कि कुछ भी नहीं होता है और अब मुझे ध्यान में जाना ही है, ध्यान के अतिरिक्त अब मेरे पास कोई विकल्प नहीं है----ऐसे निर्णय के साथ ही अगर जाएंगे तो जा सकेंगे। क्योंकि ध्यान बडी छलांग है। उसमें पूरी शक्ति लगा कर ही कूदना पडता है।
कुतूहल में पूरी शक्ति की कोई जरूरत नहीं होती। कुतूहल तो ऐसा है कि पडोसी के दरवाजे के पास कान लगा कर सुन लिया कि क्या बातचीत चल रही है; अपने रास्ते चले गए। किसी की खिडकी में जरा झांक कर देख लिया कि भीतर क्या हो रहा है; अपने रास्ते चले गए। वह कोई आपके जीवन की धारा नहीं है। उस पर आपका कोई जीवन टिकने वाला नहीं है।
लेकिन हम कुतूहलवश बहुत सी बातें कर लेते हैं। ध्यान कुतूहल नहीं है।
तो अकेली क्युरिआसिटी अगर है तो काम नहीं होगा इंक्कायरी चाहिए
तो मैं आपसे कहना चाहूंगा कि आप बिना ध्यान के तो जीकर देख लिए हैं------कोई तीस साल, कोई चालीस साल, कोई सत्तर साल। क्या अब भी बिना ध्यान में ही जीने की आकांक्षा शेष है? क्या पा लिया है?
तो लौट कर अपने जीवन को एक बार देख लें कि बिना ध्यान के कुछ पाया तो नहीं है। धन पा लिया होगा, यश पा लिया होगा। फिर भी भीतर सब रिक्त और खाली है। कुछ पाया नहीं है। हाथ अभी भी खाली हैं। और जिन्होंने भी जाना है, वे कहते हैं कि ध्यान के अतिरिक्त वह मणि मिलती नहीं, वह रतन मिलता नहीं, जिसे पाने पर लगता है कि अब पाने की और कोई जरूरत न रही, सब पा लिया।
तो ध्यान को कुतूहल नहीं, मुमुक्षा-----बहुत गहरी प्यास, अभीप्सा अगर बनाएंगे, तो ही प्रवेश कर पाएंगे। अगर न जा पाते हों ध्यान में, तो संकल्प की कमी है, इसकी खोज करें।
और पूछेंगे आप कि संकल्प की कमी को पूरा कैसे करें?
यह जरा जटिल है बात। क्योंकि जिसमें संकल्प की कमी है, वह संकल्प की कमी को पूरा करने का संकल्प भी नहीं कर पाता, यही उसकी गांठ है। तो वह पूछता है, संकल्प कैसे पूरा करूं? वह कमी कैसे पूरी करूं? वह इसमें भी पूरा संकल्प नहीं कर पाता। और अगर वह कोशीश करेगा, तो वह कोशिश भी अधूरी होनी वाली है, क्योंकि वह अधूरे संकल्प का आदमी है। फिर क्या किया जाए?
तो मैं कहता हूं, कोशिश न करें, कूद पडें। कोशिश तो आपसे होने वाली नहीं, कूद पडें। कूदना बडी अलग बात है; कोशिश बडी अलग बात है। कोशिश में समय लगता है-----वर्ष लगे, छह महीने लगे। कूदना अभी हो सकता है।
और इसीलिए मैं मॉस, समूह-ध्यान पर जोर देता हूं। क्योंकि जहां इतने लोग ध्यान में जा रहे हों, शायद लहर आपको पकड जाए और आप भी देखें कि कूद जाऊं और देखूं------क्या हो रहा है?
कूद जाएं। तैयारी आपसे न हो सकेगी। आप बिना तैयारी के कूद जाएं। और मैं आपसे कहता हूं, परमात्मा आपको बिना तैयारी के भी स्वीकार करने को राजी है, सिर्फ कूद जाएं।
मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं, हमारी पात्रता कहां?
ये सब बहाने हैं। ऐसा मत समझना कि वे विनम्र लोग हैं----कि वे कह रहे हैं, हमारी पात्रता कहां? वे सिर्फ यह कह रहे हैं कि वे अपने कूदने की कमी को भी छिपाने का उपाय खोज रहे हैं। वे कह रहे हैं, हमारी पात्रता कहां?
मैं आपसे कहता हूं, परमात्मा आपकी अपात्रता में भी आपको स्वीकार करने को राजी है। आप कूदें। खोजें मत बहाने। और बहाने मन बहुत खोजता है। और ऐसे-ऐसे बहाने खोजता है जिनका हिसाब नहीं। और मन रेशनेलाइज करना जानता है। वह जानता है कि किस तरकीब से अपने को समझा लो, आर्ग्युमेंट दो, दलील दो और कहो कि बिलकुल ठीक हूं, यह कैसे हो सकता है?
एक हिम्मत करें और छलांग लगा कर देखें कि...। स्वाद एक बार मिल जाए तो फिर स्वाद ही खींचता चला जाता है। एक किरण भी झलक में आ जाए तो आप न रुक सकेंगे।
ओशो 🌹🌹
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